मध्यप्रदेश: राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद संविधान निर्माता डॉ. बीआर अंबेडकर की जयंती पर शनिवार को उनकी जन्मस्थली पहुंचने वाले देश के पहले राष्ट्रपति बन गए. महू पहुंचने के बाद राष्ट्रपति ने नागरिकों को 'विभाजनकारी ताकतों' के प्रति आगाह करते हुए 'सामाजिक समसरता' पर जोर दिया और कहा कि भारतीय समाज को 'समर की नहीं, बल्कि समरसता' की जरूरत है.


राष्ट्रपति महू में प्रदेश सरकार की ओर से आयोजित 127वीं अंबेडकर जयंती समारोह को मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित कर रहे थे. इस समारोह को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, "देश में मुझसे पहले 13 राष्ट्रपति हुए हैं. मुझे पता चला है कि मैं अंबेडकर जयंती पर संविधान निर्माता की जन्मस्थली पहुँचने वाला पहला राष्ट्रपति हूँ." बता दें कि महू संविधान के निर्माता अंबेडकर की जन्मस्थली है.


राष्ट्रपति ने महू के काली पल्टन इलाके में अंबेडकर की जन्मस्थली पर 10 साल पहले प्रदेश सरकार के बनाए स्मारक पर श्रद्धा से सिर झुकाएं. इसके साथ ही, दलित समुदाय के लोगों के साथ भोजन भी किया. उन्होंने देश भर से आए हजारों अंबेडकर अनुयायियों की मौजूदगी में कहा, "मुझे राष्ट्रपति के रूप में उस संविधान की रक्षा का दायित्व मिला है, जिसके प्रमुख निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर थे. अगर मैं राष्ट्रपति बनने के बाद उनकी जन्मस्थली पर माथा नहीं टेकता, तो मुझे अपने अंतर्मन में ग्लानि होती."


राष्ट्रपति ने भारतीयता के सम्बंध में अंबेडकर के विचारों का हवाला देते हुए कहा कि सभी नागरिकों को विभाजनकारी तत्वों की बातों पर ध्यान नहीं देते हुए देशहित को सबसे ऊपर रखना चाहिए और हमेशा खुद को भारतीय मानना चाहिए. उन्होंने कहा, "समभाव यानी बराबरी के भाव और ममभाव यानी अपनेपन के भाव को जोड़ने से समरसता का भाव पैदा होता है. समाज को आज समर (युद्ध) की नहीं, बल्कि समरसता की जरूरत है. अहिंसा और शांति की जरूरत है."


राष्ट्रपति ने आगे कहा, "मैं सभी देशवासियों, विशेषकर युवाओं से अपील करता हूं कि वे अंबेडकर के बताए शांति, सौहार्द और भाईचारे के रास्ते पर चलें और एकजुट होकर उनके सपनों का भारत बनाने का संकल्प लें." उन्होंने इस मौके पर कहा, "आंबेडकर ने संविधान सभा में दिए अपने अंतिम भाषण में कहा था कि अब हमारे पास विरोध व्यक्त करने के संवैधानिक तरीके मौजूद हैं. इसलिए हमें अराजकता से बचना चाहिए."


उन्होंने कहा, "हमारा देश लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के आधार पर चलता है. आज जरूरत है कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं से गुजरते हुए हम अपनी सक्रिय भूमिका निभाएं और भले एवं बुरे की पहचान के प्रति हमेशा जागरूक रहें." राष्ट्रपति कोविन्द ने देश के प्रति अंबेडकर के योगदान को याद करते हुए कहा कि उन्होंने अनुसूचित जाति-जनजातियों, पिछड़ों, वंचितों, श्रमिकों और महिलाओं के हितों के लिए हमेशा अहिंसक संघर्ष किया. वह संवाद के जरिए कई विषयों पर सहमति बनाते थे.


राष्ट्रपति ने "जय भीम, जय हिंद" का नारा लगाते हुए कहा, "जय भीम का मतलब है- डॉ. अंबेडकर की जय. उनकी विरासत, आदर्शों और उनके द्वारा देश को दिए गए संविधान की जय." उन्होंने जोर देकर कहा कि अंबेडकर के निर्मित संविधान से मिले अलग-अलग अधिकारों के कारण देश के सभी समुदायों के नागरिक गरिमापूर्ण जीवन जी सकते हैं.