नई दिल्ली: मंगलवार को मोदी कैबिनेट ने एनपीआर डेटाबेस को अपडेट करने की मंजूरी दी तो उस पर बवाल शुरू हो गया है. नागरिकता कानून और एनआरसी पर जारी घमासान के बीच अब एनपीआर का मुद्दा भी सियासी हो चला है. कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी समेत कई दल मोदी सरकार पर आरोप लगा रहे हैं कि वो एनपीआर के जरिए पिछले दरवाजे से एनआरसी लागू करना चाह रही है. इसके लिए मोदी सरकार की ओर से संसद में समय-समय पर दिए गए सवालों के जवाब को आधार बनाया जा रहा है, लेकिन उसी संसद में यूपीए सरकार की ओर से दिए है जवाबों को खंगालने पर पता चलता है कि यूपीए सरकार ने भी एनपीआर को ही एनआरसी का अगला चरण बताया था.


28 अगस्त 2012 को सरकार ने दिया था जवाब


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल के दौरान 28 अगस्त 2012 को सरकार का दिया जवाब इस बारे में बिल्कुल साफ है. आज के उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और तब के लोकसभा सांसद योगी आदित्यनाथ के सवाल के जवाब में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह ने कहा था, " एनपीआर, एनआरसी तैयार करने की दिशा में पहला कदम है. देश में रहने वाला कोई भी व्यक्ति नागरिकता रजिस्टर का हिस्सा तभी हो सकेगा जब उसके नागरिकता के स्थिति की जांच नहीं हो जाती". जवाब में ये भी कहा गया था कि स्थानीय एनपीआर ( LRUR ) और आधार के आंकड़ों को स्थानीय इलाकों में जारी किया जाएगा ताकि जिसको कोई आपत्ति या दावा करना हो तो कर सकता है. रजिस्टर को ग्राम सभा या वार्ड कमिटी के पास भी भेजने की बात कही गई थी ताकि उनकी सामाजिक ऑडिट किया जा सके.


2 अगस्त 2011 को भी यही जवाब दिया


जब यूपीए सरकार से 2011 में लोकसभा में सवाल किया गया था कि एनपीआर के तहत जो पहचान पत्र जारी किया जाएगा, क्या वो नागरिकता का सबूत होगा और क्या उसका दुरुपयोग भारतीय नागरिकता साबित करने के लिए तो नहीं होगा ? तत्कालीन गृह राज्य मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह का लिखित जवाब था, "किसी व्यक्ति की नागरिकता नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटिजन ( एनआरसी ) बनाने में समय अलग से निर्धारित किया जाएगा, जो एनपीआर का ही उपवर्ग या उपसमुच्चय ( Subset) होगा ".


ये भी पढ़ें-


मनीष सिसोदिया ने की कंगना रनौत के बयान की निंदा, बोले- मजदूर भी देता है टेक्स


बुर्किना फासो में बड़ा आतंकी हमला, 35 आम नागरिकों की मौत, 80 आतंकी भी ढेर