नई दिल्ली: सोमवार से संसद सत्र शुरू हो रहा है. कोरोना काल में आयोजित होने वाले इस पहले सत्र के पहले दिन ही लोकसभा में सरकार कुछ अहम बिलों को पेश करना चाहती है. इनमें से कुछ बिलों पर पहले से ही विवाद शुरू हो गया है.


इस साल तीन जून को मोदी सरकार ने कृषि क्षेत्र के लिए तीन अहम अध्यादेशों को मंज़ूरी दी थी. इनमें दो तो सीधे किसानों और उनके उपज से जुड़ा अध्यादेश था. पहला अध्यादेश कृषि उपज वाणिज्य व व्यापार (संवर्धन एवं सुविधा) अध्यादेश 2020 के नाम से जबकि दूसरा अध्यादेश ‘मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश, 2020’ के नाम से लाया गया था.


उस वक़्त सरकार ने दावा किया था कि ग्राफिक्स इन इसमें 'वन नेशन वन मार्केट' की तर्ज़ पर किसानों को अपना उपज किसी भी राज्य में ले जाकर बेचने की आज़ादी होगी. इससे कृषि उपज का बाधा मुक्‍त अंतरराज्यीय व्‍यापार संभव हो सकेगा. इसका सबसे अहम प्रावधान ये है कि किसानों को अपना उत्पाद राज्य सरकार के कृषि उत्पाद बाज़ार क़ानून के तहत तय की गई मंडी में ही ले जाकर बेचने की बाध्यकता नहीं होगी.


किसानों को उनकी फसल का उचित दाम दिलाने के लिए सीधे मिलों, निर्यातकों और खाद्य संस्करण में लगे व्यापारियों के साथ दाम तय करने का अधिकार मिल जाएगा. इससे कृषि उपज के सप्लाई चेन में निजी क्षेत्र की भागीदारी करने का रास्ता खुलेगा. अब नियम के मुताबिक़ इन अध्यादेशों को संसद की मंजूरी के लिए बिल के रूप में कल लोकसभा में पेश किया जाएगा. लेकिन उससे पहले ही कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल इसका विरोध कर रहे हैं. कई किसान संगठन भी इनके विरोध में उतर आए हैं.


पंजाब और हरियाणा में शुरू हुआ किसानों का विरोध प्रदर्शन अब उत्तर प्रदेश तक भी पहुंच गया है. इन किसान संगठनों का आरोप है की सरकार के इस क़दम से प्राइवेट कंपनियों को किसानों के शोषण का मौक़ा मिलेगा. उनका आरोप है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य के ज़रिए उन्हें जो पैसा मिलता है उसपर भी ग्रहण लग सकता है. कांग्रेस ने साफ़ कर दिया है कि पार्टी इन बिलों का विरोध करेगी.


इन किसान संगठनों ने कल दिल्ली समेत देश के कई राज्यों में सोशल डिस्टेंशिंग का पालन करते हुए विरोध प्रदर्शन करने का फ़ैसला किया है. कल ही लोकसभा में सांसदों के वेतन और भत्ते में कई गई कटौती वेल्ला अध्यादेश भी बिल के रूप में पेश किया जाएगा. कोरोना काल में सरकार ने ख़र्च कम करने के उद्देश्य से सांसदों के वेतन और भत्ते में 30 फ़ीसदी की कटौती की थी.


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