नई दिल्ली: सैयद अली शाह गिलानी अब हुर्रियत से अलग हो गए हैं. कहा जा रहा है कि आईएसआई की नज़रों में वे गिर गए थे. जम्मू कश्मीर से अनुच्छेध 370 हटाने के बाद पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी उनसे कश्मीर में अशांति करवाना चाहती थी लेकिन गिलानी फेल रहे और आईएसआई के दवाब में उन्हें अलगाववादी संगठन ऑल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेंस छोड़ना पड़ा.


गिलानी अपने बेटे नईम गिलानी को इसका चेयरमैन बनाने की जुगाड़ में थे लेकिन आईएसआई तैयार नहीं हुई. अब नए अध्यक्ष को लेकर श्रीनगर से लेकर इस्लामाबाद तक मीटिंग का दौर जारी है. मशरत आलम और अशरफ़ शहरई के बीच कांटे की टक्कर है.


'बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले' - 93 साल के सीनियर अलगाववादी नेता अली शाह गिलानी के साथ ऐसा ही हुआ. उनकी सबसे बड़ी ताक़त ही उनकी सबसे बड़ी कमजोरी साबित हुई. आईएसआई के दम पर वे ऑल हुर्रियत कांफ्रेंस के चेयरमैन बने थे. जब कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था. तब कई अलगाववादी संगठनों ने मिल कर ये फ़ोरम बनाया था. ये बात 1993 की है.


गिलानी ने ऑडियो मैसेज जारी कर अपने ताज़ा फ़ैसले की जानकारी दी. इस बारे में हुर्रियत के सदस्यों को चिट्ठी लिख कर भी बताया है. पिछले चार महीनों से गिलानी अस्पताल में हैं


अब आपको हम पर्दे के पीछे की कहानी बताते हैं. आख़िर क्यों गिलानी को हुर्रियत को बाय बाय कहना पड़ा. ऐसा क्या हुआ कि पाकिस्तान के दुलारे गिलानी उसकी आंखों को चुभने लगे. ये बात किसी से छिपी नहीं है कि हुर्रियत की लगाम पाकिस्तानी इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई के पास है.


मोदी सरकार ने 5 अगस्त को कश्मीर से धारा 370 हटा कर बाहर के लोगों के लिए नागरिकता के रास्ते खोल दिए गए. आईएसआई चाहता था कि इस बात पर कश्मीर घाटी में बवाल हो, आतंकी घटनाएं हों, खून ख़राबा हो. लेकिन हुर्रियत कांफ्रेंस कुछ नहीं कर पाई. बस यहीं से बात बिगड़ गई.


आईएसआई ने गिलानी के सर से अपना हाथ खींच लिया. सैयद अली शाह गिलानी ने अब्दुल्ला गिलानी को पाकिस्तानी हुर्रियत का संयोजक बनाया था. वे आईएसआई की भी पसंद था. लेकिन जब कश्मीर में कोई बड़ी आतंकी कार्रवाई नहीं हुई तो अब्दुल्ला को भी हटना पड़ा. 5 मई के पाकिस्तान में हुर्रियत की मीटिंग में अब्दुल्ला को संयोजक के पद से हटा दिया गया.


4 जून को श्रीनगर में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की बैठक में इस फैसले का स्वागत किया गया. सैयद अली शाह गिलानी ऐसा नहीं चाहते थे. लेकिन मजबूरी में उन्हें ऐसा करना पड़ा. 93 साल के गिलानी हुर्रियत में अलग-थलग पड़ने लगे थे.


हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान के मेडिकल कॉलेजों में कुछ सीटें मिलती हैं. आम तौर पर ये सीटें आतंकियों के घरवालों को मिलती हैं. लेकिन गिलानी पर इन सीटों के बेचने के आरोप भी लगे. गिलानी अपने बेटे नईम गिलानी को हुर्रियत कांफ्रेंस में अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे. लेकिन आईएसआई इसके लिए भी तैयार नहीं हुआ. कश्मीर घाटी में गिलानी का जमाना अब एक तरह से ख़त्म हो गया है.


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