वास्तुकला का बेजोड़ नमूना है लाल पत्थरों से बना प्रयागराज में स्थित एशिया का सबसे बड़ा चर्च
कैथेड्रल चर्च को एशिया का सबसे बड़ा गिरजाघर कहा जाता है और इसकी गिनती दुनिया के दस सबसे महत्वपूर्ण चर्च में होती है. यहां हर रविवार प्रार्थना सभाएं होती हैं तो क्रिसमस व नये साल पर विशेष पूजा व दूसरे आयोजन होते हैं.
प्रयागराज: संगम नगरी प्रयागराज की पहचान सिर्फ सनातन धर्मियों के प्रमुख तीर्थ स्थल के रूप में ही नहीं है, बल्कि यहां एशिया का सबसे बड़ा चर्च भी है. ऑल सेंट कैथेड्रल के नाम से मशहूर इस चर्च को यहां के लोग पत्थर गिरजाघर के नाम से जानते हैं. लाल पत्थरों से तैयार तकरीबन एक सौ तीस साल पुराना यह चर्च अपनी कई खूबियों की वजह से समूची दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाए हुए है. चर्च की बिल्डिंग अपने साथ तमाम एतिहासिकता जोड़े हुए है तो वहीं दूसरी तरफ इसकी खूबसूरती आगरा के ताजमहल को कड़ी चुनौती देती नजर आती है. दुनिया के दस सबसे महत्वपूर्ण चर्चों में शुमार इस पत्थर गिरजाघर को इस बार भी क्रिमसस पर दुल्हन की तरह खूबसूरती से सजाया गया है.
कैथेड्रल चर्च को एशिया का सबसे बड़ा गिरजाघर कहा जाता है और इसकी गिनती दुनिया के दस सबसे महत्वपूर्ण चर्च में होती है. ब्रिटिश बेस पर आधारित इस चर्च की परिकल्पना 1971 में भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल मिस्टर म्योर और उनकी पत्नी एलिजाबेथ ने की थी. उन्होंने चर्च की इस इमारत का मॉडल उस वक्त के नामचीन वास्तुकार विलियम इमरसन को सौंपा था. सैकड़ों मजदूरों द्वारा तेरह सालों तक दिन-रात की गई कड़ी मेहनत के बाद यह चर्च 1987 में इस स्वरुप में बनकर तैयार हुआ था. इंग्लैंड में रहने वाले मसीह धर्मगुरु इसे आस्ट्रेलिया में तैयार कराना चाहते थे, लेकिन किसी गलतफहमी की वजह से इसकी फाइल भारत आ गई थी. अंग्रेजों ने इसे प्रभु यीशु की इच्छा मानकर इसे फिर यहीं स्थापित करने का फैसला किया.
इस चर्च को लाल पत्थरों से बेहद खूबसूरती से तैयार किया गया है. पत्थरों पर शानदार नक्काशी की गई है. चर्च के अंदर की छत इतनी ऊंची है, जितने में आज के दौर में तीन मंजिला इमारत तैयार हो जाती है. अंदर की खिड़कियों के नीचे कांच पर प्रभु यीशु के जन्म से लेकर उनके पुनर्जीवित होते की पूरी कहानी चित्रों के जरिये बेहद खूबसूरती के साथ उकेरी गई है. प्रभु ईसा मसीह के जीवन और उनके संदेशों पर आधारित तस्वीरों की इस सीरीज पर जब सूरज की रोशनी अपनी चमक बिखेरती है तो कांच सोने सा दमकने लगता है और इस पर से नजरें नहीं हटतीं. चर्च के अंदर की छत हो या दीवारें, खिड़कियां हों या पूजा घर या फिर यहां रखे एक-एक सामान, सभी में अलग-अलग तरह की कलाओं का ऐसा बेजोड़ नमूना पेश किया गया है, जो इस चर्च को दुनिया में अलग पहचान दिलाते हैं. यहां हर रविवार प्रार्थना सभाएं होती हैं तो क्रिसमस व नये साल पर विशेष पूजा व दूसरे आयोजन होते हैं.
प्रयागराज के सिविल लाइंस इलाके में स्थित इस ऑल सेंट कैथेड्रल चर्च का कैम्पस इतना बड़ा है कि यह चार अलग-अलग रास्तों पर बसा हुआ है. चर्च की इमारत के बाहर बेहद खूबसूरत गार्डन है, जिसमें ज्यादातर क्रिसमस ट्री लगे हुए हैं. साथ ही रंग बिरंगे फूलों वाले दूसरे पौधे भी लगे हुए हैं. इस अनूठे चर्च की भव्यता बस देखते ही बनती है. इस चर्च को हर साल बेहद खूबसूरती से सजाया जाता है. इस मौके पर यहां विशेष प्रार्थना सभाएं व दूसरे खास आयोजन होते हैं, जिसकी तैयारियां महीनों पहले से ही शुरू हो जाती हैं. इस चर्च की इमारत को जो भी एक बार देखता है, वह बस टकटकी लगाए इसे निहारता ही रहता है. खास मौकों को छोड़कर इस चर्च के कैम्पस में किसी को भी अंदर जाने की इजाजत नहीं होती, लेकिन फिर भी सिर्फ इसकी इमारत को देखने के लिए रोजाना देश के अलग-अलग हिस्सों से सैकड़ों की तादात में पर्यटक आते हैं.
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