पटना: बिहार की सियासत में एक बार फिर भूत पिशाच और तंत्र मंत्र की चर्चा जोरों पर है. दरअसल नए साल के पहले दिन बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कुछ पत्रकारों और नेताओं के साथ एक अनौपचारिक बात चीत के दौरान ये कहा था कि लालू-राबड़ी जब 2006 में मुख्यमंत्री आवास छोड़ रहे थे तब इस बंगले से मिट्टी काटकर अपने साथ ले गए थे. इतना ही नहीं घर के अंदर दीवारों पर तंत्र कर कुछ पुड़िया छोड़कर गए थे. अब इस बात को विपक्ष ने भी तूल दे दिया.


आरजेडी की तरफ से सीनियर नेता शिवानन्द तिवारी ने मोर्चा संभालते हुए हमला बोला है. तिवारी ने कहा, ''लालूजी ने एक मर्तबा मुझे बताया था कि पटना के दरभंगा हाउस के काली मंदिर में नीतीश कुमार ने मारक पूजा करवाई थी. यह पूजा लालू यादव को लक्ष्य कर कराया गई थी. जब वहां के पुजारी को पता चला कि यह पूजा लालू जी को नुक़सान पहुंचाने के लिए कराई जा रही है. उस पुजारी ने यह जानकारी लालू जी को पहुंचा दी. शायद लालूजी की ओर से भी इसके लिए इंतज़ाम किया गया था. हालांकि, मुझे इन चीजों पर विश्वास नहीं है. इसलिए यह बात मेरे स्मृति से उतर गई थी. नीतीश जी की भूत वाली बात से यह कहानी अचानक स्मरण में आ गई.''


नीतीश पर हुए हमले का बचाव करने के लिए नीतीश के कैबिनेट में डिप्टी सीएम सुशील मोदी ने पलटवार किया. सुशील मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, ''नया साल बिहार के लिए विधानसभा चुनाव का वर्ष है, इसलिए सभी नागरिकों को हर तरह के दुष्प्रचार, अफवाह, तथ्यहीन बयानबाजी और अंधविश्वास में भरोसा करने वालों से लगातार सावधान रहने की जरूरत है. बिहार में 15 साल राज करने वाले लालू प्रसाद को जब जनता ने सत्ता से बाहर किया था, तब काफी दिनों तक उन्होंने मुख्यमंत्री आवास नहीं छोड़ा और नीतीश कुमार को सर्किट हाउस से सरकार चलानी पड़ी थी. जाते समय लालू प्रसाद मिट्टी तक ले गए थे. भूत-प्रेत और तंत्र-मंत्र को मानने वाले लालू प्रसाद ने बाद में एक तांत्रिक को पार्टी का उपाध्यक्ष तक बना दिया था. जिन्हें जनता पर भरोसा नहीं, वे राज्य का भला क्या करेंगे?''


ट्वीट की सीरीज में सुशील मोदी ने आगे लिखा, ''लालू प्रसाद ने सूर्य ग्रहण में बिस्कुट खाने और सूचना क्रांति को 'आइटी-वाइटी' बताकर मजाक उड़ाते हुए बार-बार साबित किया कि उनकी सोच लालटेन युग वाली है, और इसीलिए उन्होंने बिहार का विकास नहीं होने दिया. आज भले ही उनके बेटे चार्टर विमान में केक काट कर बर्थ डे मनाएं, लेकिन आम जनता के लिए वे बुलेट ट्रेन और मेट्रो रेल तक का विरोध करते हैं.''

उन्होंने आगे लिखा, ''लालू प्रसाद एक समुदाय को बेवजह डराने के लिए नये नागरिकता कानून पर भूत-प्रेत वाली पुड़िया छिड़कने में लगे हैं, जबकि यह कानून भारत में किसी भी धर्म को किसी भी तरह प्रभावित नहीं करता, न इसमें किसी से नागरिकता छीनने का प्रावधान है. यह कानून तीन देशों में प्रताड़ित हिंदू-ईसाई-सिख आदि अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थियों को नागरिकता देने वाला है. इनमें 65 फीसद दलित और आदिवासी समाज से हैं. लालू प्रसाद किसी दलित नेता को शंकराचार्य घोषित कर उसका उपहास तो करा सकते हैं, लेकिन दलितों को देश की नागरिकता देने का विरोध कर रहे हैं.''