Thalapathy Vijay Party: दक्षिण भारत के एक और सुपरस्टार ने नई राजनीतिक पार्टी का ऐलान कर दिया है. अपने चाहने वालों के बीच थलपति के नाम से विख्यात तमिल ऐक्टर थलापति विजय ने नई राजनीतिक पार्टी बनाई है. उन्होंने इसे तमिझागा वेत्री कषगम (टीवीके) नाम दिया, लेकिन सवाल है कि क्या जिस तरह से विजय की फिल्में रिलीज के साथ ही बॉक्स ऑफिस पर छप्पर फाड़ कमाई करती हैं, वैसे ही उनकी पार्टी को भी झोली भरकर वोट मिलेंगे या फिर तमाम दूसरे फिल्म स्टार्स की बनाई पार्टी जैसा ही हश्र उनकी भी राजनीतिक पार्टी का होगा.
दक्षिण भारत में एमजी रामचंद्रन पहले ऐसे शख्स थे, जिन्होंने अपनी फिल्मी लोकप्रियता को राजनीति में भी भुनाया और उनकी बनाई पार्टी ऑल इंडिया द्रविड़ मुनेत्र कडगम को तमिलनाडु की सत्ता भी मिली. खुद एमजीआर मुख्यमंत्री बने. उनके बाद फिल्मों से ही राजनीति में आईं जयललिता भी एआईएडीएमके से तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. अब भी तमिलनाडु की दो सबसे प्रमुख राजनीतिक पार्टियों में एआईएडीएमके शामिल है.
डीएमके को भले ही सीएन अन्नादुरई ने बनाया था और वो उसके मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन पार्टी की असल पहचान और तमिलनाडु की राजनीति में उसकी स्थिरता तभी आई, जब पार्टी की कमान फिल्मों से राजनीति में आए एम करुणानिधि ने संभाली. अब भी इसी डीएमके के और इन्हीं करुणानिधि के बेटे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री हैं. इसके अलावा आंध्र प्रदेश में तेलगु देशम पार्टी भी ऐसी ही पार्टी है, जिसे तेलगु फिल्मों के मशहूर अभिनेता एनटी रामाराव ने बनाया था. वो अपनी पार्टी से मुख्यमंत्री भी बने, लेकिन असल में पार्टी अपने शिखर पर तब पहुंची, जब एनटीआर के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने पार्टी की कमान संभाली और फिर वो केंद्र में मंत्री से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक बने.
विजयकांत की पार्टी का क्या हुआ?
इन तीन पार्टियों के अलावा दक्षिण भारत का एक और स्टार रहा है, जिसने फिल्मों के अलावा राजनीति में भी अपनी जगह बनाई है. नाम है विजयकांत, जिनकी बनाई पार्टी है डीएमडीके यानी कि देसिया मुरपोकू द्रविड़ कड़गम. इस पार्टी के जरिए कैप्टन विजयकांत ने तमिलनाडु में साल 2006 का विधानसभा चुनाव लड़ा. 243 में से 242 सीटों पर विजयकांत को हार मिली, लेकिन अपनी खुद की सीट वो जीत गए.
2009 के लोकसभा चुनाव में विजयकांत की डीएमडीके को 10 फीसदी से ज्यादा वोट मिले और उनकी पार्टी तमिलनाडु की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई. 2011 के चुनाव में कैप्टन विजय ने एआईएडीएमके के साथ मिलकर 41 सीटों पर चुनाव लड़ा और 29 पर जीत दर्ज की. 2016 के चुनाव में कैप्टन विजय तमिलनाडु में मुख्यमंत्री पद के भी उम्मीदवार थे, लेकिन पाला बदलने की वजह से विजयकांत को कुछ हासिल नहीं हुआ. 2019 के लोकसभा औऱ 2021 के विधानसभा में भी विजयकांत को कुछ हासिल नहीं हुआ और 2023 में उनके निधन के बाद पार्टी भी खत्म होने की कगार पर है.
किन सुपरस्टारों ने पार्टी बनाई?
इन चार नाम के अलावा जितने भी सुपरस्टार रहे हैं, उन्होंने अपनी पार्टी तो बनाई, लेकिन कुछ खास हासिल नहीं कर सके. उदाहरण के तौर पर रजनीकांत, जिन्हें दक्षिण भारत में लोग भगवान की तरह पूजते हैं. चाहने वाले उन्हें थलाइवा कहते हैं. वो साल 1996 में तब से राजनीति में आना चाहते थे, जब वो अपने फिल्मी करियर के पीक पर थे. कभी डीएमके तो कभी बीजेपी तो कभी तमिल मनीला कांग्रेस को सपोर्ट करते-करते रजनीकांत ने 31 दिसंबर 2017 को ऐलान किया कि वो अपनी राजनीतिक पार्टी बनाएंगे. उ
उन्होंने पार्टी बनाई रजनी मक्कल मंदरम आरएमएम, लेकिन 12 जुलाई 2021 को उन्होंने पार्टी भंग कर दी और कहा कि अब वो राजनीति में नहीं आएंगे. अब भी रजनीकांत पर कयास लगाए जाते रहते हैं कि वो फिर से राजनीति में कदम रख सकते हैं, लेकिन पुराने अनुभव तो यही कहते हैं कि राजनीति में आकर भी वो उस लॉर्जर दैन लाइफ वाली छवि को स्थापित नहीं कर पाएंगे, जैसा उन्होंने सिनेमा में किया है.
बाकी पार्टी तो कमल हासन भी बना ही चुके हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में कमल हासन ने 37 उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन सब के सब हार गए. 2021 में उन्होंने खुद तमिलनाडु की कोयंबटूर साउथ सीट से विधानसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन वो बीजेपी की डॉक्टर वनती श्रीनिवासन से चुनाव हार गए थे.
साऊथ के सुपरस्टार चिरंजीवी ने तो साल 2008 में ही राजनीतिक पार्टी बनाई थी. नाम रखा था प्रजा राज्यम पार्टी. 2009 में जब आंध्रप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हुए तो चिरंजीवी की पार्टी ने 294 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी. खुद चिरंजीवी तिरुपति की सीट तो जीत गए थे, लेकिन पलाकोलु की सीट से वो हार गए थे. फरवरी 2011 में चिरंजीवी ने अपनी पार्टी को कांग्रेस के साथ मर्ज कर दिया और फिर 2012 में वो राज्यसभा चले गए. मनमोहन सिंह सरकार में वो मंत्री भी बने, लेकिन सरकार जाने के बाद मोदी सरकार आने के बाद से ही चिरंजीवी ने राजनीति से किनारा कर रखा है.
एक और सुपरस्टार पवन कल्याण के साथ भी यही हुआ. उन्होंने साल 2008 में राजनीति की शुरुआत अपने भाई चिरंजीवी की पार्टी प्रजा राज्यम पार्टी से की थी, लेकिन जब चिरंजीवी ने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस के साथ कर लिया तो साल 2014 में उन्होंने अपनी पार्टी बना ली जन सेना पार्टी. 2019 में पवन कल्याण की पार्टी ने आंध्र प्रदेश की 140 सीटों पर चुनाव लड़ा.
पवन कल्याण खुद दो सीटों से चुनाव लड़े, लेकिन वाईएसआर कांग्रेस के हाथों वो दोनों ही सीटों से चुनाव हार गए. उस चुनाव में उनका एक प्रत्याशी जीत दर्ज करने में कामयाब रहा था. अब 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए पवन कल्याण ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है. अब रहा सवाल इन बड़े-बड़े सुपर स्टार की नाकामयाबी का तो उसकी एक अलग कहानी है. और मोटा-माटी कहानी ये है कि जो पुराने सुपरस्टार फिल्मों के साथ-साथ राजनीति में भी कामयाब हुए, ये वो लोग थे, जिन्होंने अपनी फिल्मों में धार्मिक किरदारों को ज्यादा निभाया था.
लिहाजा दक्षिण भारत की जनता उन्हें भगवान की तरह पूजती थी. वो बात चाहे एमजीआर की हो या फिर एनटीआर की. लेकिन बदलते वक्त में जो नए ऐक्टर आए, जनता ने उनकी प्रतिभा को सिनेमा तक ही महदूद रखा और जब नेता चुनने की बारी आई तो जनता ने खांटी नेता ही चुना और यही वजह है कि एनटीआर और जयललिता के बाद दक्षिण भारत का कोई ऐसा सुपरस्टार नहीं हुआ, जिसने खुद के बल पर मुख्यमंत्री की कुर्सी पाई हो.
बाकी तो मोहन बाबू से लेकर प्रकाश राज तक और बालकृष्णा से लेकर खुशबू और राम्या तक दक्षिण भारत की राजनीति में बड़े नाम बन गए हैं, जिन्होंने भले ही खुद की कोई राजनीतिक पार्टी नहीं बनाई है, लेकिन अलग-अलग पार्टियों में उनकी मौजूदगी को दरकिनार नहीं किया जा सकता है.
वहीं उत्तर भारत में अमिताभ बच्चन से राजेश खन्ना, सुनील दत्त, गोविंदा, शत्रुघ्न सिन्हा, जया प्रदा और रवि किशन तक ने राजनीति में अपना एक मुकाम बनाया, लेकिन इसके लिए उन्होंने खुद की बनाई राजनीतिक पार्टी पर भरोसा न करके पहले से स्थापित पार्टियों को ही आजमाया और कामयाब भी हुए.
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