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जम्मू एयरफोर्स स्टेशन के ड्रोन हमले में हुआ गड्ढा छोटा, मगर चोट है बड़ी!

यह सच है कि भारत में पहली बार ड्रोन का इस्तेमाल कर किसी सैनिक ठिकाने को निशाना बनाने की कोशिश की गई है. वहीं साथ ही यह भी सच है कि इस खतरे को लेकर न केवल बात होती रही. बल्कि इस चुनौती से निपटने की तैयारियां भी होती रही.

नई दिल्लीः जम्मू के सतवारी एयरफोर्स स्टेशन पर ड्रोन के जरिए हुए हमले मैं नुकसान पहले ही कम हुआ हो. मगर इस वारदात ने सुरक्षा तंत्र में चूक के कई बड़े सवाल ज़रूर खड़े किए हैं. क्योंकि यह एक ऐसा खतरा था जिसके बारे में बीते कुछ सालों से लगातार न केवल बात हो रही थी बल्कि इसकी आमद के निशान भी मिल रहे थे. इस चुनौती से निपटने की तैयारियां भी चलती रही हैं. ऐसे में तमाम तैयारियों के बावजूद एयरफोर्स स्टेशन की इमारत में हुआ गड्ढा,नाक पर लगी चोट की तरह देश को तिलमिलाने के लिए काफी है. 

भारतीय वायुसेना के साथ मिलकर केंद्रीय गृह मंत्रालय की तरफ से 10 मई 2019 को जारी एसओपी गाइडलाइन साफ तौर पर रिमोट संचालित छोटे विमानों को गैर-पारंपरिक खतरे के तौर पर चिह्नित करती हैं. साथ ही बाकायदा इनसे निपटने के इंतजामों को स्पष्ट करती हैं. केंद्रीय नागरिक उड्डयन मन्त्रालय से 2018 में ड्रोन सम्बन्धी नियमावली और गृह मंत्रालय की गाइडलाइंस सभी राज्य सरकारों और जिला प्रशासन को निर्देशित करती हैं कि ड्रोन रखने वाले हर शख़्स का पंजीयन किया जाए. साथ ही ताकीद करती हैं कि बिना इजाजत और खासतौर पर संवेदनशील प्रतिष्ठानों और सैन्य ठिकानों के नज़दीक निर्धारित दायरे में किसी भी हालत में बिना अनुमति ड्रोन संचालन नहीं किया जाए. वहीं यदि कोई दुष्ट ड्रोन इजाजत के बिना प्रबंधित इलाके में पाया जाता है तो इसके खिलाफ मार गिराने जैसी सख्त कार्रवाई की जाए. 

हालांकि रिटायर्ड एयरफोर्स अधिकारी और ड्रोन तकनीक के जानकार ग्रुप कैप्टन आरके नारंग जैसे विशेषज्ञ कहते हैं कि वायुसेना के पास अधिकतर रडार और एयर डिफेंस सिस्टम बड़े आकार व तेज़ रफ़्तार वाले विमानों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए हैं. कम ऊंचाई और धीमी रफ्तार से उड़ने वाले छोटे उड़नखटोलों की पहचान मौजूदा रडार सिस्टम्स के लिए कठिन है. बल्कि इनको नंगी आंखों से देखना अधिक आसान है. 

हालांकि सेंटर फॉर एयरपॉवर स्टडीज़ जैसे सैन्य थिंकटैंक में वर्षों तक ड्रोन चुनौतियों पर काम करते रहे नारंग कहते हैं कि सतवारी की घटना ने त्वरित तौर पर सिस्टम इंटीग्रेशन की ज़रूरत को बढ़ा दिया है. यानी सैन्य और नागरिक क्षेत्र में सभी महत्वपूर्ण प्रतिष्ठानों की सुरक्षा के लिए RPA या ड्रोन विमानों की पहचान का तंत्र को मजबूत करना होगा. यह खतरा इसलिए भी गंभीर है क्योंकि दिन ब दिन ड्रोन की तकनीक सस्ती और कारगर होती जा रही है. जिसका फायदा दुनियाभर के आतंकी संगठन उठाने की फिराक में है. 

यह सवाल उठना लाज़िमी है कि 2018 में आई CAR( सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट) और 2019 की एसओपी में साफ तौर पर उल्लेख के बावजूद आखिर बीते 2-3 सालों में क्यों शैतान ड्रोन कारस्तानियों की नकेल नहीं कसी गई? आखिर कैसे सैन्य स्टेशनों के करीब इजाजत न होने के बावजूद जम्मू में ड्रोन उड़ाया भी गया और उसके जरिए हमले को अंजाम भी दे दिया गया? साथ ही इस बात की भी चिंताएं गहराई हैं कि अगर देश में एयरफोर्स स्टेशन जैसी जगह ड्रोन हमलों से महफूज नहीं तो अन्य रणीतिक प्रतिष्ठानों,राष्ट्रीय भवनों, वीआईपी आवासों आदि को ऐसे हमलों से सुरक्षित रखने के इंतज़ाम क्या दुरुस्त हैं?

यह सवाल न छोटे हैं और न गैर-जरूरी. कयोंकि यह देश की सुरक्षा से जुड़े हैं और इनको नज़रअंदाज़ करने का खतरा कितना गम्भीर है इसकी बानगी जम्मू के सतवारी एयरफोर्स स्टेशन पर हुए हमले में नज़र आ ही गया है. 

इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत की सरहदों पर और खासतौर पर जम्मू-कश्मीर के इलाके में इस हमले का आहट लगातार सुनी जा रही थी. खुफिया रिपोर्टों में जहाँ इस तरह की वारदातों को लेकर अंदेशा जताया जाता रहा. वहीं बीते एक साल के दौरान कई बार जम्मू क्षेत्र में पाकिस्तान से सटी सीमा पर न केवल ड्रोन के जरिए हुई हथियार डिलेवरी बरामद की गई. बल्कि, पाकिस्तानी ड्रोन भी मार गिराए गए. ठीक एक साल पहले बीएसएफ ने कठुआ इलाके में अंतरराष्ट्रीय सीमा के करीब पाकिस्तान का हैक्ज़ाकॉप्टर मार गिराया था. 

आकार में 8 फुट गुणा 6 फुट बड़े इस हैक्ज़ाकॉप्टर ड्रोन के साथ ही मेड इन चाइना 7 ग्रेनेड और एम4 कार्बाइन समेत हथियार व गोला बारूद बरामद हुआ था. इसके अलाव लगातार सीमा के करीब जासूसी, नशीली दवाओं के लिए ड्रोन उड़ाए जाने का सिलसिला जारी रहा है. लेकिन सीमा के करीब अक्सर यह ड्रोन अपना काम कर फरार हो जाते हैं वहीं कभी छोटे-मोटे  ड्रोन मार भी गिराए गए तो उससे न यह सिलसिला बंद हुआ और न सरहद पार के ड्रोन उड़ानबाजों के मंसूबो पर कोई फर्क पड़ा. यहां तक कि एयरफोर्स स्टेशन सतवारी की घटना के बाद भी रतनुचक और कालूचक मिलिट्री एरिया में 27-28 जून की मध्यरात्रि भी दो जगह ड्रोन एक्टिविटी देखी गई. वहीं संवेदनसील सैन्य इलाका होने के कारण इन ड्रोन पर फायरिंग भी की गई. जिसके बाद दोनों ड्रोन भाग गए.

ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि सशस्त्र सेनाओं कयव ड्रोन किल सिस्टम परियोजनाओं की रफ्तार बढ़ेगी. ताकि जल्द से जल्द इन इंतजामों को सैन्य ठिकानों पर मुकम्मल किया जा सके. ध्यान रहे कि सेना मुख्यालय में पहले से ही एक ऐसे दरों किल सिस्टम की खरीद प्रक्रिया चल रही है जो 4 किमी के दायरे और 4500 मीटर की ऊंचाई तक उड़ने वाले किसी भी रिमोट संचालित पायलट रहित विमान को मार गिराने में सक्षम होगा. साथ ही रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन भी कई ड्रोन-निरोधक तकनीकों और जैमर प्रणालियों पर काम कर रहा है.

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