सुप्रीम कोर्ट के फैसले से रामलला के कपड़े सिलने वाले भाइयों की बढ़ी आमदनी
राम मंदिर पर फैसला आने के बाद इनके पास देश के कई राज्यों से ऑर्डर आने लगे हैं. अभी भी इनके पास ढेरों ऑर्डर पड़े हैं. इतना ही नहीं किस दिन कौन से कलर का कपड़ा रामलला पहनेंगे इस परिवार को सब याद है.
लखनऊ: अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कल अपना फैसला सुनाया. जिसके बाद सभी जगह सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राम मंदिर को बनाने का आदेश दिया है. साथ ही मुस्लिम पक्ष को 5 एकड़ जमीन देने की घोषणा की है. वहीं इस फैसले के बाद रामलला के कपड़े सिलने वाला परिवार भी बहुत खुश नजर आ रहा है. उनका कहना है सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हम स्वागत करते हैं.
रामलला के लिए कपड़ा सिलने वाले भगवत प्रसाद और शंकर लाल दोनों सगे भाई हैं. करीब 40 सालों से इनका परिवार रामलला के कपड़े सिलने का काम कर रहा है. चार पीढ़ी से इनका परिवार इसी काम में लगा हुआ है. राम मंदिर पर फैसला आने के बाद इनके पास देश के कई राज्यों से ऑर्डर आने लगे हैं. अभी भी इनके पास ढेरों ऑर्डर पड़े हैं. इतना ही नहीं किस दिन कौन से कलर का कपड़ा रामलला पहनेंगे इस परिवार को सब याद है. राम मंदिर पर आए फैसले के बाद अब ये परिवार भी खुश है. क्योंकि अब इनकी आय भी बढ़ेगी.
फैसले से जुड़ी खास बातें-
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने बहस में अपने दावे को बदला. पहले कुछ कहा, बाद मे नीचे मिली रचना को ईदगाह कहा. साफ है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बना था. नीचे विशाल रचना थी. वह रचना इस्लामिक नहीं थी. वहां मिली कलाकृतियां भी इस्लामिक नहीं थी. ASI ने वहां 12वीं सदी की मंदिर बताया. विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल हुईं हैं. कसौटी का पत्थर, खंभा आदि देखा गया.
कोर्ट ने कहा है कि हिन्दू अयोध्या को राम भगवान का जन्मस्थान मानते हैं. मुख्य गुंबद को ही जन्म की सही जगह मानते हैं. अयोध्या में राम का जन्म होने के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया. विवादित जगह पर हिन्दू पूजा करते रहे थे. गवाहों के क्रॉस एक्जामिनेशन से हिन्दू दावा झूठा साबित नहीं हुआ. चबूतरा,भंडार, सीता रसोई से भी दावे की पुष्टि होती है.
कोर्ट ने कहा है कि हिंदुओं के वहां पर अधिकार की ब्रिटिश सरकार ने मान्यता दी. 1877 में उनके लिए एक और रास्ता खोला गया. अंदरूनी हिस्से में मुस्लिमों की नमाज बंद हो जाने का कोई सबूत नहीं मिला. कोर्ट ने कहा है कि अंग्रेज़ों ने दोनों हिस्से अलग रखने के लिए रेलिंग बनाई. 1856 से पहले हिन्दू भी अंदरूनी हिस्से में पूजा करते थे. रोकने पर बाहर चबूतरे की पूजा करने लगे.
कोर्ट ने कहा है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को वैकल्पिक ज़मीन देना ज़रूरी है. केंद्र सरकार 3 महीने में ट्रस्ट बनाए.