तेलंगाना में कोरोना वायरस के शक और लॉकडाउन की सख्ती ने महिला और उसके नवजात की जान ले ली. गडवाल जिले की रहनेवाली महिला की सोमवार की रात हैदराबाद में मौत हो गई. घटना से एक दिन पहले उसके नवजात ने भी सांस संबंधी समस्या के कारण दम तोड़ दिया था. मगर इस दौरान इलाज के लिए महिला को तीन दिनों तक एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल दौड़ाया जाता रहा. हैदराबाद के पेटला बुर्ज अस्पताल पहुंचने तक उसने 200 किलोमीटर का सफर तय कर लिया.


महिला के पति महेंद्र ने बताया कि उसकी पत्नी जेनीला को 24 अप्रैल को प्रसव पीड़ा शुरू हुआ. उसने डिलीवरी के लिए फौरन गडवाल जिला अस्पताल दाखिल कराया. वहां डॉक्टरों ने उसमें एनीमिया और ब्लड प्रेशर की शिकायत पाई. उसके बाद उन्होंने कुरनूल के बड़े अस्पताल के लिए रेफर कर दिया. मगर महेंद्र अपनी पत्नी को लॉकडाउन की सख्ती के चलते करनूल नहीं ले जा सका. कुरनूल के बजाए उसने 60 किलोमीटर दूर महबूबनगर ले जाने में सफल हो गया. यहां गडवाल का मामला होने की वजह से डॉक्टरों ने खतरा मोल लेना मुनासिब नहीं समझा. उन्होंने गडवाल में कोविड-19 के 45 मरीज सामने आने के बाद मरीज को हैदराबाद ले जाने को कहा. 25 अप्रैल को हैदराबाद में कोटी अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि महिला का कोविड-19 टेस्ट कराना होगा. इसके लिए उन्होंने गांधी अस्पताल ले जाने की सलाह दी. ऐसा उन्होंने गडवाल के कोरोना रेड जोन होने के चलते किया.


गांधी अस्पताल से अगले दिन महिला की रिपोर्ट कोरोना निगेटिव आई. फिर उसे पेटला बुर्ज अस्पताल में डिलीवरी के लिए भर्ती कराया गया. जहां उसने एक बच्चे को जन्म दिया. बच्चे को सांस संबधी समस्या होने के कारण नीलोफर अस्पताल में रेफर किया गया. जहां उसकी मौत उसी शाम हो गई. बच्चे की मौत के सदमे से जेनिला की हालत भी बिगड़ती गई. डॉक्टरों ने बेहतर इलाज के लिए ओस्मानिया अस्पताल रेफर कर दिया. आखिरकार उसकी मौत वहां 27 अप्रैल सोमवार की रात हो गई. महिला के पति का आरोप है कि अगर डॉक्टरों ने इमरजेंसी केस समझते हुए इलाज किया होता तो आज उसकी पत्नी जीवित होती. कोविड-19 के शक के कारण डॉक्टरों ने उसके इलाज में लापरवाही बरती. घटना का संज्ञान राज्य मानवाधिकार आयोग ने लिया है. उसने महबूब नगर जिला प्रशासन से 16 जून तक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है.


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