Telangana Election 2023: तेलंगाना में 2014 में बीआरएस (तत्कालीन टीआरएस) से हार का सामना करने वाली कांग्रेस आगामी 30 नवंबर को होने वाले चुनाव में सत्ता में लौटने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है.
कांग्रेस साल 2014 में केंद्र की सत्ता पर आसीन थी और उसने अलग राज्य के रूप में तेलंगाना के गठन का समर्थन किया था. इसके बावजूद पार्टी को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. चुनाव में हार के बाद कांग्रेस का मनोबल गिरने लगा और नतीजा यह हुआ कि कई कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर चले गए, जिससे पार्टी कमजोर हो गई.
हालांकि सांसद ए. रेवंत रेड्डी के जुलाई 2021 में तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी (टीपीसीसी) की कमान संभालने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच उम्मीदें बढ़ गईं. कार्यकर्ता पिछले तीन साल में हुए उपचुनाव और हैदराबाद नगर निगम चुनावों में मिली करारी हार को भुलाकर पार्टी को फिर से खड़ा करने में जुट गए.
कांग्रेस ने कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने निश्चित रूप से पार्टी कार्यकर्ताओं और नेताओं के मनोबल में इजाफा किया . यहां हम कांग्रेस की मजबूती, कमजोरी, अवसर और चुनौतियों (स्ट्रैंथ, वीकनेस, अपोर्चयूनिटी एंड थ्रैट- स्वाट) के बारे में बात करने जा रहे हैं.
कांग्रेस की मजबूती
कांग्रेस के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने ही तेलंगाना को राज्य का दर्जा दिया था. पार्टी के साथ लोगों के बीच सामान्य सहानुभूति है क्योंकि वह तेलंगाना को अलग राज्य का दर्जा देने के बावजूद लगातार दो (2014 और 2018 में) चुनाव हार गई.
तेलंगाना को राज्य का दर्जा मिलने के बाद लगातार दो बार सरकार बनाने वाली पार्टी बीआरएस सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है. कांग्रेस पड़ोसी राज्य कर्नाटक में दी गई 'गारंटियों' की तर्ज पर यहां भी आकर्षक चुनावी वादे कर रही है.
जमीनी स्तर पर कांग्रेस का कैडर मजबूत हुआ है, जो उसके लिए एक अच्छा संकेत है. कांग्रेस धर्मनिरपेक्ष पार्टी मानी जाती है. पार्टी ने पहले ही उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी है, जिससे उसे चुनाव में बढ़त मिल सकती है. वरिष्ठ नेताओं की पदयात्रा ने पार्टी को जमीनी स्तर पर मजबूत किया है.
कांग्रेस की कमजोरियां
पार्टी के भीतर लगातार असंतोष और नेताओं की खुली आलोचना कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती हैं। इसके अलावा कांग्रेस राजनीतिक चतुराई में बीआरएस और भाजपा से पीछे नजर आती है जबकि पिछले कुछ समय में कई महत्वपूर्ण नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, जिससे कांग्रेस के लिए चिताएं बढ़ गई हैं।
कांग्रेस के सामने अवसर क्या है?
सत्तारूढ़ बीआरएस के खिलाफ दस साल की सत्ता विरोधी लहर कांग्रेस के लिए एक अवसर पैदा कर सकती है. पार्टी दिल्ली आबकारी मामले में मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव की बेटी के.कविता की कथित संलिप्तता को उजागर करके एक प्रभावी चुनाव अभियान चला सकती है.
सरकारी भूमि प्रबंधन पोर्टल ‘धरणी’ की खामियों को कांग्रेस अपने चुनाव अभियानों में उजागर कर सकती है. पार्टी की घोषित कुछ गारंटी, जैसे कि आरटीसी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा सार्थक और फायदेमंद साबित होंगी.
कांग्रेस की चुनौती क्या है?
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के नेता और पूर्व भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी आर. एस प्रवीण कुमार का मौन अभियान कांग्रेस के लिए चुनौती खड़ी कर सकता है. इस अभियान से संभावित रूप से कांग्रेस के पारंपरिक वोट बैंक (एससी और एसटी) में सेंध लग सकती है.
असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल-मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) संभावित रूप से मुस्लिम मतदाताओं को कांग्रेस से दूर रख सकती है.