कश्मीर पंडितों में कैलाश कहे जाने वाले- हरमुख-गंगबल की 13वीं यात्रा आज से शुरू हो गई है. मध्य कश्मीर के गंदेरबल में 16832 फीट की ऊंचाई पर बने भगवान शिव के वास माने जाने वाली हरमुख पहाड़ी पर बनी प्राक्रतिक झील तक की 36 किलोमीटर की यात्रा तीन दिन में पूरी हो जाएगी.
वहीं इस बार भी कोरोना प्रोटोकॉल के चलते यात्रा में शामिल होने वाले भक्तों की संख्या कम कर दी गई है. कोरोना संक्रमण के चलते इस साल सभी धार्मिक कार्यकर्मों पर रोक लगा दी गई थी और वार्षिक अमरनाथ यात्रा भी नहीं हो सकी थी. हालांकि अब अनलॉक के चलते दिए गए एसओपी के बाद यात्रा शुरू हो सकी है. हरमुख यात्रा का संचालन करने वाले हरमुख गंगे ट्रस्ट के अनुसार यात्रा की शुरुआत की पूजा नारानाग स्थित मंदिर में सोमवार सुबह हुई जिस के साथ ही यात्रा की औपचारिक शुरुआत हुई.
आम भक्तों के आने पर फ़िलहाल प्रतिबंध है
पूजा में पवित्र छड़ी मुबारक की पूजा हुई. नारारंग मंदिर 8वीं शताब्दी में राजा ललितादित्य के राज में निर्माण किया गया था. ट्रस्ट के प्रमुख विनोद पंडित के अनुसार कोरोना के चलते इस बार भी केवल छड़ी मुबारक को ही यात्रा के लिए जाने की अनुमति है और आम भक्तों के आने पर फ़िलहाल प्रतिबंध है. वहीं यात्रा के लिए जिल्ला प्रशासन ने पूरा प्रबंध किया था.
"यात्रा की पहली पूजा नारानाग में मंदिर में हुई और इस में गांदरबल की जिल्ला अध्यक्ष खुद शामिल रही"
इस बार यात्रा में 30 यात्रियों का एक जत्था है जिस के साथ सुरक्षा के लिए सेना, पुलिस और अर्धसैनिक बलों की टीम भी रखी गई है जब कि जिल्ला प्रशासन ने भी स्वस्थ और अन्य सुविधाएं भी प्राप्त करवाई हैं. यात्रा में शामिल लोग अगेल तीन दिन तक पैदल यात्रा कर 14 हज़ार 500 फीट ऊंचाई पर हिमालय की हरमुख पहाड़ी शंखला में बनी हरमुख गंगा पर शिव आराधना करेंगे.
हरमुख को कश्मीरी पंडित-कश्मीर के कैलाश के नाम से जानते हैं और अपने पुरखों के पिंडदान और श्राद्ध के लिए यहां आते हैं. साथ ही इस साल यह पूजा आज गंगा अष्टमी के दिन हुई. यात्रा में शामिल होने के लिए जम्मू से आई रितिका के अनुसार यात्रा के लिए वहीं महत्व है जो हरिद्वार और गंगा का बाकी देश के लोगों के लिए है.
2009 से फिर शुरू की गई यात्रा
कई दशकों तक बंद रहने के बाद एक कश्मीरी पंडित संगठन APMCC ने जून 2009 में यह यात्रा दोबारा शुरू की थी और तब से लगातार हर साल यात्रा के लिए नियंत्रित संख्या में तीर्थ यात्री यहां पूजा के लिए आते हैं. कश्मीरी पंडितों के लिए यह यात्रा इल लिए भी महत्वपूर्ण है कि जिस तरह बाकी देश में लोग काशी में गंगा पर जाकर अपने मृत परिजनों का श्राद्ध और पिंडदान करते हैं वैसे ही कश्मीरी पंडित हरमुख गंगे में यह पूजा करने आते हैं.
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