मुंबई: 26/11 आतंकी हमलों के 10 साल बाद क्या मुंबई महफूज है? 26 नवंबर 2008 से 3 दिन तक मुंबई में कहर बरपाने वाले 10 आतंकी समुद्री रास्ते से शहर में घुसे थे. उसके बाद समुद्री सुरक्षा को दुरूस्त करने के लिये काफी कुछ कहा और किया गया. लेकिन 10 साल बाद क्या इस बात की गारंटी है कि आतंकी अब समुद्री रास्ते से कभी मुंबई में नहीं घुस पायेंगे?


मुंबई पर 2 बार समुद्री रास्ते से आतंकी हमले हो चुके हैं. पहली बार 12 मार्च 1993 को मुंबई में जो सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे, उनके लिये हथियार और आरडीएक्स समुद्र के रास्ते ही मुंबई आया था. 26 नवंबर 2008 को पाकिस्तान से आये जिन 10 आतंकियों ने मुंबई पर हमला किया था, वे कफ परेड इलाके में इसी जगह पर उतरे थे. अब यहां मुंबई पुलिस ने अपनी एक चौकी बनाई है और यहां बोट तैनात किया है.


आतंकवादी समुद्री रास्ते से न आ सकें इसके लिए कुछ साल पहले मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर डी शिवानंदन ने विदेश से अत्याधुनिक मोटरबोट्स खरीदे. ऐसी बोट्स पुलिस ने हासिल की जो तेज रफ्तार से चल सकती थी और जिनका इस्तेमाल जमीन और पानी दोनों में किया जा सकता था. अब मुंबई की समुद्री सुरक्षा इतनी पुख्ता है कि पुलिस की नजर पड़े बिना परिंदा भी पर नहीं मार सकता. समुद्री सुरक्षा की खातिर सरकार ने करोडों रूपये खर्च किये.


सरकार ने उठाए ये कदम


2009 में महाराष्ट्र सरकार ने न्यूजीलैंड में बनी 20 सी लैग बोट्स खरींदीं. हर एक बोट की कीमत 20 लाख रूपये थी. 20 एंपीबियस वेहिकल खरीदे गये. ऐसे एक वेहिकल की कीमत 40 लाख रूपये थी. 15 पुरानी स्पीड बोट खरींदीं गईं. 20 नई स्पीड बोट खरीदीं गईं. इनके अलावा समुद्री सुरक्षा के लिये 450 पुलिसकर्मी तैनात किये गये और 4 विशेष पुलिस थाने बनाये गये जिनका कार्यक्षेत्र मुंबई के समुद्र तट से 12 नॉटिकल माईल्स तक रखा गया.


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महाराष्ट्र की समुद्रीसीमा 720 किलोमीटर लंबी है और इसमें से 114 किलोमीटर की सीमा अकेले मुंबई से लगी हुई है. मुंबई हमले की जांच के लिये बनाई गई रामप्रधान कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मुंबई में समुद्री सुरक्षा सिर्फ नाममात्र के लिये थी. आतंकी हमले से पहले खुफिया एजेसियों ने 6 बार अलर्ट भेजा था कि आतंकी समुद्र के रास्ते मुंबई पर हमला कर सकते हैं लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया. मुंबई पुलिस, कोस्ट गार्ड और नौसेना के बीच कोई तालमेल नहीं था. महाराष्ट्र सरकार ने रामप्रधान कमिटी की सिफारिशों को गंभीरता से लेते हुए समुद्री सुरक्षा से जुडे तमाम कदम उठाये.


खस्ता हो चुके हैं बोट के हालात


हालांकि कई बोट के हालात आज खस्ता हो चुके हैं. महाराष्ट्र पुलिस के पास सी लैग 20 बोट हैं जिनमें से 16 की हालत खस्ता है और बड़ी मुश्किल से इनका इस्तेमाल हो पा रहा है. खरीदे जाने के सालभर के भीतर ही इनमें समस्या आने लगी. खराब मौसम में इनका इस्तेमाल नहीं हो सकता है. बताया जाता है कि इन्हें चलाने के लिये मारूति जिप्सी और एंबेसेडर कार के कार्बोरेटर का इस्तेमाल करना पड़ रहा है क्योंकि सरकार का बोट बनाने वाली कंपनी के साथ करार खत्म हो गया है. नियमित समुद्री गश्त के लिये अब मुंबई पुलिस इनका इस्तेमाल नहीं करती है.


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अगस्त 2010 में एक हादसा हुआ जो मुंबई पुलिस की समुद्री सुरक्षा की पोल खोलता है. रमेश मोरे नाम का एक कॉन्सटेबल जो कि पुलिस की एक गश्ती नौका पर तैनात था उसकी डूबने से मौत हो गई. बताया गया कि उसे तैरना नहीं आता था. साल 2015 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में इसी से जुडा हुआ एक अहम खुलासा किया.


कैग रिपोर्ट में खुली पोल


कैग ने अपनी ऑडिट रिपोर्ट में पाया कि जिन 450 लोगों को मुंबई पुलिस ने समुद्री सुरक्षा के लिये नियुक्त किया था उनमें से 230 पुलिसकर्मियों को तो तैरना ही नहीं आता है. ये भी पता चला कि समुद्री सुरक्षा के लिये लगाये गये कई पुलिसकर्मी महाराष्ट्र के तट से दूर वाले इलाके जैसे विदर्भ और मराठवाड़ा से थे, जिनमें से कईयों ने पुलिस सेवा से जुडने से पहले न कभी समुद्र देखा था और न उन्हें समुद्र में काम करने का अनुभव था.


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26 नवंबर 2008 के पहले तक मुंबई के गेटवे औफ इंडिया पर कई बोट पार्टियां होतीं थीं जो देर रात तक चलतीं थीं, लेकिन उन हमलों के बाद पुलिस ने इन पार्टियों पर पूरी तरह से रोक लगा दी. इसी तरह से पर्यटकों को बंदरगाह की सैर कराने वाली मोटरबोटों के चलने पर भी शाम 7 बजे के बाद बंदिश लगा दी गई. गेटवे ऑफ इंडिया से पास के अलीबाग जाने वाली बोट आखिरी बोट का वक्त भी शाम 8 बजे तय कर दिया गया है. समुद्री सुरक्षा के लिये पुलिस ने मछुआरों को परिचय पत्र देने और उनकी नौकाओं का रजिस्ट्रेशन कराने का काम शुरू किया है.