‘चीन’ की दुखती रग भारत के हाथ में ! हमेशा इसे लेकर डरा रहता है ‘ड्रैगन’
भारत और चीन के बीच जारी तनाव के बीच चीन को हमेशा जमीन से ज्यादा समुद्र का डर सताता है. 2003 में ही चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ ने इस पर चिंता जताई थी.
नई दिल्ली: भारत और चीन के रिश्तों में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है. हालांकि चीन के लिए चिंता का कारण है मल्लका जलसंधि. मल्लका जलसंधि हिंद महासागर में है और चीन का अधिकांश कारोबार इसी जलमार्ग से होता है.
चीन को हमेशा इस बात का डर सताता रहता है कि अगर भारत के साथ तनाव ऐसे ही बढ़ते रहे तो भारत कहीं इस रास्ते को रोक न दें. अगर भारत ऐसा करता है तो चीन के लिए बहुत बड़ा झटका होगा. 2003 में ही चीन के तत्कालीन राष्ट्रपति हू जिंताओ इस समुद्री रास्ते को लेकर अपनी चिंता जता चुके हैं. उन्होंने इसे मलक्का दुविधा कहा था.
चीन की करीब 80 फीसद तेल की आपूर्ति इसी मलक्का जलसंधि मार्ग से होती है. अगर भारत इस रास्ते को रोकता है तो चीन के जहाजों को लंबा रास्ता चुनना होगा और यह चीन के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक बोझ होगा. एक अनुमान के मुताबिक अगर यह रास्ता बंद होता है और चीन के जहाज ने लंबा रास्ता चुनते हैं तो चीन को एक साल में 84 अरब से लेकर 200 अरब डॉलर तक का आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है.
चीन अपनी इस कमोजरी को अच्छी तरह से जानता है और इसका विक्लप ढूंढने की कोशिश भी करता है. चीन थाइलैंड को साथ लेकर इस्थमस नहर बनाना चाहता है, जिसे थाई कैनाल के नाम से भी जाना जाता है.
इस नहर के बन जाने के बाद चीनी जहाज़ों पर मलक्का जलसंधि से आने-जाने की मज़बूरी नहीं रहेगी. हालांकि थाईलैंड ने हाल ही में इस परियोजना से मना कर दिया है.
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