शरणार्थियों ने पूछा सवाल- नागरिकता कानून का विरोध कर रहे लोगों को कैसे बताएं अपना दर्द?
पाकिस्तान के सिंध से भागकर आए दयाल दास दर्द के साथ पूछते हैं कि आखिर कौन अपना घर-बार छोड़कर जाता है? बीजेपी सांसद लालवानी ने सरकार के साथ इस मामले को उठाने की बात भी कही.
नई दिल्ली: अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का राज आया तो काबुल में रह रहे प्यारा सिंह जैसे कई सिख अपना सबकुछ छोड़ जान बचाने के लिए भारत आ गए. आज भी जब वो भारत में अपने आने और इस मुल्क में बने रहने की कहानी बयां करते हैं तो गला रुन्ध जाता है. उनके जैसे अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए कई हिन्दू शरणार्थियों की शिकायत है कि नागरिकता संशोधन कानून का विरोध कर रहे लोग उनकी बात न सुनने को तैयार है और न समझने को राजी.
राजधानी दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में प्यारा सिंह समेत ऐसे कई शरणार्थी मंगलवार को जमा हुए जो पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से धार्मिक प्रताड़ना झेलने के बाद शरण लेने भारत आए और वापस नहीं गए. पाकिस्तान के सिंध से भागकर आए दयाल दास दर्द के साथ पूछते हैं कि आखिर कौन अपना घर-बार छोड़कर जाता है? मज़हब के आधार पर शोषण न होता तो शायद हम भी पाकिस्तान में ही रह रहे होते. दिल्ली के मजनूं का टीला इलाके के निवासी दयाल दास के साथ कार्यक्रम में उनकी एक माह की पोती भी मौजूद थी जिसका नाम उन्होंने नए संशोधन कानून के आधार पर ही 'नागरिकता' रखा है. गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने भी एक रैली में बीते दिनों नागरिकता के नामकरण का ज़िक्र किया था.
पीड़ितों के इस जमावड़े को सम्बोधित करने बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ विनय सहस्रबुद्धे और इंदौर से सांसद शंकर लालवानी भी पहुंचे थे. साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे सामाजिक कार्यकर्ता भी थे जो पहले खुद भारत आए और अब इन मुल्कों से आए अन्य शरणार्थियों के कल्याण के लिए काम कर रहे हैं. कार्यक्रम में डॉ सहस्रबुद्धे ने कहा कि घुसपैठियों और शरणार्थियों के बीच अंतर करना ज़रूरी हैं. हर देश करता है. जो लोग इस कानून का विरोध कर रहे हैं वो सिर्फ बंटवारे की राजनीति कर रहे हैं. यह किसी जाति धर्म को अलग नहीं करता बल्कि सबसे ज़्यादा पीडितों के लिए बस कुछ विशेष प्रावधान करता है. ऐसा कैसे सम्भव है कि अत्याचार पीड़ित के साथ ही उस पर अत्याचार करने वाले को भी आने दिया जाए.
वहीं इस संवाद कार्यक्रम में शकंर लालवानी का कहना था कि नागरिकता मिलने के बाद पड़ोसी मुल्कों से आए ऐसे प्रताड़ित लोगों के लिए एक कल्याण बोर्ड भी बनना चाहिए जो इन्हें समान अवसर देने और इनका जीवन स्तर सुधरने के लिए प्रयास करे. बीजेपी सांसद लालवानी ने सरकार के साथ इस मामले को उठाने की बात भी कही.
पाकिस्तान से आने के बाद बीते 40 सालों से भारत में आ रहे पकिस्तानी हिंदुओं के लिए काम कर रहे हिन्दू सिंह सोढ़ा कहते हैं कि सताए, परेशान लोगों को नागरिकता देने के कानूनी प्रावधान का राजनीतिक विरोध बेमानी है. यह बताने दिखाने की ज़रूरत नहीं कि आज पकिस्तान में हिंदुओं की क्या स्थिति है. यदि उनके साथ अत्याचार नहीं होता तो उन्हें अपना घर-ज़मीन छोड़कर इस तरह विस्थापितों वाला जीवन नहीं जीना पड़ता. 1971 में भारतीय फौज केवल कुछ किमी ही पाक में दाखिल हुई थी मगर एक लाख हिन्दू भारत में आ गए. यह अपने आप में पाकिस्तान के हालात पर सच बताने को काफी है. इसके विपरीत कितने अल्पसंख्यक पाकिस्तान गए.
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