नई दिल्ली: नागरिकता बिल में संशोधन के मुद्दे पर बीजेपी को एक और बड़ा झटका लगा है. बीजेपी की सहयोगी जेडीयू समेत नार्थ-ईस्ट की 10 पार्टियों ने इस बिल में संशोधन का विरोध करने का फैसला किया है. मेघालय के सीएम कॉनराड संगमा ने इस बात की जानकारी देते हुए बताया कि नार्थ-ईस्ट की 10 पार्टियों इस बिल में हो रहे संशोधन के विरोध में हैं.
संगमा ने कहा, ''मीटिंग में नार्थ-ईस्ट की 10 पार्टियों ने इस बिल में संशोधन का विरोध करने का फैसला किया है.'' उन्होंने आगे कहा, ''नार्थ-ईस्ट की ज्यादातर पार्टियां इस बिल में संशोधन का विरोध कर रही हैं. इसलिए हम सभी लोग इस मुद्दे पर बात करने के लिए साथ आए.'' मिजोरम के सीएम ने भी इस बिल में होने वाले संशोधन को लोंगो के हित के खिलाफ बताया है.
संशोधन के विरोध में हुई इस मीटिंग में असम में बीजेपी का साथ छोड़ने वाली असम गण परिषद, एमएनएफ, यूडीपी, एनपीएफ, एनपीपी, एचएसपीडी, पीडीएफ, आईपीएफटी जैसे पार्टियां शामिल रही. इस मीटिंग में जेडीयू के नार्थ ईस्ट के इंचार्ज ने भी हिस्सा लिया. इन सभी पार्टियों ने उम्मीद जताई है कि यह बिल में होने वाला संशोधन राज्यसभा में पास नहीं हो पाएगा.
मूल मुद्दा क्या है?
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध और बांग्लादेश के निर्माण के वक्त असम और उत्तर पूर्व में अवैध घुसपैठियों की समस्या शुरू हुई थी. जिसके बाद ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और फिर असम गण परिषद ने बड़े आंदोलन किए. राजीव गांधी सरकार के दौर में असम गण परिषद् से यह समझौता हुआ था कि 24 मार्च 1971 के बाद असम में अवैध रूप से घुसे बांग्लादेशियों को बाहर निकाला जाएगा. हाल ही में नेशनल रजिस्टर बना तो पता लगा कि उसमें 40 लाख भारतीय नागिरक नहीं निकले.
लेकिन नए बिल के कानून बनने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता मिलना आसान होगा. इसके तहत हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 की बजाय छह साल में नागरिकता मिल जाएगी. इसके लिए किसी वैध दस्तावेज की जरूरत नहीं होगी. आरोप है कि अगर ये बिल लागू हो गया तो नेशनल रजिस्टर की पूरी प्रक्रिया बेकार हो जाएगी. इसमें मुस्लिमों को बाहर करने का आरोप भी लग रहा है.
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