नई दिल्ली: केंद्र पीएम मोदी की सरकार है तो उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ योगी की सरकार है. पिछले 10 दिन में बने इस राजनीतिक संयोग से देश में कुछ बदला हो या नहीं लेकिन अयोध्या में टेंट में विराजे भगवान राम के लिए भव्य मंदिर बनाने की कोशिशों को जैसे पंख लग गए हैं.


14 साल के वनवास के बाद जब भगवान राम जब अयोध्या पहुंचे थे तब घी के दीए जलाकर लोगों ने उनका स्वागत किया था. 14 साल बाद यूपी में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद अयोध्या में फिर कुछ ऐसा ही होगा, इसका इंतजार किया जा रहा है क्योंकि केंद्र में मोदी हैं और यूपी में योगी हैं.


दुनिया जानती है कि अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोई पहल तब तक कामयाब नहीं होगी जब तक मोदी और योगी पहल न करें. सुप्रीम कोर्ट की सलाह के बाद भी अब तक मोदी और योगी ने ऐसी कोई पहल की नहीं है जिससे कोई इशारा मिले कि भव्य राम मंदिर बस अब बनने ही वाला है.


विवाद को सुलझाने के लिए एक नहीं कई फॉर्मूले हैं
अयोध्या विवाद जितना पुराना है उतना ही पुराना है विवाद को सुलझाने के लिए की जाने वाली कोशिशें लेकिन जब मंदिर की सीढ़ी चढकर सत्ता में बैठी बीजेपी ने ही मुद्दा को ठंडे बस्ते में डाल दिया तो अयोध्या को विवाद मुक्त करने वाले फॉर्मूले भी ठंडे बस्ते में बंद हो गए. मोदी औऱ योगी और सुप्रीम कोर्ट की सलाह आने के बाद एक बार फिर से फॉर्मूले आने लगे हैं.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए पूर्व जज का फॉर्मूला
जस्टिस पलोक बसु हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज हैं. अयोध्या विवाद से जुड़े कुछ पक्षों से बातचीत करके उन्होंने अपना फॉर्मूला पेश किया है. जस्टिस बसु का फार्मूला है कि जो हिस्सा राम लला विराजमान को मिला है उस पर राम मंदिर बनाया जाए. बाकी जमीन निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक्फ बोर्ड के पास रहे लेकिन शर्त ये रहे कि मुस्लिम पक्ष उस पर कोई निर्माण नहीं करेगा. मुस्लिम पक्ष 200 मीटर दूर मस्जिद युसूफ की आरा मशीन की जमीन पर बनाए. इससे अयोध्या में मंदिर भी बन जाएगा और मस्जिद भी.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए कोर्ट का फॉर्मूला
2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ही एक फार्मूला निकला था. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटने का फैसला सुनाया था. राम मूर्ति वाला हिस्सा रामलला विराजमान को, राम चबूतरा और सीता रसोई का हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को और तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का आदेश दिया था. इस फैसले पर अमल नहीं हुआ है क्योंकि फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए सुब्रमण्यम स्वामी का फॉर्मूला
सुप्रीम कोर्ट में आजकल जिस याचिका पर सुनवाई चल रही है वो बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने दायर की हुई है. स्वामी अयोध्या के पुराने मामले में पार्टी नहीं हैं लेकिन उनके पास भी एक फॉर्मूला है. फार्मूला ये है कि मुस्लिमों को मस्जिद बनानी है तो सरयू नदी के उस पार जाकर बनाएं. भव्य राम मंदिर के लिए स्वामी का फार्मूला भी फेल हो सकता है क्योंकि मुस्लिमों को इधर उधर से नहीं, सीधे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मतलब है.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए सोमनाथ मंदिर वाला फॉर्मूला
अयोध्या में बैठे साधु-संत राजनीति के बदलते घटनाक्रम पर पैनी नजर रखते हैं. केंद्र में मोदी और यूपी में योगी के बाद साधु संत मान रहे हैं कि इससे बढ़िया वक्त हो नहीं सकता कि सरकार संसद से कानून बनाए. ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि गुजरात में सोमनाथ मंदिर भी संसद से बने कानून से बना था.


इस फॉर्मूले के बारे में काफी लोग बातें करते हैं लेकिन ये तब संभव नहीं जब तक पीएम मोदी इसी रास्ते से अयोध्या विवाद के निपटारे और भव्य राम मंदिर बनाने का संकल्प न कर लें. राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी रही उमा भारती मोदी सरकार में मंत्री हैं. सोमनाथ जैसे भव्य मंदिर की कल्पना संजो रखी है लेकिन उनकी कल्पना उनकी सरकार ही साकार कर सकते हैं.


अयोध्या विवाद सुलझाने के लिए हिंदू-मुस्लिम वाला फॉर्मूला
ये वाला फॉर्मूला नया तो नहीं है लेकिन इसे हिंदू और मुस्लिम पक्ष ने मिलकर बनाया था. अखाड़ा परिषद के प्रमुख महंत ज्ञान दास और अयोध्या केस के पक्षकार हाशिम अंसारी ने मिलकर रास्ता निकाला था विवादित परिसर में मंदिर और मस्जिद दोनों बने लेकिन उनको 100 फुट ऊंची दीवार से बांट दिया जाए. फॉर्मूला ज्यादा आगे बढ़ा नहीं और हाशिम अंसारी की मौत के बाद ठंडे बस्ते में चला गया.


अयोध्या फॉर्मूलों के जाल में फंसा हुआ है. न फॉर्मूले खत्म हो रहे हैं. न फॉर्मूले भव्य साबित हो रहे हैं. टेंट वाले भगवान राम के लिए भव्य मंदिर अभी भी दूर की कौड़ी है.