नई दिल्ली: भीड़ की हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़े निर्देश जारी किये हैं. कोर्ट ने कहा है कि केंद्र और राज्य 1 महीने में इन्हें लागू करें. साथ ही कोर्ट ने संसद से भी आग्रह किया है कि वो इस मसले पर कानून बनाए. कोर्ट का फैसला गौरक्षा के नाम पर होने वाली हिंसा पर रोकथाम के लिए दायर याचिकाओं पर आया है. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने ये साफ किया था कि वो हर तरह की भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए आदेश देगा.

तीन जजों की बेंच का ये फैसला चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने पढ़ा. उन्होंने कहा, "भारत में बहुलतावादी संस्कृति है. इसकी रक्षा करना सरकार की ज़िम्मेदारी है. राज्यों का फर्ज है कि वो शांति व्यवस्था बनाए रखें. किसी भी तरह के भीड़ तंत्र की हमारे यहां कोई जगह नहीं है."

कोर्ट के कुछ अहम दिशानिर्देश :-

* हर जिले में एसपी रैंक अधिकारी का ऐसे मामलों की रोकथाम के लिए अधिकारी नोडल ऑफिसर बनाया जाए. ज़रूरत के मुताबिक नोडल ऑफिसर स्पेशल टास्क फोर्स का गठन करे

* ऐसे इलाकों और लोगों की पहचान हो जहां/जिनसे हिंसा की आशंका है. ऐसी जगहों और लोगों पर खास चौकसी बरती जाए

* हिंसक भीड़ को बिखेरना वहां मौजूद पुलिस अधिकारी की ज़िम्मेदारी है

* सरकार रेडियो/टीवी/दूसरे माध्यमों से जनजागरूकता और कानून की जानकारी फैलाए

* केंद्र और राज्य सोशल मीडिया या दूसरे तरीकों से भड़काऊ मैसेज/वीडियो फैलाने पर रोकथाम के लिए ज़रूरी कदम उठाएं

* ऐसे मैसेज फैलाने वालों पर IPC की धारा 153 A (समाज में वैमनस्य फैलाना) के तहत केस दर्ज हो

* भीड़ की हिंसा के मामलों में तुरंत FIR दर्ज हो

* मुकदमों की फ़ास्ट ट्रेक सुनवाई हो. 6 महीने में निपटारा हो

* राज्य पीड़ित मुआवजा योजना बनाई. स्थिति की गंभीरता के हिसाब से मुआवजा तय हो. 30 दिन में मुआवजा मिले

* कोर्ट दोषियों को IPC की धारा के तहत मिलने वाली अधिकतम सज़ा दे

* कोर्ट गवाहों को ज़रूरत के मुताबिक सुरक्षा दे

* आरोपियों की जमानत अर्जी पर विचार से पहले पीड़ित पक्ष का भी पक्ष सुना जाए

* इस तरह के मामलों की रोकथाम/जांच में लापरवाही बरतने वाले अधिकारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की जाए. ऐसी कार्रवाई 6 महीने में निपटाई जाए

20 अगस्त को इस बारे में हुई तरक्की की समीक्षा करेगा कोर्ट

कोर्ट ने कहा है कि सभी राज्य और केंद्र 1 महीने में उसके निर्देशों को लागू करें. वो 20 अगस्त को इस बारे में हुई तरक्की की समीक्षा करेगा. कोर्ट ने संसद से भी आग्रह किया है कि वो इस मसले पर अलग से कानून बनाने पर विचार करे. फैसले में लिखा गया है, "सभ्य समाज की स्थापना के लिए बहुत अहम है कि लोगों में कानून का डर हो."