हैदराबाद के निजाम: ओटोमन साम्राज्य से था रिश्ता, तोहफों में देते थे हीरे, विरासत के लिए गले भी कटे
हैदराबाद के निजाम एक समय दुनिया के सबसे अमीर शख्सों में पहले नंबर पर आते थे. ब्रिटेन की महारानी का ताज भी उनके दिए हीरों से चमकता था. निजाम परिवार का इतिहास भी दिलचस्प है
हैदराबाद की निजामशाही के 8वें निजाम मुकर्रम जाह बहादुर का बीती 14 जनवरी को इंस्ताबुल में निधन हो गया. मुकर्रम जाह 89 साल के थे. मुकर्रम जाह बहादुर तत्कालीन हैदराबाद रियासत के 8वें निजाम थे. इस्तांबुल में निधन के बाद , जाह बहादूर की अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उनके पार्थिव शरीर को दफनाने हैदराबाद लाया गया. उनके शव को चौमहल्ला पैलेस में रखा गया. चौमहल्ला पैलेस में जनता ने 18 जनवरी 2023 को उन्हें अंतिम विदाई दी . उन्हें मक्का मस्जिद हैदराबाद में दफनाया गया.
हैदराबाद के आठवें निजाम थे मुकर्रम जाह
8 सितंबर, 1948 को हैदराबाद के भारत में विलय के बाद, हैदराबाद निजाम की उपाधि मिलती रही है. 1967 में अपने दादा की मृत्यु के बाद मुकर्रम जाह आठवें निजाम बने थे. 25 जनवरी को मुकर्रम जाह के सबसे बड़े बेटे अजमेत जाह को उनके परिवार के सदस्यों ने 9वां निजाम बनाया. अजमेत जाह एक निजाम की तरह ही रहेंगे लेकिन वो अपने नाम के आगे निजाम शब्द का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं. इसलिए अंतिम निजाम की उपाधी मुकर्रम जाह बहादुर को दी गई.
बता दें कि फ्रांस में पैदा हुए हैदराबाद के आखिरी निजाम को पिता राजकुमार आजम जाह और मां से कई महल विरासत में मिले हैं. मुकर्रम जाह की मां ओटोमन साम्राज्य की राजकुमारी थीं.
1980 के दशक में दुनिया के सबसे अमीर आदमी हुआ करते थे 'निजाम'
मुकर्रम जाह को विरासत में 236 बिलियन अमेरीकी डॉलर की दौलत मिली थी. 1980 के दशक तक वो दुनिया के सबसे अमीर आदमी हुआ करते थे. लेकिन वो दौर भी आया जब मुकर्रम जाह ने बहुत कुछ खो दिया. मुकर्रम जब ऑस्ट्रेलिया गए तब हैदराबाद में उनकी जायदाद लूट ली गई, कीमती कलाकृतियों को बेहद ही कम दामों में बाजार की कीमतों पर बेचा जाने लगा. कर्ज चुकाने और अपने वंशजों की तरह जीवन शैली को बरकरार रखने में बहुत पैसे खर्च हुए.
उनकी मृत्यु के समय उनके पास 1 बिलियन अमरीकी डॉलर थे. जाह मुकर्रम जो पगड़ी पहनते था उसमें शुतुरमुर्ग के अंडे के साइज के बराबर हीरा लगा था. जिसकी कीमत 50 मिलियन पाउंड थी. जाह मुकर्रम ने लंदन बैंक की तिजोरियों में भी कुछ संपत्तियां जमा की थी अब संपत्ति का 20 फीसदी हिस्सा उनकी वारिसों को विरासत में मिलेगा. इतनी संपत्ति से निजाम की पीढ़ी इंस्ताबुल में नए महल खरीद सकती है.
मुकर्रम के पास थे बेशकीमती गहने
अंतिम निजाम के पास 173 तरह के कीमती गहने थे जिनकी कीमत 2 बिलियन थी. साल 1995 में भारत सरकार 33 मिलियन में इन सभी आभूषणों को खरीद लिया था . इसमें सबसे मशहूर और महंगा गहना स्पार्कलिंग जैकब हीरा था, जो शुतुरमुर्ग के अंडे का आकार है जिसका वजन 184.79 कैरेट है और इसकी कीमत 50 मिलियन है. आखिरी निजाम ने महारानी एलिजाबेथ 2 को उनकी शादी के दौरान गहने तोहफे में दिए थे, जो वो अपने अंतिम समय तक पहनती थीं. इन गहनों को "हैदराबाद के निजाम नेकलेस" कहा जाता है.
आखिरी निजाम के पास उनकी मृत्यु के समय कुल 14,718 कर्मचारी थे और उनके मुख्य महल में, लगभग 3,000 अंगरक्षक थे, पानी पिलाने के लिए 28 नौकर 38 नौकर झूमर का धूल साफ करने के लिए थे.
कई नौकर खास तरह के अखरोट पीसने के लिए और कई इन अखरोटों को निजाम को खिलाने के लिए थे. कुछ नौकर अंतिम निजाम को सुपारी पीस कर खाने के लिए देने को रखे गए थे. इतना सब कुछ होने के बावजूद अंतिम निजाम सिगरेट का सबसे सस्ता ब्रांड पीना पंसद करते थे, और उनकी वेशभूषा एक आम इंसान की तरह ही थी.
भारत सरकार ने जाह को क्या सुविधाएं दी थी
भारत सरकार की तरफ से निजाम के तौर पर जाह को एक राजकुमार की तरह भत्ता मिलता था. साथ ही जाह को आधिकारिक मान्यता भी प्रदान की गई थी. जाह को 1996 तक, रुस्तम ऑफ द एज (रुस्तम-ए-दौरन), द अरस्तू ऑफ द टाइम्स (रुस्तम-ए-दौरन) , द रूलर ऑफ द किंगडम, द कॉन्करर ऑफ डोमिनियन्स, द रेगुलेटर ऑफ द रियल्म, द विक्टर इन बैटल एंड द लीडर ऑफ आर्मीज, वाल ममलुक, नाइट ग्रैंड कमांडर ऑफ द मोस्ट एक्सीलेंट ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, निजाम उद दौला नवाब मीर की उपलब्धियां मिली हुई थीं.
मुकर्रम जाह ने अंग्रेजी, उर्दू और फारसी सीखी थी, और उन्हें आधुनिक हैदराबाद के प्रतिभाशाली वास्तुकार होने का खिताब भी दिया जाता है.
जाह ने की थी 5 शादियां
मुकर्रम जाह ने पांच शादियां की थी. तीसरी, चौथी और पांचवीं शादी - मनोल्या ओनुर, जमीला बौलारस और आयशा अर्काइड से तलाक के बाद खत्म हो गई. जाह के परिवार में उनकी पहली शादी से एक बेटी, शेखर जाह है; दूसरी शादी से एक बेटा, आजम, उनकी तीसरी शादी से एक बेटी, निलुफर जाह; एक भाई, मुफ्फखम और एक पोता है दूसरी शादी से एक और बेटा उमर था जिसकी मौत साल 2004 में हो चुकी है.
कैसे शुरू हुई निजामी प्रथा
निजामों का ताल्लुक उज्बेकिस्तान के समरकंद से है, जो मुगल बादशाह शाहजहां के शासनकाल में भारत आए थे. समरकंद से आए इन निजाम परिवारों ने दक्कन की सूबेदारी पर कब्जा करके अपनी किस्मत बदली.
निजाम परिवारों ने 1724 में मुगल बादशाह के नियुक्त पदाधिकारी को हराया और मार डाला. ये वही दौर था जब औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का विघटन हो रहा था. इसी दौर में हैदराबाद के निजाम महबूब अली खान थे.
परिवार में ही हुई मसनद के लिए मार-काट
1748 में निजाम उल मुल्क यानी महबूब अली खान की मृत्यु हो गई. उसी साल ऐक्स-ला-चैपल की संधि पर हस्ताक्षर किए गए थे और यूरोप में युद्ध को समाप्त कर दिया गया था . इस जंग के खत्म होते ही हैदराबाद निजाम परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई शुरू हो गई. महबूब अली खान के छह बेटे और बेटियां थी.
मसनद यानी सिहांसन का दावा करने वाला बड़ा बेटा नासिर जंग , दूसरा बेटा गाजीउद्दीन थे. बता दें कि गाजियाबाद का नाम गाजीउद्दीन के नाम पर ही पड़ा है. बड़े बेटे नासिर जंग को सत्ता दे दी गई. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक सत्ता मामा को मिलने के बाद महबूब अली खान के नाती ने नासिर जंग के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया, इस युद्ध में भांजे ने मामा का सर काट दिया.
तीन साल में मारे गए तीन दावेदार
नासिर जंग की मौत के बाद मुगल सम्राट ने गाजीउद्दीन फिरोज जंग को सूबेदार के रूप में नियुक्त किया. गाजीउद्दीन उस समय दिल्ली के पास रहते थे. जब वो मसनद यानी गद्दी पर बैठने हैदराबाद आए तो सौतेली मां ने उन्हें जहर दे कर मार दिया. बाद में मुजफ्फर जंग को भी किसी ने भाला फेंक कर मार दिया. इस तरह तीन सालों में सिंहासन के तीन दावेदार मारे गए. निजाम उल मुल्क के तीसरे बेटे सलाबत जंग को फ्रांसीसियों ने हैदराबाद का सूबेदार नियुक्त किया.
1762 में सलाबत जंग को निजाम उल मुल्क के चौथे बेटे निजाम अली खान ने जेल भिजवा दिया, और बाद में भाई की हत्या भी करवा दी. इसके बाद निजाम अली खान को हैदराबाद का निजाम बनाया गया.
इतिहासकारों के मुताबिक दक्कन की सूबेदारी की भूमिका के लिए निजाम अली खान ने सबसे पहले निजाम की उपाधि हासिल की थी. निजाम मीर उस्मान अली खान ने पाकिस्तान के साथ 1965 के युद्ध के बाद राष्ट्रीय रक्षा कोष से 5,000 किलोग्राम सोना दान किया था. द मिरर की रिपोर्ट के मुताबिक निजाम अली खान के पास 86 दासियां थी, और 100 नाजायज बेटे थे. तब के इतिहासकार दक्कन लिखते थे क्योंकि हैदराबद दक्कन के पठार पर मूसी नदी के किनारे स्थित है.
लेकिन1862 में सनद संख्या XX में इस बात कि जिक्र है कि उनके राज्य का कोई भी उत्तराधिकार, जो मुहम्मडन कानून और उनके परिवार के रीति-रिवाजों के मुताबिक रहता है' को ही मसनद दिया जाएगा. तब अफजल उद दौला के बेटे महबूब अली को शासक बना दिया गया था जब वह तीन साल का बच्चा था.
न्यूयॉर्क टाइम की रिपोर्ट के मुताबिक निजाम के रूप में सात पीढ़ियों ने 18 सितंबर, 1948 तक हैदराबाद क्षेत्र पर शासन किया. महबूब अली के बेटे उस्मान अली खान की सेना ने भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. लेकिन निजाम की उपाधि का इस्तेमाल जारी रहा और एक समझौते पर सहमति हुई. इस समझौते के तहत "हैदराबाद के निजाम और उनके परिवार के सभी सदस्यों महामहिम की तरह रहेंगे. "