तिब्बत नेशनल अपराइजिंग डे: जानिए आज के दिन क्या हुआ था, जिसने भारत और चीन के बीच करा दी न खत्म होने वाली दुश्मनी
Tibetan Uprising Day: 10 मार्च को दुनिया भर में बसे तिब्बती सड़कों पर उतरते हैं और 64 साल पहले हुई घटना को याद करते हैं. आइए जानते हैं 10 मार्च, 1959 को क्या हुआ था.
Tibetan Uprising Day: साल था 1959 और तारीख थी 10 मार्च, जब तिब्बत की राजधानी ल्हासा की सड़कों पर दसियों हज़ार तिब्बती चीन के कब्जे से मातृभूमि को बचाने के लिए उठ खड़े हुए थे. दलाई लामा की जान बचाने के लिए हजारों तिब्बती पोटला पैलेस को घेरकर खड़े हो गए. चीन की पीपुल्स रिपब्लिक आर्मी (PLA) ने इस विद्रोह को दबाने के लिए क्रूरता की सारी हदें पार कर दीं. हजारों तिब्बतियों ने देश के लिए जान दी और आखिर में दलाई लामा को तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा. तब से हर साल 10 मार्च को हर साल हजारों तिब्बती और उनके समर्थक दुनिया भर में सड़कों पर उतरकर चीन के खिलाफ विद्रोह को याद करते हैं.
कहानी तिब्बत की
तिब्बत का वर्तमान क्षेत्रफल जो आज दिखता है, उसे पहली बार सातवीं शताब्दी में राजा सोंगस्टेन गम्पो और उनके उत्तराधिकारियों ने गठित किया था. चीन की लाल क्रांति के बाद पीपुल्स रिपब्लिक आर्मी ने 1949 की शुरुआत में तिब्बत में प्रवेश किया और तिब्बत की सेना को हराकर देश के आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया. इसके बाद चीन का दमन चक्र तिब्बत में शुरू हुआ.
तिब्बत की सेना कमजोर थी, जिसके चलते पीएलए को आसान जीत मिली, लेकिन तिब्बती लोगों ने चीन के कब्जे के खिलाफ एक बड़े विरोध का बिगुल बजा दिया. खास तौर पर पूर्वी तिब्बत में प्रतिरोध काफी मुखर रहा.
1959 में हुआ बड़ा विद्रोह
तिब्बत के इतिहास में महत्वपूर्ण क्षण 1959 में आया जब चीन ने इस स्वतंत्र इलाके को अपने कब्जे में लेने के लिए पूरी ताकत का इस्तेमाल हुआ. इसके खिलाफ बड़ा विद्रोह हुआ जिसमें हजारों तिब्बती मारे गए और दलाई लामा को अपने एक लाख अनुयायियों के साथ तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा और भारत में शरण ली. दलाई लामा को शरण देने से चीन इतना चिढ़ा कि उसने भारत को अपना हमेशा के लिए दुश्मन मान लिया और इस घटना के तीन साल बाद ही भारत पर आक्रमण कर दिया.
1959 के विद्रोह की टाइमलाइन
- 1 मार्च- चीनी सरकार ने दो सैन्य अधिकारियों को जोखंग मंदिर भेजा. यहां दलाई लामा अपने अंतिम मास्टर ऑफ मेटाफिजिक्स परीक्षा की तैयारी कर रहे थे. चीनी अधिकारियों ने दलाई लामा पर एक तारीख बताने को कहा, जिस दिन वे ल्हासा में चीनी मुख्यालय में एक थियेटर शो और चाय में शामिल होंगे. दरअसल, दलाई लामा के पेश होने से तिब्बती लोगों के लिए ये संदेश जाता कि वह चीन के आधिपत्य को स्वीकार कर रहे हैं.
- 5 मार्च- दलाई लामा ने मास्टर ऑफ मेटाफिजिक्स परीक्षा पास की. इसके बाद उन्हें गेशे (डॉक्टर ऑफ बुद्धिस्ट स्टडीज) की उपाधि दी गई,
- 7 मार्च- ल्हासा में चीनी सैन्य नेताओं में से एक, जनरल तान जुआन-सेन, के दुभाषिए ने मुख्य आधिकारिक मठ से जानकारी मांगी कि दलाई लामा उनके प्रदर्शन में किस तारीख को शामिल होंगे. इसके साथ ही 10 मार्च की तिथि निर्धारित कर दी.
- 9 मार्च- दलाई लामा के मुख्य अंगरक्षक को चीनी अधिकारियों ने बताया कि वे चाहते हैं कि दलाई लामा "पूर्ण गोपनीयता" में शो देखें. उन्होंने अनुरोध किया वह अपने अंगरक्षकों के बिना उपस्थित हों. इस खबर ने तिब्बती अधिकारियों को चिंतित कर दिया और जनता के बीच खबर पहुंचाई गई.
- 10 मार्च- तिब्बती नागरिक नोरबुलिंगका को घेरना शुरू करते हैं. सुबह तक 30 हजार लोग इकठ्ठा हो गए. सभी को इस बात का डर था कि अगर वे नहीं पहुंचे तो दलाई लामा का अपहरण कर लिया जाएगा.
- 12 मार्च- हजारों तिब्बती महिलाएं सड़कों पर और पोटला पैलेस के बाहर इकठ्ठा हुई. इस दिन को वीमेन्स अपराइजिंग डे के रूप में जाना जाता है. महिलाओं ने ल्हासा में भारतीय वाणिज्य दूतावास में मदद की अपील की.
- 13 मार्च- ल्हासा में अब तक सबसे बड़ा प्रदर्शन हुआ. पीपल्स असेंबली बनाने के विरोध में हजारों लोग जुटे. भीड़ ने चीन के द्वारा जबरन लागू किए गए 17 सूत्री समझौते को खारिज कर दिया. इस समझौते के तहत चीन की सरकार के अधीन तिब्बत को क्षेत्रीय स्वायत्तता मिली थी.
- 14 मार्च- गुर्तेंग कुनसांग के नेतृत्व में हजारों महिलाएं एक बार फिर पोटला पैलेस के बाहर इकठ्ठा हुईं. कुनसांग को बाद में गिरफ्तार कर लिया और मौत की सजा दी गई.
- 15 मार्च- दलाई लामा को ल्हासा से निकालने की पहली तैयारी शुरू की गई.
- 16 मार्च- चीनी सैनिक तोप लेकर दलाई लामा के निवास की तरफ बढ़ने लगे.
- 17 मार्च- पोटला पैलेस की तरफ चीनी तोपों ने दो गोले दागे. इस दौरान दलाई लामा की मां और परिवार चुपके से निकल गए. इसके बाद दलाई लामा एक सैनिक का रूप धरकर, एक राइफल लेकर और स्कार्फ बांधकर वहां से निकल गए.
- 21 मार्च- दलाई लामा और उनके साथ चल रहे लोगों ने 1959 में इसी दिन ज़सागोला दर्रा पार किया. उधर ल्हासा में, चीनी सैनिकों ने नोरबुलिंगका के गेट को उड़ा दिया और शहर में प्रवेश किया.
- 23 मार्च- कई दिनों की लड़ाई के बाद चीनी सैनिकों ने बौद्धों के पवित्र जोखंग मंदिर पर कब्जा कर लिया. सेना मंदिर के अंदर घुसी और मंदिर पर चीनी झंडा फहराया गया.
- 26 मार्च- दलाई लामा ने तिब्बत को एक आजाद मुल्क घोषित किया.
- 31 मार्च- दलाई लामा ने भारतीय सीमा पार की. बोमडिला कस्बे के पास भारतीय गार्डों ने उनका स्वागत किया. वे अरुणाचल प्रदेश के तवांग मठ में ठहरे. यह बौद्धों का महत्वपूर्ण मठ है. यही वजह है कि चीन की सेना 1962 में इस इलाके में भी घुसी थी.
- 3 अप्रैल- भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने दलाई लामा को राजनीतिक शरण देने की घोषणा की.
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