दिल्ली: चीन सीमा पर इस वक्त 'ना तो युद्ध जैसे हैं हालात हैं और ना ही शांति' के. ये कहना है वायुसेना प्रमुख आर के एस भदौरिया का. भदौरिया ने कहा कि भविष्य में अगर कोई युद्ध होता है तो उसमें वायुसेना की निर्णायक भूमिका होगी.
वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आर के एस भदौरिया आज राजधानी दिल्ली में एक वेबिनार को संबोधित कर रहे थे. वेबिनार का थीम था, 'इंडियन एयरोस्पेस इंडस्ट्री: नई परिदृश्य में चुनौतियां'.
भदौरिया ने कहा कि, भारत की उत्तरी सीमाओं (पूर्वी लद्दाख से सटी लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी) पर तनाव जारी है और मौजूदा सुरक्षा परिदृश्य 'असहज' है यानि 'ना तो युद्ध की स्थिति है और ना ही शांति की.' लेकिन उन्होनें कहा कि हमारे सैनिक किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए हमेशा तैयार हैं.
एयर चीफ मार्शल ने कहा कि रफाल, चिनूक, अपाचे और सी-17 ग्लोबमास्टर एयरक्राफ्ट के भारतीय वायुसेना में शामिल होने से एयरफोर्स को मजबूत रणनीतिक क्षमता हासिल हुई है. उन्होनें हाल ही में तेजस की दो स्कॉवड्रन और सुखोई लड़ाकू विमानों में ब्रह्मोस और दूसरे घातक हथियारों को लैस करने का भी जिक्र किया. भदौरिया के मुताबिक, आज के परिदृश्य में बेहद जरूरी है कि हमें अपने दुश्मनों पर तकनीकी तौर से बढ़त हासिल हो.
इस बीच नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी-2020) में रक्षा मंत्रालय ने सशस्त्र सेनाओं के लिए हेलीकॉप्टर, फाइटर जेट्स और युद्धपोत को 'लीज' पर लेना की अनुमति दे दी है. इसके तहत इन मिलिट्री प्लेटफॉर्म्स को सीधे खरीदने के बजाए कुछ समय के लिए लीज़ पर किसी दूसरे देश से लिया जा सकता है. इससे भारत को इन महंगे हथियारों और सैन्य साजो सामान पर कम पैसा खर्च करना पड़ेगा. आपको यहां पर ये भी बता दें कि वर्ष 2012 में भारत ने रूस से परमाणु पनडुब्बी आईएनएस चक्र लीज़ पर ही ली थी. लेकिन अब इस प्रक्रिया को फॉर्मेलाइज़ कर दिया गया है.
साथ ही नई डीएपी में रक्षा मंत्रालय ने किसी भी गर्वमेंट टू गर्वमेंट डील यानि किसी देश की सरकार से हुए रक्षा सौदे से ऑफसेट क्लॉज को हट दिया है. भारत ने रफाल लड़ाकू विमानों का सौदा सीधे फ्रांस की सरकार से किया था. लेकिन सीएजी की हाल में आई रिपोर्ट में रफाल बनाने वाली कंपनी दासो (दसॉल्ट) की अपनी ऑफसेट-जिम्मेदारी पूरी ना करने को लेकर सवाल खड़े किए गए थे.
दरअसल, किसी भी 300 करोड़ से ज्यादा की विदेशी रक्षा सौदे में विदेशी कंपनी को डील का 30 प्रतिशत भारत के ही डिफेंस या फिर एयरोस्पेस इंडस्ट्री में निवेश करना होता है. इसके लिए विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी से समझौता कर सकती है.
इसके अलावा नई रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया में अगर किसी सौदे में सिंगल वेंडर यानि एक ही कंपनी है तो उसमें भी ऑफसेट क्लॉज लागू नहीं होगा.
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