Khalistani Encounter in Gurdaspur: गुरदासपुर में ग्रेनेड हमले में कथित रूप से शामिल तीन आतंकी संदिग्ध सोमवार तड़के पीलीभीत में उत्तर प्रदेश और पंजाब पुलिस की संयुक्त टीम के साथ मुठभेड़ में मारे गए. पंजाब के पुलिस महानिदेशक गौरव यादव ने इसे पाकिस्तान प्रायोजित खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (KZF) मॉड्यूल के खिलाफ एक बड़ी सफलता करार दिया. यह एनकाउंटर रविवार रात (22 दिसंबर 2024) को हुआ.


आरोपियों की पहचान गुरविंदर सिंह (25), वीरेंद्र सिंह उर्फ ​​रवि (23) और जसप्रीत सिंह उर्फ ​​प्रताप सिंह (18) के रूप में हुई है, यह सभी पंजाब के गुरदासपुर के रहने वाले थे. उत्तर प्रदेश पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (कानून व्यवस्था) अमिताभ यश ने कहा कि तीनों गुरदासपुर में पुलिस चौकी पर ग्रेनेड हमले में शामिल थे.


पुलिस ने पकड़ने का प्रयास किया तो चलाई गोलियां


बताया गाय है कि पुलिस ने पहले तीनों को गिरफ्तार करने का प्रयास किया था, लेकिन अपराधियों ने गोलियां चला दीं. जवाबी कार्रवाई में गोली उन्हें भी लगी और गुरविंदर सिंह, वीरेंद्र सिंह और जसनप्रीत सिंह की मौत हो गई. इनके पास से एके सीरीज की दो राइफलें और कई ग्लॉक पिस्तौल बरामद की गई है. पंजाब पुलिस ने कहा है कि तीनों खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के पाकिस्तान प्रायोजित मॉड्यूल का हिस्सा हैं.


इस साल किए तीन हमले


उत्तर प्रदेश के डीजीपी प्रशांत कुमार ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि यह एक "साहसिक" काम है और उत्तर प्रदेश और पंजाब पुलिस के बीच समन्वय का एक अच्छा उदाहरण है. एक सप्ताह के अंदर पंजाब के तीन पुलिस स्टेशनों को निशाना बनाया गया. इसमें सुरक्षा एजेंसियों को खालिस्तानी आतंकवादियों की भूमिका पर संदेह है. शुक्रवार को गुरदासपुर में बांगर पुलिस चौकी को निशाना बनाया गया, जबकि मंगलवार को अमृतसर के इस्लामाबाद पुलिस स्टेशन में विस्फोट हुआ. गुरदासपुर में बख्शीवाल पुलिस चौकी के बाहर भी विस्फोट हुआ था. इन विस्फोटों में कोई घायल नहीं हुआ. सोशल मीडिया पर प्रसारित एक अपुष्ट पोस्ट में कहा गया है कि आतंकवादी संगठन खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स ने विस्फोटों की जिम्मेदारी ली है.


क्या है खालिस्तानी जिंदाबाद फोर्स


खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स (KZF),  गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत प्रतिबंधित समूह है , इसका लक्ष्य एक 'संप्रभु खालिस्तान राज्य' की स्थापना करना है. वैसे तो केजेडएफ की वास्तविक कैडर शक्ति और संगठनात्मक संरचना की विसतृत जानकारी नहीं है, लेकिन बताया जाता है कि इसमें अधिकांश जम्मू के सिख शामिल हैं.


रंजीत सिंह नीता केजेडएफ का मुखिया है. मूलरूप से जम्मू के सुंबल कैंप इलाके का निवासी नीता अब कथित तौर पर पाकिस्तान में कहीं रहता है. 1988 और 1999 के बीच जम्मू और पठानकोट के बीच चलने वाली ट्रेनों और बसों में बम विस्फोटों के बाद दर्ज की गई कम से कम छह प्राथमिकी रिपोर्टों में उसका नाम है. उस पर अक्टूबर 2001 में जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले में पुलिस उपाधीक्षक देविंदर शर्मा की हत्या में भी शामिल होने का आरोप है.


जम्मू में फिर से संगठित होने का प्रयास 


केजेडएफ के एक अन्य प्रमुख सदस्य रविंदर कौर उर्फ ​​टूटू को 30 मार्च, 1998 को उत्तर प्रदेश के रुद्रपुर से गिरफ्तार किया गया था. इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, 6 जुलाई, 2005 को उत्तर प्रदेश के अयोध्या में अस्थायी राम मंदिर पर विफल आतंकवादी हमले के एक दिन बाद, जम्मू और कश्मीर पुलिस इस सूचना पर काम कर रही है कि केजेडएफ संगठन जम्मू में फिर से संगठित होने का प्रयास कर रहा है.


इन तीन जगहों पर मिल रहा संरक्षण


पंजाब, जम्मू और दिल्ली इस संगठन के संचालन के मुख्य क्षेत्र हैं, लेकिन बताया जाता है कि यह संगठन अतीत में नेपाल से भी संचालित होता रहा है. उदाहरण के लिए, दिल्ली पुलिस (डीपी) ने 24 अगस्त, 2000 को तीन कैडरों की गिरफ्तारी के साथ संगठन के नेपाल मॉड्यूल को बेअसर करने का दावा किया था. आईएसआई से जुड़े होने के अलावा, केजेडएफ के जम्मू-कश्मीर में सक्रिय कई आतंकवादी समूहों के साथ घनिष्ठ संबंध हैं.