41 साल से एक व्यक्ति कोर्ट की लेटलतीफी और मकड़जाल में इस जेल से उस जेल का चक्कर काटता रहा लेकिन पिछला दो सप्ताह उनके लिए दोहरी खुशी लेकर आया. कोलकाता के दमदम करेक्शनल होम से अंततः उसकी रिहाई हो गई और 41 साल से बिछड़ने के बाद अपनी मां से मिलने वह नेपाल पहुंच गया. यह मामला बेहद अनोखा है. 41 साल पहले 1980 में दुर्गा प्रसाद तिमसीना दार्जलिंग में भारतीय सेना में भर्ती होने आया था लेकिन किस्मत की अनहोनी ऐसी थी कि उन्हें भारत के कई जेलों में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ीं. अंततः जेल के साथियों और हेम रेडियो के ऑपरेटरों ने उन्हें उसकी मां से मिला दिया.


हेम रेडियो के ऑपरेटर ने निभाई भूमिका
दुर्गा प्रसाद के दुखों का सिलसिला पिछले दिनों तब रुक गया जब कोलकाता हाई कोर्ट ने उनकी रिहाई के आदेश दे दिए जबकि दूसरी ओर जेल के हेम रेडियो के ऑपरेटरों ने उन्हें उनके घर तक पहुंचाने के लिए अथक प्रयास किए जिसकी बदौलत अंततः दुर्गा प्रसाद नेपाल में अपनी मां से मिल सका. इसके लिए जेल के साथियों ने भी मिलकर प्रयास किए. तिमसीना अब 71 साल का हो चुका है. तिमसीना पर मर्डर का चार्ज लगा था लेकिन कोर्ट ने घोषित कर दिया कि तमसीना की मानसिक स्थिति को देखते हुए उसपर चार्ज नहीं लगेगा. कोर्ट ने उसे तुरंत रिहा करने का आदेश सुनाया. इस आदेश के बाद तिमसीना नेपाल के अपने लुंबाक गांव में अपनी मां से मिलने चला गया.



भारतीय सेना में भर्ती होने आया था
तिमसीना नेपाल में स्कूल टीचर था. 1980 में भारतीय सेना में भर्ती होने के मकसद से वह दार्जिलिंग आ गया. जहां एक व्यक्ति ने उसे नौकरी दिलाने का वादा किया. कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक जिस व्यक्ति ने उससे नौकरी दिलाने का वादा किया था उसने हत्या के एक मामले में उसे शामिल कर लिया. तिमसीना एक के बाद एक कई जेलों का चक्कर काटता रहा. इसके बाद जेल के साथियों ने उसपर तरस खाया और उसकी स्थिति को समझा. मुश्किल यह थी कि तिमसीना की मानसिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी. वह नेपाली में सिर्फ तीन शब्द लिख पाता था. पहला शब्द उसकी मां का नाम था. दूसरा शब्द उसके गांव के स्कूल का नाम और तीसरा शब्द का मतलब कोई नहीं निकाल सका.


रेडियो के जरिए तिमसीना के गांव की खोज हुई


जेल के साथियों ने जब हेम रेडियो के ऑपरेटर से बात की तो उसने वकील हीरक सिन्हा से बात की. हीरक सिन्हा वेस्ट बंगाल रेडियो क्लब के वाइस प्रेसीडेंट हैं. इसके बाद हेम रेडियो के ऑपरेटर ने नेपाल के हेम रेडियो के ऑपरेटरों से संपर्क किया. फिर शुरू हुआ तिनसीना के गांव की खोज का सिलसिला. तिमसीना का गांव लुंबाक भूकंप के बाद बुरी तरह जमींदोज हो गया था लेकिन किसी तरह उसका भाई और उसकी मां जीवित बचे थे. पिछले 21 मार्च को जब तिमसीना अपने गांव गया तो उनकी मां की खुशी का ठिकाना नहीं था.


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