Monkeypox Virus Infection: हाल ही में दुनिया के अलग-अलग देशों में मिले मंकीपॉक्स के मामलों ने कई देशों की सरकारों और वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन की चिंता बढ़ा दी है. WHO मंकीपॉक्स के खतरों को देखते हुए ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी भी घोषित कर चुका है. इस बीच थाईलैंड ने गुरुवार (22 अगस्त) को एशिया में एमपॉक्स के नए और घातक स्ट्रेन के मामले की पुष्टि की, जो एक मरीज था और अफ्रीका से आया था.


अफ्रीका में एमपॉक्स के मामले और मौतें बढ़ रही हैं, जहां जुलाई से कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, बुरुंडी, केन्या, रवांडा और युगांडा में इसके प्रकोप की खबरें आई हैं. वहीं, (21 अगस्त) को कॉन्गो में मंकीपॉक्स के 1000 केस सामने आए थे. ये रोग जो संक्रमित जानवरों के वायरस के कारण होता है. इस बीमारी में मरीज को बुखार, मांसपेशियों में दर्द और त्वचा पर बड़े फोड़े जैसे घाव होने लगते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, बच्चों को इसका खतरा ज्यादा होता है.


WHO ने घोषिक की इमरजेंसी


इस मामले में मलेशिया की मोनाश यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विनोद आरएमटी बालसुब्रमण्यम का कहना है कि कभी माना जाता था कि मंकीपॉक्स की बीमारी मुख्य रूप से अफ्रीका तक ही सीमित है, लेकिन पिछले कुछ दिनों में स्वीडन, पाकिस्तान और फिलीपीन में भी मंकीपॉक्स के मामले सामने आए हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने पिछले हफ्ते ही कहा था कि एमपॉक्स के मामलों में हालिया वृद्धि के कारण इसे अंतरराष्ट्रीय चिंता का विषय और सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल घोषित किया जाना चाहिए.


अफ्रीका के बाहर मिले नए एमपॉक्स स्ट्रेन वैरिएंट 


डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एमपॉक्स के वायरस का तेजी से प्रसार हो रहा है और स्वास्थ्य पर इसके गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका है. पिछली बार ऐसा जुलाई 2022 में हुआ था. ऐसे में चिंता की बात यह है कि टेस्ट से पता चला है कि स्वीडन में पाया गया मामला वायरस के ज्यादा घातक क्लेड 1बी उपप्रकार से संक्रमण का है. यह पहली बार है जब अफ्रीका के बाहर इसका वैरिएंट पाया गया है. 


जानिए क्या है मंकीपॉक्स?


दरअसल, एमपॉक्स एक संक्रामक रोग है जो मंकीपॉक्स वायरस से होता है. यह ऑर्थोपॉक्सवायरस वायरस समूह से जुड़ा हुआ है. इस वायरस के परिवार में वैरियोला वायरस भी शामिल है, जो चेचक का कारण बनता है. मनुष्यों में एमपॉक्स का पहला रिकॉर्ड किया गया मामला 1970 में कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में सामने आया था. तब से, एमपॉक्स को दो ग्रुप में बांट दिया गया है. जिसमें क्लेड 1, जिसे पहले मध्य अफ्रीकी उपस्वरूप के रूप में जाना जाता था, जो अधिक घातक है. जबकि, दूसरे को क्लेड 2 के रूप में जाना जाता है.


मंकीपॉक्स के शिकार जानवर या व्यक्ति के शरीर से निकले संक्रमित फ्लूइड के संपर्क में आने से यह बीमारी एक दूसरे में फैलता है. सरल शब्दों में कहा जाए तो मंकीपॉक्स छुआछूत की बीमारी है. मंकीपॉक्स से पीड़ित व्यक्ति के आसपास रखी चीजों को छूने या फिर उसके संपर्क में आने से फैलता है. इस बीमारी में बंदरों में चेचक जैसी बीमारी के लक्षण दिखे थे. फिलहाल मंकीपॉक्स जैसी गंभीर बीमारी अब इंसानों में तेजी से फैल रहा है.


जानिए एमपॉक्स के लक्षण और बचाव के उपाय?




मंकीपॉक्स के केस भारत के साथ-साथ कई देशों में भी पाया जा रहा है. मंकीपॉक्स होने पर इसके लक्षण 6 से 13 दिन या फिर कई बार 5 से 21 दिन भी देखने को मिल सकता है. आमतौर पर मंकीपॉक्स से संक्रमित होने पर पांच दिन के भीतर बुखार, तेज सिरदर्द और शरीर में सूजन आदि जैसे लक्षण दिखने लगते हैं. इतना ही नहीं मंकीपॉक्स शुरुआत में चिकनपॉक्स, खसरा या चेचक जैसा दिखता है. हालांकि बुखार होने के एक या फिर तीन दिन के बाद ही स्किन पर इसका असर दिखता है.


जहां पूरे शरीर में दाने निकल जाते हैं. खासतौर पर हाथ-पैर, हथेली, पैर के तलवे और चेहरे पर छोट-छोटे दाने निकल जाते हैं. ऐसे में अगर, मंकीपॉक्स से बचना है तो सबसे पहले बंदरों और अन्य जानवरों के संपर्क में आना बंद कर दें. इसके अलावा अपने घर की सफाई करें. अगर आपको अपने आसपास किसी भी व्यक्ति में मंकीपॉक्स के लक्षण दिखते हैं तो तुरंत चिकित्सकों की सलाह लें.


भारत के लिए कितना बढ़ा है मंकीपॉक्स का खतरा?


साल 2022 से अब तक भारत में मंकीपॉक्स के कुल 30 मामले सामने आए हैं. आखिरी मामला मार्च 2024 में सामने आया था. भारत में मंकीपॉक्स का पहला मामला जुलाई 2022 में सामने आया था. WHO के मुताबिक, 2022 से अब तक दुनिया भर के 116 देशों में मंकीपॉक्स के 99,176 मामले सामने आ चुके हैं और 208 लोगों की मौत हो चुकी है. वहीं, एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत में मंकीपॉक्स के मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन अभी भी बड़े प्रकोप की संभावना कम है.


ऐसे में केंद्र की मोदी सरकार को मंकीपॉक्स की रोकथाम के लिए कई कदम उठाए जाने की जरूरत है, जिसमें कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग, संक्रमित लोगों को अलग-थलग करना और लोगों को जागरूक करना शामिल है. वहीं, समय पर इलाज और नियमित निगरानी से बड़ी महामारी के ख़तरे को कम किया जा सकता है. हालांकि, इसके प्रसार को रोकने के लिए स्वास्थ्य प्रोटोकॉल का पालन करना ज़रूरी है, जिसमें आइसोलेशन, स्वच्छता और समय पर इलाज शामिल हैं.




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