नई दिल्लीः मोदी सरकार के चार साल और तीन ऐसे ऐतिहासिक कदम जिन्होंने देश ही नहीं दुनिया के सामने भारत की साख बढ़ाई भी और मोदी सरकार के प्रयोगों पर सवालिया निशान भी लगाए. हालांकि ये ऐसे कदम थे जिसने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को पहले की बाकी सारी सरकारों से अलग खड़ा करने की पूरी कोशिश की लेकिन ये कोशिश कितनी कामयाब होगी ये अगले साल 2019 के चुनाव में ही पता चलेगा.


सर्जिकल स्ट्राईक-29 सितंबर 2016
आज भी लोग वो मंजर याद करते हैं कि कैसे 29 सितंबर 2016 को सुबह दस बजे जब भारतीय सेना की तरफ से जानकारी दी गई कि पाकिस्तान की सीमा में घुस कर आंतकवादियों को मार गिराया गया है तब समूचे देश का सीना चौड़ा हो गया. हर किसी ने महसूस किया की मोदी सरकार के निर्णय की ताकत पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को भी आज नहीं तो कल भारत में मिला लेगी. यानी अंखड भारत का जो सपना संघ परिवार बार बार दिखाता है वह पूरा हो सकता है.


पर सर्जिकल स्ट्राइक की बात तो आई-गई हो गई. पाकिस्तान के साथ चीन खड़ा हो गया तो कश्मीर में पाकिस्तानी जमीन से आंतंकी सप्लाई में तेजी आ गई. यानी दो साल बाद ही सर्जिकल स्ट्राइक की गूंज खत्म हो गई.


नोटबंदी- 8 नवंबर 2016
8 नवंबर 2016 को शाम 8 बजे देश के नाम संदेश देते हुये जब प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का एलान किया तो फिर समूची दुनिया की ही नजर भारत के इस फैसले पर आ टिकी. इस एतिहासिक एलान के बाद जो हालात बैंको के सामने कतार में खड़े लोगों की तस्वीर ने उभारी और दुनिया के लिये जगमगाता भारतीय बाजार झटके में जैसे अंधेरे में समाया उसमें पीएम को ही सामने आकर इंतजार के 50 दिन मांगने पड़े.


पर 50 दिन बीते और उसके बाद 405 दिन और बीत गये पर नोटबंदी के बाद के हालात ने जिस तरह रिजर्व बैक की साख से लेकर 45 करोड़ से ज्यादा कामगार मजदूरों की जिन्दगी को प्रभावित कर दिया उसने इस नये सवाल को जन्म दे दिया कि क्या नोटबंदी सिर्फ एक सियासी प्रयोग था. जिसका लाभ पैसे वाले उठा ले गये और विपक्ष के निशाने पर नोटबंदी आ गई


जीएसटी 1 जुलाई 2017
जिस कांग्रेस ने जीएसटी का सपना देश को दिखाया संयोग से 1 जुलाई 2017 को जब संसद में जीएसटी के जरिये दूसरी आजादी का सपना मोदी ने देखा तो कांग्रेस ने इसे गुलामी करार देते हुये संसद के विशेष सत्र का ही बायकॉट कर दिया. हालांकि प्रधानमंत्री ने इसे एक देश एक टैक्स के धागे में पिरोया.


पर जीएसटी का जिन्न जब अलग अलग टैक्स स्लैब तले निकला तो किसी को समझ नहीं आया कि 5 फीसदी से लेकर 28 फीसदी तक के स्लैब में वह कहां फिट है. जीएसटी को लेकर सूरत में कपड़ा व्यापारियो की जो रैली निकली उसने सरकार के भी होश फाख्ता कर दिये. जीएसटी एक अनसुलझा सवाल सा बन गया. क्योंकि जब एक देश एक टैक्स है तो फिर जीएसटी में पेट्रोल-डीजल क्यों नहीं है ये सवाल हर किसी ने पूछा.


इन तीन कदमों को लेकर जहां मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपाती नहीं थकती है वहीं विपक्ष इन्हीं 3 कदमों को देश के लिए सबसे नुकसानदायक बताने से नहीं चूकता है. ऐसे में आने वाले चुनावों में इन कदमों का मोदी सरकार को फायदा मिलेगा या नहीं ये तो वक्त के गर्भ में ही छुपा हुआ है.


IN DEPTH: क्या अमेरिका को लेकर टूट गया मोदी सरकार का भ्रम?