नई दिल्ली: पेगासस जासूसी कांड को लेकर सरकार और विपक्ष आमने सामने हैं. विपक्ष कल से शुरू हुए मानसून सत्र में जासूसी कांड के मुद्दे पर सरकार को घेरने की पूरी कोशिश में है. वहीं ने भी इस पर विपक्ष का सामना करने की रणनीति तैयार कर ली है. सोमवार का पूरा दिन इस मुद्दे के चलते संसद में हंगामे की भेंट चढ़ गया. विपक्ष के तेवर देखकर लगता है कि सदन में सरकार के लिए दिन आसान नहीं रहने वाला है. इस रस्साकशी में यह देखना दिलचस्प होगा कि आखिर जासूसी का विवाद कहां जाकर रुकता है.
देश में जासूसी कांड का इतिहास नया नहीं है. राजनीति और जासूसी या फोन टैपिंग का रिश्ता बहुत पुराना है. इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सांसद, उद्योगपति और सिनेमाई जगत के लोगों के नाम पहले भी आ चुके हैं. जासूसी कांड के चलते देश में सरकारें गिरने का भी इतिहास रहा है. आज हम आपको ऐसी ही कहानी बताने जा रहे हैं, जब सिर्फ फोन टैपिंग के चलते एक मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा था...
फोन टैपिंग और सरकार गिरने की यह काहीन साल 1983 से शुरू होती है. कर्नाटक में रामकृष्ण हेगड़े पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. रामकृष्ण हेगड़े ने पांच साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास रखी. हेगड़े के कद का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक वक्त पर उन्हें जनता तक की ओर से प्रधानमंत्री पद का प्रमुख दावे तक माना जाने लगा था. लेकिन साल 1988 में उनके लिए फोन टैपिंग का ऐसा भूत समाने आया जिसने उनकी कुर्सी छीन ली. इसके धीरे धीरे राजनीति के अर्श से फर्श तक पहुंच गए और वो मुकाम हासिल नहीं कर सके जो कभी हुआ करता था.
साल1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी बोफोर्स घोटाले के आरोपों का सामना कर रहे थे. संसद में राजीव गांधी सरकार से फोन टैपिंग पर सवाल पूछा गया. जिसके बाद राजीव गांधी ने जांच एजेंसियों को कर्नाटक में ऐसी किसी भी गतिविधि की जांच के आदेश दिए. जांच में सामने आया कि डीजीपी ने 50 से अधिक नेताओं व मंत्रियों के फोन टेप आदेश दिए थे. इस बीच जो बात हेगड़े के खिलाफ गई वो यह जिन लोगों के फोन टेप करवाए जा रहे थे, वे सभी हेगड़े के विरोधी थे.
इसके बाद बोफोर्स में घिरी राजीव गांधी सरकार के पास विपक्ष को घेरने का बड़ा हथियार हाथ लग गया. जनता दल के तीन बड़े नेता चंद्रशेखर, अजीत सिंह और देवेगौड़ा जो कि पार्टी में रामकृष्ण हेगड़े के प्रतिद्वंदी थे, उन्होंने हेगड़े से इस्तीफा देने के लिए कह दिया. इसके बाद चौतरफा दबाव से घिरे हेगड़े ने भी एक बड़ा कदम उठाया. उन्होंने कर्नाटक के बजाए दिल्ली आकर प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस्तीफे का एलान किया. इस तरह सिर्फ फोन टैपिंग के आरपों के चलते एक मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.
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