27 साल के लड़के के इस आइडिया ने जीत लिया रतन टाटा का दिल, दिया साथ काम करने का ऑफर
आवारा कुत्तों को सड़क हादसों से बचाने के लिए शांतनु ने एक पहल की और उस पहल ने उनका जीवन ही बदलकर रख दिया. आज शांतनु अपने सपनों को जी रहे हैं.
नई दिल्ली: लक्ष्य के बारे में बिना अधिक सोचे ईमानदारी से मेहनत करने वालों को सफलता जरूर मिलती है. इसे मुंबई के रहने वाले 27 साल के शांतनु नायडू ने बिल्कुल सही साबित किया है. शांतनु को रतन टाटा ने खुद फोन कर अपने साथ काम करने का ऑफर दिया है. यहां जानिए आखिर क्यों रतन टाटा ने खुद फोन कर शांतनु को नौकरी का ऑफर दिया. साथ ही जानें- शांतनु से आखिर इतने क्यों रतन टाटा प्रभावित हुए हैं.
शांतनु एनिमल लवर हैं और खासकर कुत्तों से उन्हें बहुत लगाव है. वह सड़क हादसे में शिकार कुत्तों को देख दुखी हो जाते थे. वो असहाय जानवर करें भी तो क्या करें, लाख बचने की कोशिश करते पर किसी ना किसी गाड़ी के शिकार बन ही जाते.
पांच साल पहले मुंबई की सड़क पर हुए एक हादसे ने शांतनु का ध्यान अपनी तरफ खींचा. उसके बाद शांतनु ने स्ट्रीट डॉग्स की जान बचाने के लिए कुछ करने की सोची. काफी सोचने के बाद शांतनु ने कुत्तों के लिए चमकदार कॉलर बनाने की सोची, जो अंधेरे में चमके और ड्राइवर को दूर से ही दिखाई दे. शांतनु ने वैसा ही किया और गली, मोहल्ले के कुत्तों को वो कॉलर पहनाने लगे.
कुत्तों का लिए चमकदार कॉलर बनाने का शांतनु का आइडिया काफी लोकप्रिय हुआ. लोगों ने इसकी जमकर तारीफ की. टाटा ग्रुप के मैगजीन में भी ये कहानी छपी. शांतनु बताते हैं उनके पिता ने उनसे रतन टाटा को चिट्ठी लिखने के लिए कहा क्योंकि रतन टाटा को भी कुत्तों से बहुत प्यार है. शांतनु पहले तो हिचकिचाए, लेकिन फिर उसने चिट्ठी लिखी. लगभग दो महीने बाद शांतनु के खत का जवाब आया और रतन टाटा ने उसे मिलने बुलाया.
शांतनु को इस बात का यकीन ही नहीं हो रहा था कि उससे रतन टाटा मिलना चाहते हैं. शांतनु ने रतन टाटा से उनके मुंबई स्थित ऑफिस में मुलाकात की. रतन टाटा ने ना सिर्फ शांतनु के काम को सराहा बल्कि उसे उनके काम के लिए फाइनेंशियल हेल्प करने की भी बात कही. शांतनु ने रतने टाटा के पालतू कुत्तों से भी मुलाकात की.
इसके बाद शांतनु मास्टर्स की पढ़ाई करने विदेश चले गए. शांतनु ने विदेश पढ़ाई करने जाने से पहले रतन टाटा से वादा किया था कि वापस आने के बाद वह टाटा ट्रस्ट के लिए काम करेंगे. शांतनु ने बताया कि जब वो पढ़ाई पूरी कर देश लौटे तो रतन टाटा ने खुद उन्हें फोनकर अपने साथ काम करने का ऑफर दिया. रतन टाटा ने उससे कहा कि मुझे ऑफिस में बहुत सारा काम करवाना है, क्या तुम मेरे सहायक बनना चाहोगे. शांतनु को एक बार में इस बात का यकीन नहीं हुआ लेकिन फिर खुद को शांत करते हुए उसने इस ऑफर को स्वीकार किया.
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