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...तो इसलिए शिवसेना को 'अचानक' याद आया मराठी मानुस!
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नई दिल्ली: शिवसेना ने अब एक बार फिर मराठी बनाम गैर मराठी का राग आलापा है. जानकारों का मानना है कि शिवसेना के अचानक मराठी राग अलापने के पीछे मकसद राज ठाकरे की पार्टी एमएनएस का समर्थन हासिल करना हो सकता है. शिवसेना को बीएमसी चुनाव में बहुमत हासिल नहीं है.
महाराष्ट्र में आज मराठी भाषा दिवस मनाया गया. इसी मराठी भाषा दिवस को हथियार बना कर शिवसेना ने अबकी बार एक बार फिर मराठी माणूस की बात छेड दी है..
बीएमसी में नगरसेवकों में किस समुदाय की कितनी भागीदारी?
बीएमसी में कुल 227 पार्षद चुने गए. इनमें 26 मुस्लिम, 24 गुजराती,14 उत्तर भारतीय, 5 दक्षिण भारतीय और 3 इसाई हैं. यानी इस बार 227 में 72 गैर मराठी पार्षद चुन कर आए हैं. पिछली बार ये संख्या 61 थी. साल 2012 के चुनाव में भी इनकी संख्या 61 थी.
शिवसेना का कहना है कि इस बार करीब एक तिहाई नगरसेवक गैर मराठी हैं और इसकी वजह मराठी वोटरों की संख्या का कम होना है. मराठी भाषियों के प्रति अचानक उमडे शिवसेना के इस प्रेम का राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने स्वागत किया है लेकिन समर्थन को लेकर उसने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं.
बीएमसी चुनाव में इस बार शिवसेना को 227 सीटों में 84 सीटें मिली हैं और उसे 4 निर्दलीय का समर्थन हासिल है. इसके बाद भी उसे बहुमत के लिए 26 सीटों की जरूरत है, ऐसे में उसकी नजर एमएनएस की 7 सीटों पर है.
शिवसेना इस समय भले ही मराठीवाद की बात कर रही हो लेकिन दिलचस्प है कि बीएमसी चुनाव के समय खुद शिवसेना ने 4 उत्तर भारतीय, 5 मुस्लिम और 7 गुजराती उम्मीदवारों को टिकट दिए थे.
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