नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज से एक महीने पहले पुराने पांच सौ और एक हज़ार रुपये के पुराने नोट बंद करने का एलान किया. सरकार के इस फैसले का अंदाज़ा सरकार और रिजर्व बैंक के शीर्ष पर बैठे कुछ लोगों के अलावा किसी को नहीं रहा. लेकिन स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चीफ इकॉनमिस्ट सौम्य कांति घोष ने इस एलान के सात महीने पहले न सिर्फ नोटबंदी की भविष्यवाणी की, बल्कि ये भी बता दिया कि ऐसा करने पर देश को किन दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा.


आठ नवंबर को पीएम मोदी के नोटबंदी के ऐलान वाले भाषण से सात महीने पहले 7 अप्रैल 2016 को SBI की पत्रिका इकोरैप में एक ऐसा लेख छपा, जिसमें कही गई बातें किसी भविष्यवाणी की तरह सच निकलीं. ये लेख स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के चीफ इकॉनमिस्ट सौम्य कांति घोष का था.


डॉ घोष ने अपने लेख के पहले ही पन्ने पर लिखा था, ''सार्वजनिक तौर पर ऐसी चर्चा है और कुछ विश्लेषण भी ऐसा संकेत दे रहे हैं कि ऊंचे मूल्य वाले नोटों को बदला जा सकता है.''



डॉ घोष ने अपने इसी लेख के दूसरे पन्ने पर एक बार फिर लिखा, ''ऐसी चर्चाएं सुनने को मिल रही हैं कि 1000 और 500 रुपये के नोटों को बंद किया जा सकता है.''


सवाल ये है कि डॉ घोष ने ये भविष्यवाणी कैसे की? उन्होंने ये एलान ज्योतिष की किसी गणना के आधार पर नहीं बल्कि कुछ आंकड़ों के विश्लेषण और बैंकिंग व्यवस्था में अपने तजुर्बे के आधार पर किया था. डॉ घोष ने सात अप्रैल के उस लेख में अपनी बात पूरे विस्तार से समझाई थी.


उन्होंने लिखा था, ''लोगों के पास मौजूद कैश में भारी इजाफा हुआ है. 31 मार्च 2015 को खत्म वित्त वर्ष के मुकाबले 18 मार्च 2016 तक लोगों के पास 48 फीसदी ज्यादा कैश जमा हो गया था. इसकी क्या वजह है? आम दलील ये है कि 2017 में चुनाव होने की वजह से लोग कैश की जमाखोरी कर रहे हैं. लेकिन अगर ये सच होता तो 2014 के चुनावी साल में भी कैश की मात्रा बढ़नी चाहिए थी. लेकिन उस साल तो इसमें गिरावट देखी गयी.''


उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए लिखा, ''वित्त वर्ष 2012 में भी, जब यूपी और पंजाब में पिछले चुनाव हुए थे, करेंसी के सर्कुलेशन में अच्छी खासी गिरावट आई थी. लिहाजा कैश में बढ़ोतरी के लिए चुनाव को पूरी तरह जिम्मेदार नहीं माना जा सकता....हमारा मानना है कि इसकी बड़ी वजह है नोटबंदी से जुड़ा रुझान. ऐसी चर्चा है और कुछ विश्लेषण भी ऐसे संकेत दे रहे हैं कि ऊंचे मूल्य वाले नोटों को बदला जा सकता है. हमे विश्वास है कि इन चर्चाओं की वजह से ही लोग सुरक्षित संपत्तियां खरीदने के लिए ऊंचे मूल्य वाले नोटों का ज्यादा इस्तेमाल करने लगे हैं.''


डॉ घोष ने सात महीने पहले न सिर्फ नोटबंदी का ठीक-ठीक अंदाज़ा लगा लिया था, बल्कि इस फैसले के असर के बारे में भी बेहद सटीक भविष्यवाणी की थी.


डॉ घोष ने 7 अप्रैल के अपने उसी लेख में लिखा था, ''अगर नोटबंदी लागू हुई तो कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा. बैंक की ब्रांचों में कैश को संभालने की लागत में भारी बढ़ोतरी होगी, बंद किए गए नोटों बैंकिंग सिस्टम में झोंक दिए जाएंगे जिससे पूरी तरह अफरातफरी मच जाएगी. सर्कुलेशन में गंदे और कटे-फटे नोटों की संख्या बढ़ जाएगी.''


डॉ. घोष ने ये भी बताया था कि नोटबंदी से पैदा हालात से निपटने के लिए किन तैयारियों की ज़रूरत होगी? उन्होंने अपने लेख में लिखा था, ''देश में अभी बैंकों के पास करीब 5 हजार करेंसी चेस्ट हैं, जिनमें नोट रखे जाते हैं. लोगों को पर्याप्त नोट मुहैया कराने के लिए इनकी संख्या पांच गुना बढ़ानी होगी. स्टील की दीवारों और दरवाजों वाले नए करेंसी चेस्ट बनाने में काफी पैसा और वक्त खर्च होगा.''


डॉ सौम्य कांति घोष ने ये भी बता दिया था कि नोटबंदी के कारण एटीएम के मैनेजमेंट में भी काफी परेशानी हो सकती है. उन्होंने लिखा था, ''एटीएम ऑपरेटर्स के मुताबिक 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने से बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी, क्योंकि उनमें अभी के मुकाबले काफी कम कैश रखा जा सकेगा. एटीएम मशीनों में कैश बार-बार भरना पड़ेगा, जिससे न सिर्फ लागत बढ़ेगी, बल्कि लोगों को दिक्कत भी होगी. कैश की सप्लाई चेन में सबसे ज्यादा बोझ बैंकों पर पड़ेगा.''


डॉ घोष ने अपने इस लेख के अंत में ये सलाह भी दी थी कि अगर नोटबंदी को लागू करना है, तो इसके लिए पूरा रोडमैप बनाना जरूरी है. इसके लिए उन्होंने जरूरी इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने और फैसले को कई चरणों में लागू करने की सलाह भी दी थी.


नोटबंदी लागू होने के बाद पिछले एक महीने के दौरान देश में जैसे हालात बने हैं, उनसे डॉ घोष के इन सुझावों की अहमियत को और भी शिद्दत से महसूस किया जा सकता है.