आरजेडी के सांसद मनोज झा ने महिला आरक्षण बिल पर बहस के दौरान राज्यसभा में ओम प्रकाश वाल्मीकि की कविता पढ़ी. कविता के पढ़े जाने के करीब एक हफ्ते बाद आरजेडी के ही ठाकुर नेता और विधायक चेतन आनंद आहत हो गए. इतने आहत कि उन्होंने खुलेआम अपनी ही पार्टी के सांसद मनोज झा की जाति को लेकर टिप्पणी कर दी. फिर बात इतनी बढ़ गई कि मामला ठाकुर बनाम ब्राह्मण का हो गया. इसकी वजह से बीजेपी के कुछ नेता और उनके चाहने वाले खुश हो गए कि अब तो आरजेडी के नेता आपस में ही लड़ रहे हैं, जिसकी आंच नीतीश कुमार तक तो जाएगी ही जाएगी और बीजेपी बिहार में इसका फायदा उठा लेगी, लेकिन क्या सच सिर्फ इतना सा ही है.


क्या ये सच है कि आरजेडी के नेता ब्राह्मण बनाम ठाकुर पर आपस में ही लड़ रहे हैं या फिर ये लड़ाई महज दिखावे की है, जिसमें बीजेपी को जातियों के चक्रव्यूह में घेरने की कोशिश हो रही है ताकि बिहार में ओबीसी के सबसे बड़े धड़े को आरजेडी लामबंद कर सके तो दूसरे धड़े को नीतीश कुमार और फिर बीजेपी के पास इस चक्रव्यूह की कोई काट ही न हो.


सबसे पहले आरजेडी के ही नेता चेतन आनंद ने जताया विरोध
अभी ऊपरी तौर पर देखने पर तो यही लगता है कि लालू यादव की बनाई और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चल रही आरजेडी में ठाकुर बनाम ब्राह्मण का विवाद अपने चरम पर है. मनोज झा ने ओम प्रकाश वाल्मिकी की कविता पढ़ी तो ठाकुर नेता चेतन आनंद आहत हो गए और अभी हाल ही में जेल से रिहा होकर आए उनके पिता और बाहुबली ठाकुर नेता आनंद मोहन अपने बेटे के समर्थन में खड़े हो गए, लेकिन ये प्रतिक्रिया फिलहाल इकतरफा है. पूरे प्रकरण में हमला मनोज झा पर है, जिन्होंने संसद में कविता पढ़ने के बाद चुप्पी साध रखी है. वहीं, आरजेडी नेतृत्व मनोझ झा के समर्थन में खड़ा दिख रहा है, क्योंकि संसद में पढ़ी उनकी कविता अब भी आरजेडी के एक्स हैंडल पर मौजूद है और उसे दमदार, जानदार और शानदार बताया गया है. तो क्या इसे महज यूं समझा जाए कि मनोज झा के खिलाफ दिया गया चेतन आनंद का बयान और फिर आनंद मोहन का उस बयान का समर्थन ठाकुरों की गोलबंदी भर है. ऊपर-ऊपर से ऐसा लग सकता है लेकिन जो लोग आनंद मोहन और उनकी राजनीति को जानते हैं, उनको पता है कि आनंद मोहन को अपनी जाति के लोगों को एकजुट करने के लिए ब्राह्मणों के खिलाफ बोलने की जरूरत नहीं है. उनका एक इशारा ही इस गोलबंदी के लिए काफी है.


बिहार की सियासत में जातियों का प्रभाव
तो फिर चेतन आनंद ने ये बयान क्यों दिया है? अगर इसको थोड़ा भी बेहतर ढंग से समझना है तो आपको जातियों के मकड़जाल में उलझे बिहार और वहां की सियासत को समझना होगा. इसको समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं है. ब्राह्मण और ठाकुर को बीजेपी का कोर वोटर माना जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद ओबीसी भी बीजेपी के पक्ष में लामबंद हुए हैं और दलित वोट भी बीजेपी के साथ जुड़ा ही हुआ है. अगर एक लाइन में कहें तो मंडल कमीशन की वजह से जातियों में बंटे हिंदुओं को बीजेपी ने फिर से हिंदू बना दिया है, लेकिन बिहार की कहानी अब भी अलग है. वहां अब भी हिंदू हिंदू न बनकर जातियों में बंटे हुए हैं. और अलग-अलग जातियों के लोग अलग-अलग पार्टियों के वोट बैंक हैं.


बीजेपी के साथ ब्राह्मण-ठाकुर वोट
अब भी बिहार में ब्राह्मण-ठाकुर बीजेपी का कोर वोटर है तो यादव आरजेडी का और कुर्मी-कुशवाहा नीतीश कुमार का. बिहार में नीतीश कुमार ने तेजस्वी यादव के साथ मिलकर जातिगत जनगणना वाला दांव चल ही रखा है, जिसका मकसद वही है जो कभी सोशलिस्ट पार्टी का था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी. यानी कि जातिगत जनगणना हो, आंकड़े जारी हों और तब आरक्षण से लेकर तमाम दूसरी प्रक्रियाओं को जातिगत आधार पर शुरू किया जाए. बिहार के ओबीसी जेडीयू-आरजेडी के इस मूव से प्रभावित भी हैं. लेकिन 2024 के चुनाव तक न तो ये जनगणना पूरी हो पाएगी और न ही आंकड़े जारी हो पाएंगे. तो फिर जेडीयू-आरजेडी इस मुद्दे को कैश कैसे करे. आखिर ओबीसी को लामबंद कैसे करें. इसका जवाब शायद वही है, जो आरजेडी के दो नेताओं मनोझ झा और आनंद मोहन ने शुरू किया है. कि अगड़ी जातियों के लोग आपस में लड़ें और जेडीयू-आरजेडी का शीर्ष नेतृत्व ये मैसेज देता रहे कि हम खुद को ए टू जेड की पार्टी कहते तो हैं लेकिन हमीं हैं जो ओबीसी के रहनुमा भी हैं. क्योंकि अंदरखाने की बात तो यही है कि न तो आरजेडी मनोज झा से किनारा करने वाली है और न ही चेतन आनंद और आनंद मोहन से. इस पूरे मसले पर अगर आप आरजेडी की एक्स की टाइमलाइन देखें तो पूरी कहानी साफ-साफ समझ में आने लगेगी.


मनोज झा के समर्थन में आरजेडी नेतृत्व
मनोझ झा के बचाव में या कहिए कि इस कविता के बहाने ओबीसी के समर्थन में जिसने-जिसने एक्स पर कुछ भी लिखा है, आरजेडी के हैंडल से उसे रीपोस्ट किया गया है. इतने बवाल के बावजूद मनोज झा के भाषण को दमदार, शानदार और जानदार बताने वाला ट्वीट अब भी आरजेडी के टाइमलाइन पर मौजूद है. तो जाहिर है कि आरजेडी तो मनोज झा के साथ खड़ी ही है. रही बात चेतन आनंद और उनके पिता आनंद मोहन की, तो नीतीश कुमार ने हर विरोध को झेलकर आनंद मोहन की रिहाई करवाई है. ऐसे में आनंद मोहन से भी न तो आरजेडी किनारा कर पाएगी और न ही जेडीयू. और जिस दिन दोनों लोग लालू यादव के पास बैठेंगे, शायद मसला सुलझ जाएगा. लेकिन न तो अभी आरजेडी चाहेगी कि मसला सुलझे और न ही जेडीयू, क्योंकि जितना ही ये मसला उलझेगा, उतना ही ओबीसी आरजेडी के पक्ष में लामबंद होगा और फिर बीजेपी को इसकी काट खोजने के लिए 2024 में और ज्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.


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