Supreme Court On Pregnancy: छब्बीस सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (12 अक्टूबर) को अहम टिप्पणी की. कोर्ट ने कहा कि हम किसी भी बच्चे को नहीं मार सकते. हमें अजन्मे शिशु के अधिकारों और माता के अधिकारों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से सुनवाई के दौरान सवाल किया कि क्या आप चाहते हैं कि हम एम्स के डॉक्टरों से कहें कि (वे) भ्रूण की दिल की धड़कने बंद कर दें. जब वकील ने नहीं’ में जवाब दिया तो पीठ ने कहा कि जब महिला ने 24 सप्ताह से अधिक समय तक इंतजार किया है तो क्या वह कुछ और हफ्तों तक भ्रूण को बरकरार नहीं रख सकती ताकि एक स्वस्थ बच्चे के जन्म की संभावना हो.
कोर्ट ने एएसजी ऐश्वर्या भाटी और याचिकाकर्ता के वकील को उससे बात करने को कहा. अब मामले की सुनवाई शुक्रवार (13 अक्टूबर) की सुबह सुबह 10:30 बजे तय की है.
सुनवाई के दौरान पहले क्या हुआ?
जस्टिस हिमा कोहली ने बुधवार (11 अक्टूबर) को आश्चर्य जताते हुए कहा कि कौन सी अदालत कहेगी कि एक भ्रूण की दिल की धड़कनों को रोका जाए. वह 27 वर्षीय महिला को गर्भपात की अनुमति नहीं दे सकतीं. वहीं जस्टिस बी वी नागरत्ना ने कहा कि कोर्ट को महिला के निर्णय का सम्मान करना चाहिए जो गर्भपात कराने पर कायम रही है.
बता दें कि कोर्ट ने नौ अक्टूबर को महिला को गर्भ को चिकित्सीय रूप से समाप्त करने की अनुमति उसके अवसाद से पीड़ित होने के कारण दी थी.
अभी क्या नियम है?
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के तहत गर्भपात की ऊपरी समय विवाहित महिलाओं, दुष्कर्म की पीड़िताओं और अन्य कमजोर महिलाओं जैसे कि दिव्यांग और नाबालिगों समेत विशेष श्रेणियों के लिए 24 सप्ताह की है.
इनपुट भाषा से भी.
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