नई दिल्ली: उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के नये मुख्यमंत्री बन गए हैं. शाम 6.40 बजे शुभ मुहूर्त में उन्होंने शपथ ली. अब तक किंगमेकर के रोल में रहे ठाकरे परिवार अब खुद किंग बन गए हैं. लेकिन रिमोट का सिस्टम तो इस बार भी रहेगा. रहेगा ही नहीं, खूब चलेगा. लेकिन ये रिमोट मातोश्री में नहीं, सिल्वर ओक में रहेगा. मुंबई में शरद पवार के घर का यही पता है. सरकार तो बन गई. लेकिन अब सबके मन में बस एक ही सवाल है. ये रिमोट वाली सरकार कितने दिन चलेगी. साल नहीं, कई लोग अभी से दिन गिनने लगे हैं. तीन पार्टियों के गठबंधन वाली सरकार कब तक खैर मनाएगी?


इस सवाल का जवाब सिर्फ़ और सिर्फ़ सरकार के रिमोट के पास है. यानी शरद पवार. लोग उन्हें पवार साहेब कह कर बुलाते हैं. उद्धव ठाकरे भले ही सीएम हैं लेकिन सरकार का पावर तो पवार के पास ही है. और रहेगा भी. जिस तरह से उन्होंने चाणक्य की तरह सरकार बनाई. वैसे ही उन्हें मिल जुल कर सरकार चलाना भी पड़ेगा. शिव सेना, एनसीपी और कांग्रेस में बस एक ही कॉमन बात है. बीजेपी को हर हाल में सत्ता से दूर रखना. इसी एजेंडे पर तीनों पार्टियों का गठबंधन संभव हो पाया. शिव सेना और कांग्रेस या फिर एनसीपी. इनका मिलन तो जैसे आकाश और पाताल एक हो गए. बीजेपी को कमजोर करने के लिए ये पार्टियां कड़वे घूंट पीती रहेंगी. आख़िर उपाय भी क्या है?


देश का जैसा माहौल है. या फिर राजनैतिक दशा और दिशा. हर तरफ़ राष्ट्रवाद का बोलबाला है. बीच बीच में कई ऐसे मुद्दे उठते रहेंगे. इस गठबंधन के लिए ये बड़ी चुनौती रहेगी. आख़िर लाईन क्या ली जाए? एक तरफ़ उग्र हिंदुत्व में रची बसी शिवसेना है. दूसरी तरफ़ सेक्युलर धर्म निभाती रही कांग्रेस और एनसीपी है. शुरूआत तो हो गई है. तीनों पार्टियों ने मिल कर न्यूनतम साझा कार्यक्रम बना लिया है. इसके पहले पन्ने पर ही सेक्युलर रास्ते पर चलने के वादे और इरादे किए गए हैं. सबने मिल कर तय किया है कि विवादित मुद्दे को छूने से बचेंगे. पूर्व सीएम देवेन्द्र फडणवीस ने कॉमन मिनिमम प्रोग्राम को कॉमन मैक्सिमम प्रोग्राम बताया है. जिसका मक़सद बीजेपी को सत्ता सेबाहर रखना है. वैसे फडणवीस की ये बात सौ फ़ीसदी सही है.


ठाकरे सरकार की आयु गठबंधन के कर्ता धर्ता शरद पवार से तय होगी. वे जब तक चाहेंगे, सरकार चलेगी. उनके मूड बदलते ही समझिए सरकार गई. वे चाहते तो बीजेपी के साथ समझौता कर लेते. मोदी सरकार में कुछ हिस्सेदारी मिल जाती और मुंबई में भी सत्ता का मज़ा लेते. बेटी सुप्रिया सुले भी मंत्री बन जातीं और भतीजे अजीत पवार भी सेट हो जाते. भ्रष्टाचार के केस मुक़दमों से प्रफुल्ल पटेल और अजीत को राहत मिल जाती.


2014 में पवार साहेब वैसे भी महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकार बनवा चुके हैं. लेकिन उन्होंने इस बार थोड़ा कठिन रास्ता चुना. इसीलिए उन्हें राजनीति का चाणक्य कहा जाता है. उनके बारे में मशहूर है कि वे जो कहते हैं, वे करते नहीं. लेकिन इस बार उन्होंने वही किया जो कहा. वे तो बस मौक़े की तलाश में थे. 50-50 के सीएम को लेकर बीजेपी और शिवसेना में ठन गई. पवार साहेब ने इसी बहाने उद्धव ठाकरे और उनकी टीम को उकसाया. यही संदेश दिया कि मुख्य मंत्री तो हम बनवा देंगे. बस शिव सैनिक अड़ गए. तीस साल पुराना गठबंधन बीजेपी से तोड़ दिया. अब सेना पवार साहेब के भरोसे है.


उद्धव ठाकरे का पवार को झुक कर हाथ जोड़ कर प्रणाम करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल हो रही है. वैसे महाराष्ट्र में आज की राजनीति का यही सच है. उद्धव को सरकार चलाने का अनुभव नहीं है. वहीं पवार साहेब 40 साल का तजुर्बा रखते हैं. तीनों पार्टियों के बीच सामंजस्य बनाने का काम भी उनका ही रहेगा. कहीं बात बिगड़ गई तो पंच वहीं रहेंगे. सोनिया गांधी ने महाराष्ट्र में कांग्रेस की कमान पवार को सौंप दी है.


जैसा कर्नाटक में हुआ. वैसा महाराष्ट्र में होने की गुंजाइश कम है. वहॉं कांग्रेस और जेडी एस के विधायकों ने इस्तीफ़ा देकर कुमारस्वामी की सरकार गिरा दी थी. ऐसा लगता नहीं कि बीजेपी महाराष्ट्र में ऐसी गलती करेगी. एक बार पार्टी पहले ही अपनी फ़ज़ीहत करा चुकी है. समझदार लोग गलती नहीं दुहराते हैं. वैसे भी किसी पार्टी के 20-25 विधायकों का इस्तीफ़ा करवाना आसान नहीं होगा.


एनसीपी और कांग्रेस के कई बड़े नेता भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं. कुछ पर तो केस मुक़दमे चल रहे हैं. एनसीपी के बड़े नेता छगन भुजबल तीन सालों तक जेल में रहे. अब वे ठाकरे सरकार में मंत्री भी बन गए हैं. पार्टी के एक और नेता प्रफुल्ल पटेल भी ऐसी ही मुसीबत में हैं. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह उन पर इक़बाल मिर्ची से कारोबारी रिश्ते होने तक के आरोप लगा चुके हैं.


सबसे चर्चित मामला तो पवार साहेब के भतीजे अजीत पवार का है. उन पर सिंचाई विभाग के 70 हज़ार करोड़ के घोटाले के केस चल रहे हैं. अब अगर केन्द्रीय जॉंच एजेंसियॉं एक्टिव हुईं तो फिर ठाकरे सरकार चक्रव्यूह में फँस सकती है. अपने विरोधियों को निपटाने में बीजेपी इस हथियार का इस्तेमाल करती रही है. एक बहुत पुरानी कहावत है तीन तिगाड़ा, काम बिगाड़ा. महाराष्ट्र में भी तीन पार्टियों के तिकड़ी की सरकार है. इसकी सॉंसें तब तक चलती रहेंगी, जब तक पवार साहेब चाहेंगे.


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