Collegium System: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा, 'कॉलेजियम प्रणाली देश का कानून है, उसका...'
Collegium System: जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की ओर से की जाने वाली टिप्पणियां उचित नहीं, कॉलेजियम के खिलाफ बयानबाजी करना ठीक नहीं .
Collegium System: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (8 दिसंबर) को कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए पहले से चली आ रही कॉलेजियम प्रणाली इस देश का कानून है और इसके खिलाफ बयानबाजी करना ठीक नहीं है. कोर्ट ने कहा कि उसकी तरफ से घोषित कोई भी कानून सभी के लिए ‘बाध्यकारी’ है और कॉलेजियम प्रणाली का पालन होना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट, अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम के तरफ से भेजे गए नामों को मंजूर करने में केंद्र की तरफ से कथित देरी से जुड़े मामले की सुनवाई कर रहा था. जस्टिस एसके कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम पर सरकार के लोगों की ओर से की जाने वाली टिप्पणियों को उचित नहीं माना जाता.
उन्होंने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी को इस बारे में सरकार को राय देने को कहा. कॉलेजियम प्रणाली सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध का विषय रही है और जजों की तरफ से ही जजों की नियुक्ति की प्रणाली की अलग-अलग वर्ग आलोचना करते रहे हैं.
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने 25 नवंबर को कहा था कि कॉलेजियम प्रणाली संविधान के प्रति ‘सर्वथा अपरिचित’ शब्दावली है. बेंच में जस्टिस एएस ओका और जस्टिस विक्रम नाथ भी शामिल थे. बेंच ने कहा कि वह अटॉर्नी जनरल से अपेक्षा रखते हैं कि सरकार को राय देंगे, ताकि सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित कानूनी सिद्धांतों का अनुपालन हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम ने जिन 19 नामों की सिफारिश की थी, उन्हें सरकार ने हाल में वापस भेज दिया. बेंच ने कहा, ‘‘यह ‘पिंग-पांग’ का खेल कैसे खत्म होगा?’’
कॉलेजियम प्रणाली को लागू करन होगा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘‘जब तक कॉलेजियम प्रणाली है, जब तक यह कायम है, हमें इसे लागू करना होगा. आप दूसरा कानून लाना चाहते हैं, कोई आपको दूसरा कानून लाने से नहीं रोक रहा.’’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर समाज का एक वर्ग तय करना शुरू कर देगा कि किस कानून का पालन होगा और किस का नहीं तो अवरोध की स्थिति बन जाएगी.
जस्टिस कौल ने कहा, ‘‘अंत में हम केवल इतना कह सकते हैं कि संविधान की योजना अदालत से कानून की स्थिति पर अंतिम मध्यस्थ होने की अपेक्षा रखती है. कानून बनाने का काम संसद का है. हालांकि यह अदालतों की पड़ताल पर निर्भर करता है.’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस अदालत की तरफ से घोषित कोई भी कानून सभी हितधारकों के लिए बाध्यकारी है. मैं केवल यह संकेत करना चाहता हूं.’’
पीठ ने कहा कि अदालत को इस बात से परेशानी है कि कई नाम महीनों और सालों से लंबित हैं जिनमें कुछ ऐसे हैं जिन्हें कॉलेजियम ने दोहराया है. बेंच ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट का कॉलेजियम नाम भेजता है तो वरिष्ठता समेत कई चीजों को ध्यान में रखता है. बेंच ने मामले में आगे सुनवाई के लिए 6 जनवरी की तारीख तय की.
केंद्र की तरफ से देरी पर सुप्रीम कोर्ट नाराज
सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर को उच्च न्यायपालिका में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिश वाले नामों को मंजूरी देने में केंद्र की तरफ से देरी पर नाराजगी जताई थी. जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की बेंच ने कहा कि शीर्ष अदालत की तीन न्यायाधीशों की बेंच ने नियुक्ति प्रक्रिया पूरी करने के लिए समय-सीमा निर्धारित की थी.
बेंच ने कहा कि उस समय-सीमा का पालन करना होगा. जस्टिस कौल ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार इस तथ्य से नाखुश है कि राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) अधिनियम को मंजूरी नहीं मिली, लेकिन यह देश के कानून के शासन को नहीं मानने की वजह नहीं हो सकती है.
निर्धारित समय-सीमा की जानबूझकर देरी की जा रही है
सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के अपने फैसले में एनजेएसी (NJAC) अधिनियम और संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 को रद्द कर दिया था, जिससे सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करने वाली जजों की मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली बहाल हो गई थी. सुप्रीम कोर्ट एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आरोप लगाया गया है कि समय पर नियुक्ति के लिए पिछले साल 20 अप्रैल के आदेश में सुप्रीम कोर्ट की तरफ से निर्धारित समय-सीमा की जानबूझकर अवज्ञा की जा रही है.
जजों की नियुक्ति में केंद्र के तरफ से देरी
सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को जजों की रूप में नियुक्ति के लिए अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में केंद्र के तरफ से देरी पर नाराजगी जताई थी और कहा था कि उन्हें लंबित रखना स्वीकार्य नहीं है. बेंच ने केंद्रीय कानून मंत्रालय के सचिव (न्याय) और अतिरिक्त सचिव (प्रशासन और नियुक्ति) को नोटिस जारी कर याचिका पर उनका जवाब मांगा था.
‘एडवोकेट्स एसोसिएशन बेंगलुरु’ के तरफ से वकील पई अमित के माध्यम से दायर याचिका में उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति के साथ-साथ नामों के चुने जाने में असाधारण देरी का मुद्दा उठाया गया. याचिका में 11 नामों का उल्लेख किया गया जिनकी सिफारिश की गई थी और बाद में उन्हें दोहराया गया.