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दुखद: महाराष्ट्र में लॉकडाउन में फंसे मजबूर मजदूर और लोगों की दास्तान

लॉकडाउन के दौरान दिहाड़ी मजदूरों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.मजदूरों का आरोप है कि सरकार की तरफ से उनको झूठे वादे किए जा रहे हैं.

मुंबई: लॉकडाउन के दूसरे चरण में उन लोगों के सामने मुसीबत खड़ी हो गई है जो दूसरे राज्यों से मुंबई जैसे शहर में रोजी रोटी की तलाश में आए हैं. अब उनके पास ना तो खाने को है और ना ही अपने घरों तक जाने की व्यवस्था. उनका कहना है महाराष्ट्र सरकार उनकी कोई मदद नहीं कर रही है आखिर वह जाएं तो जाएं कहां.

लॉकडाउन ने मजदूरों को तोड़ कर रख दिया

मुंबई की साइन कोलीवाड़ा इलाके में रहने वाले लल्लन पाल नामक मजदूर से एबीपी न्यूज़ टीम की मुलाकात हुई. लल्लन बिहार के रहने वाले हैं. शुरू में जब 21 दिन का लॉकडाउन हुआ तो लल्लन ने सोचा था कि वह किसी तरह से गुजर बसर कर लेंगे और फिर काम शुरू हो जाएगा लेकिन लॉकडाउन के दूसरे चरण ने अब लल्लन और उनके जैसे कई मजदूरों को तोड़ कर रख दिया है. उनका कहना है की जो पैसे थे वो खत्म हो गये, ना पैसे हैं न खाने का सामान. कोरोना से नहीं तो हम भूख से जरूर मर जायेंगे.

समय पर नहीं मिल रहा है खाना

ऐसे ही बिहार के रहने वाले उपेंद्र भगत से एबीपी न्यूज़ की टीम की मुलाकत हुई. उपेन्द्र बताते हैं कि शुरु मे कुछ लोग खाने के लिये खिचड़ी दे जाते थे, जो बेहद खराब होती थी. लेकिन मजबूरी में हमें उसे खाना पड़ता था. खाना कब मिलेगा इसका कोई टाइम भी तय नहीं था. कभी तीन बजे कभी 12 बजे रात अब तो वो भी नहीं मिल रहा.

सरकार की तरफ से किए जा रहे हैं झूठे वादे

मुंबई में मजदूरी का काम करने वाले संदीप कुमार कहते हैं कि महाराष्ट्र सरकार कहती है कि मुंबई में फंसे मजदूर खाने की चिंता ना करें उनकी व्यवस्था सरकार करेगी लेकिन सरकार की तरफ से हमें कोई मदद नहीं मिल रही यह सब झूठे वादे हैं.

पूरी तरह टूट चुके हैं मजदूर

लॉकडाउन के दूसरे चरण में यह मजदूर अब पूरी तरह से टूट चुके हैं अब उनकी जिंदगी और मौत का सवाल उनके सामने खड़ा हो गया है क्योंकि ना तो अब उनके पास रोजगार है ना पैसे हैं ना खाने का सामान और ना ही अपने घरों तक जाने की सुविधा. मुंबई में फंसे इन मजबूर मजदूरों का कहना है की अब दूसरे चरण के लॉकडाउन में उनकी हालत ऐसी हो गई है की अगर वह कोरोना वायरस की वजह से नहीं मरेंगे तो उन्हें हालात जरूर मार देंगे.

इन मजदूरों का कहना है की सरकार कह रही है की सोशल डिस्टेंसिंग बनाएं लेकिन हमारे सामने यह मजबूरी खड़ी है कि हम 9 बाई 10 के एक-एक कमरे में 10-10 लोग रहने को मजबूर हैं. ऐसे में हम सोशल डिस्टेंसिंग कैसे बनाएं यह हमारी मजबूरी है हम करें तो क्या करें.

लॉकडाउन के दौरान भारी संख्या में लोग हुए थे जमा

कुछ दिन पहले मुंबई के बांद्रा स्टेशन के बाहर जब हजारों मजदूरों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी तो यह बात सामने आई थी कि यह मजदूर अपने घर जाना चाहते हैं. क्योंकि अब उनके पास खाने रहने की व्यवस्था नहीं है. लॉकडाउन के दौरान एक जगह पर इतनी भारी संख्या में लोगों के जुटने की वजह से महाराष्ट्र सरकार की काफी बदनामी हुई थी और उसी वक्त महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने यह बयान दिया था की मुंबई में फंसे मजदूरों को चिंता करने की जरूरत नहीं है. उनके रहने और खाने की जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार लेती है.

लाइन में लगने के बावजूद कुछ ही लोगों को मिल पाता है राशन

बांद्रा स्टेशन की घटना के बाद एबीपी न्यूज़ को उसी जगह की एक और तस्वीर देखने को मिली थी जहां हजारों लोग राशन की कतार में खड़े नजर आए थे. तस्वीरें बयां कर रही थी कि इन लोगों को खाने की कितनी दिक्कत हो रही है जिसकी वजह से जब राशन बंटता है तो सैकड़ों की तादाद में लोग घरों से बाहर निकलकर लंबी कतारों में लग जाते हैं और इनमें से कुछ ही लोग हैं जिन्हें राशन मिल पाता है बाकी लोगों को खाली हाथ घर लौट जाना पड़ता है.

मुंबई में सिर्फ मजदूर वर्ग ही नहीं बहुत सारे ऐसे लोग भी लॉकडाउन की वजह से फंसे हैं जो किसी काम से मुंबई आए थे लेकिन ट्रेनें बंद होने की वजह से वह अपने घरों को नहीं लौट सकें. अब उन्होंने महाराष्ट्र सरकार की तरफ से लगाए गए राहत शिविरों में दिन काटना पड़ रहा है. इसमें कोई कैंसर का इलाज कराने आया था तो कोई अपने किसी दूसरे काम से.

लॉकडाउन के चलते घर नहीं जा पाया शख्स

मुंबई के उत्तर भारतीय महासंघ भवन में बने राहत शिविर में एबीपी न्यूज़ टीम की मुलाकात हुई उत्तर प्रदेश के रहने वाले राम भवन से जो मुंबई के टाटा अस्पताल में अपनी पत्नी के कैंसर का इलाज कराने आए थे लेकिन वह लॉकडाउन की वजह से अपनी घर नहीं पहुंच सके. वह जल्द से जल्द घर जाना चाहते हैं. इस वक्त वो उत्तर भारती महासंघ के राहत शिविर में ही अपनी बीमार पत्नी के साथ रहे हैं.

राहत कैंप में मच्छरों से हो रही है परेशानी

मुंबई के वर्सोवा इलाके में बने राहत शिविर में एबीपी न्यूज़ टीम की मुलाकात हुई मिसेज लखानी से. मिसेस लखानी देहरादून से 23 मार्च को मुंबई आईं. वो पेशे से नर्स हैं. यहां पर वर्सोवा के कैंप में रह रही है. जल्द से जल्द निकलना चाहती हैं. उनकी शिकायत है कि इस ग्राउंड में बने राहत कैंप में बेहद मच्छर हैं जो उन्हें बीमार कर सकते हैं, उन्हें आभास है कि कोरोना के बढ़ते मामले को देखते हुए अभी लॉकडाउन बढ़ सकता है. उनकी सरकार से गुहार है की किसी तरह से उन्हें घर पहुंचा दिया जाए.

मुंबई में फंसे मजदूर हो या फिर राहत शिविरों में रहने वाले लोग, अब सब जल्द से जल्द अपने घरों को जाना चाहते हैं और उनकी सरकार से यही गुहार है की उन्हें किसी भी तरह से उनके घरों तक पहुंचाने का इंतजाम करे क्योंकि कोरोना का कहर कब तक जारी रहेगा पता नहीं.

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