Kashmiri Pandits: कश्मीरी पंडितों के जनसंहार की नए सिरे से जांच नहीं होगी, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की क्यूरेटिव पिटिशन
Supreme Court: याचिका में कश्मीरी पंडितों की हत्या से जुड़ी 215 घटनाओं की जांच की मांग की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल है.
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SC Rejects Plea: कश्मीर में 1989-90 में हुए हिंदुओं के जनसंहार की जांच के लिए दाखिल क्यूरेटिव याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है. 22 नवंबर को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल और एस अब्दुल नज़ीर की बेंच ने इस याचिका पर विचार किया था. आज बेंच का आदेश सामने आया. इसमें कहा गया है कि याचिका में ऐसी कोई बात नहीं रखी गई जिसके आधार पर नए सिरे से विचार ज़रूरी हो.
2017 का फैसला
2017 में तत्कालीन चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने जिस याचिका को खारिज किया था, उसमें कश्मीरी पंडितों की हत्या से जुड़ी 215 घटनाओं की जांच की मांग की गई थी. यह बताया गया था कि इन घटनाओं में 700 लोगों की मौत हुई थी. पुलिस ने किसी मामले में जांच को अंजाम तक नहीं पहुंचाया. अब यासीन मलिक, बिट्टा कराटे जैसे अलगाववादी नेताओं की भूमिका की CBI, NIA या SIT के ज़रिए दोबारा जांच होनी चाहिए.
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए जांच का आदेश देने से कर दिया था कि घटना के 27 साल बाद सबूत जुटाना मुश्किल होगा. इसके बाद याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका दाखिल की. कोर्ट ने उसे भी खारिज कर दिया था.
क्यूरेटिव याचिका में क्या कहा गया था?
कश्मीरी पंडितों की संस्था 'रूट्स इन कश्मीर' ने सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल कर 2017 में आए कोर्ट के आदेश में बदलाव की मांग की थी. क्यूरेटिव याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने 33 साल बाद 1984 के सिख विरोधी दंगों की जांच करवाई. इस मामले की भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. संस्था की तरफ से कहा गया था कि 24 जुलाई 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था, वह कानूनन गलत था. अपनी जड़ों से उखड़ कर संघर्ष कर रहे एक समुदाय से यह नहीं कहा जाना चाहिए था कि उसने याचिका दाखिल करने में समय क्यों लगाया.
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