नई दिल्ली: 2019 में दिल्ली की गद्दी तक पहुंचने के लिए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस में जोर आजमाइश जारी है. इन सब के बीच तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने ऐसा कदम उठाया है जिससे दोनों ही प्रमुख पार्टियों के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती है. तेलंगाना राष्ट्र समिति के अध्यक्ष राव ने कांग्रेस और बीजेपी से अलग फेडरल फ्रंट बनाने की कवायद शुरू कर दी है. इसी के मद्देनजर कल उन्होंने ओडिशा के मुख्यमंत्री और बीजू जनता दल (बीजद) के प्रमुख नवीन पटनायक से भुवनेश्वर में मुलाकात की. इससे पहले वह आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम के शारदा पीठ गए.


मुलाकात के बाद उन्होंने कहा कि साल 2019 के चुनावों से पहले बीजेपी और कांग्रेस का विकल्प देने के लिए क्षेत्रीय दलों के एकजुट होने की गहरी जरूरत है. राव ने कहा, ‘‘मैं निश्चित तौर पर यह कह सकता हूं कि देश में इस समय क्षेत्रीय दलों के एकीकरण की सख्त आवश्यकता है.’’ 11 दिसंबर को चुनावी जीत हासिल करने के बाद उन्होंने जिक्र किया था कि क्षेत्रीय दलों का एक संघ जल्द ही उभरकर सामने आएगा.



उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस को करारी शिकस्त देते हुए तेलंगाना में दोबारा पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई है. राव की तरह ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) अध्यक्ष ममता बनर्जी भी समय-समय पर फेडरल फ्रंट की बात दोहराती रही हैं. राव और ममता दोनों की आज कोलकाता में मुलाकात होगी. वह मुलाकात के बाद कालीमाता मंदिर जाएंगे.


चंद्रशेखर राव आने वाले दिनों में मायावती और अखिलेश यादव से भी मुलाकात कर सकते हैं. उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में उतरने और क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं से मुलाकात के लिए एक महीने के लिए स्पेशल एयरक्राफ्ट हायर किया है.


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मायावती की पार्टी बीएसपी और अखिलेश की समाजवादी पार्टी गठबंधन को लेकर हुई विपक्षी दलों की बैठकों से दूर रही है. ऐसे में यह अटकलें लगाई जा रही है कि उत्तर प्रदेश के दोनों सियासी दिग्गज फेडरल फ्रंट की ओर रुख कर सकते हैं. कांग्रेस 2019 लोकसभा चुनाव के लिए बीएसपी और समाजवादी पार्टी को साथ लाने की कोशिश में जुटी है.


हालांकि पांच राज्यों मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनाव में तीनों पार्टियां (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बीएसपी) अलग-अलग होकर चुनाव लड़ी थी.


अखिलेश और मायावती दोनों ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को समर्थन देने के बावजूद शपथ ग्रहण कार्यक्रम से दूरी बनाए रखी. इन तीनों समारोह में विपक्षी दलों के कई नेता शामिल हुए थे. पिछले दिनों टीडीपी प्रमुख और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पहल पर हुई विपक्षी दलों की बैठक में भी मायावती और अखिलेश शामिल नहीं हुए थे.


उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80, पश्चिम बंगाल में 42, तेलंगाना में 17 और ओडिशा में 21 लोकसभा सीटें हैं. इन चारों राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभुत्व रहा है. ऐसे में फेडरल फ्रंट अगर कामयाब रहा तो दोनों ही प्रमुख पार्टियों कांग्रेस और बीजेपी के लिए झटका से कम नहीं होगा.


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ध्यान रहे कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) अपने पुराने गठबंधन सहयोगियों को साधने में जुटा है तो वहीं संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) पुराने के साथ-साथ नई पार्टियों को भी साथ लाने की कोशिश में है. एनडीए में सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी है तो यूपीए का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में है.