इस साल अमेरिका के तीन अर्थशास्त्री डगलस डब्ल्यू. डायमंड, बेन एस. बर्नाके और फिलिप एच. डायबविग को अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा. इन तीनों अर्थशास्त्रियों ने ही आर्थिक मंदी के दौर में बैंकिंग सेक्टर को बेहतर करने के तरीकों पर अध्ययन किया था. इस पुरस्कार के तहत एक करोड़ स्वीडिश क्रोनर (लगभग नौ लाख अमेरिकी डॉलर) का नकद दिया जाता है. इस पुरस्कार से इन्हें 10 दिसंबर को सम्मानित किया .
इन तीनो अर्थशास्त्रियों को उनके उस रिसर्च के लिए सम्मानित किया गया जिसमें इन्होंने बताया था कि फाइनेंशियल सेक्टर को रेगुलेट कर फेल हो चुके बैंकों को कैसे आगे बढ़ाकर साल 1930 में आई महामंदी जैसी स्थिति से निपटा जा सकता है.
तीनों का फोकस अर्थव्यवस्था में बैंकों की भूमिका पर था. इन्होंने बताया था कि आर्थिक संकट के दौर में बैंक कैसे इस मुश्किल को और बढ़ा सकते हैं. इन्होंने बताया था कि बैंकों को फेल होने से बचाना क्यों जरूरी है?
कौन हैं ये अर्थशास्त्री
इन अर्थशास्त्रियों में से एक बर्नाके अमेरिका के केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष हैं. उनका कार्यकाल 2006 से 2014 तक रहा है. उस दौरान ही दुनिया ने 2007-08 की मंदी का सामना किया था. साल 1980 के दशक में अर्थशास्त्री बर्नाके ने बताया था कि 1930 की महामंदी का कारण बैंकों की नाकामी थी.
वहीं दूसरे अर्थशास्त्री डायमंड शिकागो यूनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफेसर हैं, वहां वो फाइनेंशियल इंटरमीडियरीज और फाइनेंशियल क्राइसिस पढ़ाते हैं. इसके अलावा डायबविग सेंट लुईस में वाशिंगटन यूनिवर्सिटी में बैंकिंग और फाइनेंस के प्रोफेसर हैं. 1983 में इन दोनों जोड़ी ने डायमंड-डायबविग मॉडल बनाया था.
क्या है डायमंड-डायबविग मॉडल?
यह मॉडल बताता है कि बैंक किस तरह जमा करने वाले लोग और उधार लेने वालों में मध्यस्थ बना सकता है. डायमंड-डायबविग मॉडल के अनुसार एक तरफ जहां जमा करने वाले अपने हाथ में नकदी चाहते हैं, वहीं दूसरी तरफ उधार लेने वाले लंबे समय के लिए लोन लेना पसंद करते हैं. अब ये जिम्मेदारी लोन लेने देने करने वाले बैंकों की है कि वह इस बचत को कैसे इन्वेस्ट यानी लोन में बदलने की कोशिश करते हैं.
इस मॉडल में बताया गया है कि कैसे नॉर्मल परिस्थितियों में डायमंड-डायबविग मॉडल अच्छी तरह से काम करता है. इसकी मदद से बैंक उधार लेने वालों को लंबे समय के लिए लोन दे सकेंगे और बचत करने वालों की जरूरतों को पूरी करने के लिए नकदी का केवल छोटा सा हिस्सा अपने पास रख सकते हैं.
इसी मॉडल में ये भी कहा गया है कि एक ही समय में अगर सभी जमाकर्ता अपनी बचत निकालने की कोशिश करते हैं, तो उनकी मांग को पूरा नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसे में बैंक दिवालिया हो जाएंगे.
डायमंड-डायबविग का मॉडल के अनुसार बैंक चलाना बैंकिंग प्रणाली की कमजोरी है, क्योंकि बैंकों की स्थिरता इस बात पर निर्भर करती है कि जमाकर्ता दूसरे जमाकर्ताओं से क्या उम्मीद करते हैं. अगर कई लोग अपनी बचत निकालने लगते हैं तो दूसरे बैंकों से भी लोग अपनी बचत निकालना चाहेंगे.
वहीं वित्तीय संकट और भी खराब तब हो जाता है, जब लोगों का सिस्टम की स्थिरता से भरोसा उठ जाता है. इन तीनों अर्थशास्त्री ने बताया कि अगर घबराए हुए बचतकर्ता बैंकों में जमा अपनी रकम निकालने लगते हैं तो बैंकों की हालत क्या हो सकती है. हालांकि, मॉडल में बताया गया था कि अगर सरकार उनके पैसे की गारंटी लेती है तो वित्तीय संकट से बचा जा सकता है.
क्या है आर्थिक मंदी
महामंदी के कारणों और उसके प्रभावों पर चर्चा करने से पहले यह जानना ज़रूरी है कि, आर्थिक मंदी का अर्थ क्या होता है? आर्थिक मंदी अर्थव्यवस्था का एक कुचक्र है जिसमें फंसकर आर्थिक वृद्धि रुक जाती है और देश के विकास कार्यों में बाधा आ जाती है. इस दौरान बाज़ार में वस्तुओं की भरमार होती है लेकिन खरीदने वाला कोई नहीं होता है. उत्पादों की आपूर्ति अधिक व मांग कम होने से अर्थव्यवस्था असंतुलित हो जाती है.
अब तक किन लोगों को किया जा चुका है सम्मानित
अब तक ज्यादातर नोबेल विजेता अमेरिका के ही रहे हैं. केवल दो महिलाओं को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. वहीं पिछले साल यह सम्मान कनाडा के डेविड कार्ड, इस्रायली अमेरिकी जोशुआ एंग्रिस्ट और डच अमेरिकी गीडो इमबेंस को दिया गया था. साल 2009 में एलिनॉर ओस्ट्रोम और 2019 में एस्थर डुफ्लो को अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार मिला था.
(इनपुर- भाषा)
ये भी पढ़ें: