नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि राज्य सरकारें नियुक्तियों में आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है और पदोन्नति (प्रमोशन) में आरक्षण का दावा करने का कोई मूल अधिकार नहीं है. जस्टिस एल नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने कहा, ‘‘इस न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून के मद्देनजर इसमें कोई शक नहीं है कि राज्य सरकारें आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है. ऐसा कोई मूल अधिकार नहीं है जिसके तहत कोई व्यक्ति पदोन्नति में आरक्षण का दावा करे.’’


पीठ ने कहा, ‘‘न्यायालय राज्य सरकार को आरक्षण उपलब्ध कराने का निर्देश देने के लिए कोई आदेश नहीं जारी कर सकता है.’’ उत्तराखंड सरकार के पांच सितम्बर 2012 के फैसले को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने यह टिप्पणी की.


गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने राज्य में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को आरक्षण उपलब्ध कराये बगैर सार्वजनिक सेवाओं में सभी पदों को भरे जाने का फैसला लिया गया था. सरकार के फैसले को उत्तराखंड हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी, जिसने इसे खारिज कर दिया था.


हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलों पर सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा,‘‘यह निर्धारित कानून है कि राज्य सरकार को सार्वजनिक पदों पर नियुक्तियों के लिए आरक्षण उपलब्ध कराने के निर्देश नहीं दिये जा सकते है. इसी तरह सरकार पदोन्नति के मामलों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण देने के लिए बाध्य नहीं है.’’


पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि अगर वे (राज्य) अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते है और पदोन्नति में आरक्षण देने का प्रावधान करते है तो सबसे पहले उसे इस तरह के आंकड़े इकट्ठा करने होंगे, जिससे यह स्पष्ट होता हो कि सार्वजनिक पदों पर किसी विशेष वर्ग का प्रतिनिधित्व कम है.’’


उत्तराखंड सरकार की सितम्बर 2012 की अधिसूचना को बरकरार रखते हुए शीर्ष न्यायालय ने कहा कि सरकार पदोन्नतियों में आरक्षण उपलब्ध कराने के लिए बाध्य नहीं है, इसलिए उच्च न्यायालय को राज्य के फैसले को अवैध नहीं घोषित करना चाहिए था.


आरक्षण के बारे में संवैधानिक प्रावधान का जिक्र करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘यह राज्य सरकार को तय करना है कि सरकारी पदों पर नियुक्ति और पदोन्नति के मामले में आरक्षण की आवश्यकता है या नहीं.’’


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