राजस्थान निकाय चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी के इन उम्मीदवारों को मिले महज़ 1 वोट, जानें पूरा मामला
राजस्थान में बीस ज़िलों के कुल नब्बे स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजों में एक वोट का बोलबाला नज़र आया. इन चुनावों में कहीं कोई प्रत्याशी एक वोट से जीत गया तो कई उम्मीदवार सिर्फ़ एक वोट ही हासिल कर सका.
जयपुर: लोकतंत्र में हर वोट की क़ीमत होती है ये सभी जानते हैं, लेकिन अगर किसी प्रत्याशी को वोट ही केवल एक मिले तो इसे क्या समझा जाए? राजस्थान में बीस ज़िलों के कुल नब्बे स्थानीय निकायों के चुनावों के नतीजों में एक वोट का बोलबाला नज़र आया. इन चुनावों में कहीं कोई प्रत्याशी एक वोट से जीत गया तो कई उम्मीदवार सिर्फ़ एक वोट ही हासिल कर सका.
आइए आपको बताते हैं एक वोट के ये रोचक क़िस्से. सबसे पहले बात करते हैं नागौर ज़िले की परबतसर नगर पालिका की. इस नगर पालिका के वार्ड नम्बर दस से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे गोपाल लाल गौड़. गोपाल लाल रहने वाले तो दूसरे वार्ड के हैं मगर कांग्रेस ने इनको टिकट दिया वार्ड दस से. अब जब नतीजे आए तो गोपाल लाल के हिस्से आया सिर्फ़ एक वोट. अब सोचिए क्या इनको सिर्फ़ अपना खुद का वोट ही मिला क्या? अब एक वोट से तो यही साबित होता है कि गोपाल लाल गौड़ को उनके किसी दोस्त और रिश्तेदार तो छोड़िए खुद उनके परिवार वालों ने भी वोट नहीं दिया.
इसी परबतसर नगर पालिका के एक अन्य वार्ड से बीजेपी की प्रत्याशी रही बसंती को भी सिर्फ़ नौ वोट ही मिले. लेकिन बसंती इस बात को लेकर ख़ुश हो सकती हैं कि उन्होंने कांग्रेस के गोपाल लाल गौड़ को आठ वोट लेकर पछाड़ तो दिया.
अब बात अजमेर नगर निगम के वार्ड नम्बर 66 की. यहां से बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़े नीरज जैन की चुनावी नैया सिर्फ़ एक वोट की वजह से डूबने से बच गई. नीरज जैन पहले भी पार्षद रह चुके हैं और इस बार वो सिर्फ़ एक वोट से जीत हासिल कर सके. एक वोट की ये कहानी राजस्थान के चूरु ज़िले के बीदासर नगर पालिका के चुनाव में भी देखने को मिली. यहां के वार्ड नम्बर 16 के नतीजे भी एक नम्बर की वजह से चर्चा में है.
इस वार्ड से बीजेपी के धर्मेंद्र ने चुनाव लड़ा. नतीजे आए तो धर्मेंद्र के खाते में आया सिर्फ़ एक वोट. धर्मेंद्र को बुरी तरह पराजित करने वाले कांग्रेस के यूनुस को मिले 401 वोट. अब साफ़ है कि धर्मेंद्र को घर परिवार तक के वोट नहीं मिले. दरअसल धर्मेंद्र की हार की वजह रही अपना वार्ड छोड़कर दूसरी जगह से चुनाव लड़ना. धर्मेंद्र वार्ड नम्बर पांच के रहने वाले हैं और वो चुनाव वार्ड नम्बर 16 से लड़ने चले गए. वैसे धर्मेंद्र के लिए एक दुख की बात ये भी रही कि नोटा को भी उनसे ज़्यादा तीन वोट मिल गए.
धर्मेंद्र की हार से बीजेपी को भी तगड़ा झटका लगा, क्योंकि कुल 35 में से बीजेपी को 16 वार्ड में जीत मिली है. अगर धर्मेंद्र जीत हासिल करते तो बीजेपी बोर्ड बनाने के नज़दीक होती. लेकिन ये जनता है जो किसी को अर्श तो किसी को फ़र्श पर ला देती है.
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