समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पत्नी डिंपल को मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव में उतारने का फैसला किया है. अखिलेश के इस कदम के पीछे कई वजहें हैं. मुलायम सिंह यादव के निधन से खाली हुई ये सीट सैफई परिवार की परंपरागत सीट है. इसपर अखिलेश ने डिंपल को उतारकर यह संदेश दे दिया है कि नेता जी की विरासत में साझेदारी मंजूर नहीं है.
दरअसल यादव बेल्ट पर शिवपाल यादव की भी पकड़ बेहद मजबूत है. उन्होंने दशकों तक इन इलाकों में गांव-गांव घूमकर काम किया है. शिवपाल यादव का यहां के बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं के साथ व्यक्तिगत संबंध बताया जाता है. इसी कारण मैनपुरी सीट पर शिवपाल का काफी असर रहता है. 2018 में पारिवारिक मतभेदों के चलते जब मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने प्रसपा का गठन कर सियासत की नई राह चुन ली. लेकिन इसके बाद भी शिवपाल सिंह ने 2019 के चुनाव में मुलायम सिंह यादव के सामने प्रसपा का प्रत्याशी उतारने से साफ मना कर दिया था. लेकिन, अखिलेश ने इस सीट से डिंपल यादव को उतार कर शिवपाल यादव को भी समझा दिया की वह चाचा हैं और नेता नहीं बन पाएंगे.
यादव बेल्ट पर शिवपाल की पकड़ मजबूत
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पीएन द्विवेदी कहते हैं कि मुलायम का परिवार करीब ढाई दशक से मैनपुरी सीट पर काबिज है. शिवपाल यहां से अगर बागी होते हैं तो चुनावी समीकरण जरूर बिगाड़ सकते हैं क्योंकि उनका इस सीट पर ठीक ठाक प्रभाव है. ऐसे में अखिलेश को उन्हें साधना पड़ेगा. क्योंकि मुलायम सिंह यादव के चले जाने के बाद अब शिवपाल यादव के लिए यादव बेल्ट में खुद के लिए बड़ी भूमिका तलाशना चुनौती भी है.
हालांकि अभी मुलायम के प्रति सहानुभूति का लाभ अखिलेश यादव को ही मिलने के आसार ज्यादा हैं. फिर भी शिवपाल की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है.चुनावी आंकड़ों की मानें तो मैनपुरी में सर्वाधिक 3.5 लाख यादव, डेढ़ लाख ठाकुर और 1.60 शाक्य मतदाता हैं. मुस्लिम, कुर्मी, लोधी वोटर तकरीबन एक एक लाख है. ब्राह्मण व जाटव डेढ़-डेढ़ लाख हैं.
तेज प्रताप के भी नाम की चर्चा थी
इससे पहले परिवार के ही एक अन्य युवा चेहरा तेज प्रताप के भी नाम की चर्चा थी. तेज 2014 में यह इस सीट से लोकसभा चुनाव जीत चुके हैं. उस समय मुलायम सिंह यादव ने इस सीट को खाली किया था. हालांकि पार्टी के सूत्रों का कहना है कि मैनपुरी के लोगों में तेज प्रताप को लेकर जो गुस्सा है उसे देखते हुए अखिलेश ने अपनी पत्नी डिंपल की प्रत्याशी बना दिया.
सपा के एक नेता ने कहा, 'मैनपुरी के लोगों को लगता है कि तेज प्रताप ने सांसद रहते हुए उनके लिए पर्याप्त काम नहीं किया है. अगर ऐसे में वह तेज प्रताप को मैदान में उतारते हैं तो पार्टी को कुछ वोट गंवाने पड़ सकते थें इसलिए डिंपल को उम्मीदवार के तौर पर उतारना सुरक्षित विकल्प है.' उन्होंने कहा कि डिंपल को मैनपुरी के लोगों बहू की तरह देखते है और वे अपने ससुर की सीट और विरासत को बनाए रखने की कोशिश कर रही है. ऐसे में जनता बहू को वोट देना चाहेंगे और वह उस सीट पर अच्छा प्रदर्शन करेगी.
डिंपल नहीं संभाल पाईं अखिलेश की विरासत
अखिलेश यादव ने डिंपल यादव को मुलायम सिंह के सियासी उत्तराधिकारी तौर पर मैनपुरी उपचुनाव में उतार तो दिया हो, लेकिन 1999 में अखिलेश से शादी करने वाली और सांसद रह चुकीं डिंपल का इतिहास देखें तो विरासत को आगे बढ़ाने या संभालने के मामले में बहुत सफल नहीं रहीं हैं. डिंपल यादव अपनी सियासी जीवन में चार बार चुनाव लड़ चुकी हैं, इनमें दो बार उन्हें जीत हासिल हुई तो वहीं दो बार हार का सामना भी करना पड़ा.
सपा के सत्ता से बाहर रहते हुए डिंपल यादव न तो कन्नौज को संभालकर रख पाई और न ही फिरोजाबाद. जबकि इन दोनों सीटों को सपा का मजबूत गढ़ माना जाता है. इस सीट पर अखिलेश यादव खुद सांसद रह चुने जाते रहे हैं. 'यादव' बेल्ट की यह दोनों ही सीटें मुलायम परिवार का मजबूत दुर्ग मानी जाती थी, लेकिन यहां भारतीय जनता पार्टी के सांसद हैं.
साल 2009 में अखिलेश यादव कन्नौज और फिरोजाबाद से सांसद चुने गए थे, जिसके बाद उन्होंने फिरोजाबाद से इस्तीफा दे दिया और फिरोजाबाद उपचुनाव में सपा से डिंपल यादव को उतारा. उस वक्त उनका सामना कांग्रेस से राजबब्बर मैदान में था. उस उपचुनाव में अखिलेश यादव की लाख कोशिशों के बाद भी डिंपल यादव सीट से चुनाव हार गईं. इसके बाद साल 2012 में डिंपल यादव संसद तब पहुंचीं जब अखिलेश यादव यूपी के मुख्यमंत्री बने और कन्नौज सीट से इस्तीफा दे दिया था.
साल 2012 में डिंपल यादव कन्नौज उपचुनाव में निर्विरोध चुनी गई थीं, लेकिन इसके दो साल बाद ही हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में सपा को इस सीट को बचाने में काफी मशक्कत करना पड़ी थी. उस चुनाव में डिंपल यादव महज 19,907 वोटों से ही जीत पाई जबकि सूबे की सत्ता में सपा और मुख्यमंत्री की कुर्सी पर अखिलेश यादव थे.
इसके जब यूपी की सियासत ने करवट ली और सत्ता सपा के हाथ से निकल गई तो डिंपल यादव कन्नौज सीट को भी नहीं बचा पाईं. साल 2019 के चुनाव में कन्नौज सीट से बीजेपी ने जीत दर्ज किया और डिंपल यादव हार गईं. इस तरह डिंपल अपने पति अखिलेश की विरासत को संभालकर नहीं रख सकीं और अब अपने ससुर मुलायम सिंह की सीट से चुनावी मैदान में उतरी हैं.
26 साल से राज कर रही सपा
राजनीतिक पंडितों की मानें तो सपा मुखिया अखिलेश यादव का परिवार 26 साल से मैनपुरी सीट पर काबिज रहा है. उन्हें लगता है कि उनके इस निर्णय से मुलायम की सहानुभूति के अलावा महिलाओं का भी भरपूर समर्थन मिलेगा.
सपा के एक स्थानीय नेता ने बताया कि सपा के बाद दूसरा कोई भी दल इस गढ़ को फतेह नहीं कर सका. उन्होंने कहा कि इटावा, मैनपुरी, कन्नौज, फिरोजाबाद और फर्रुखाबाद जैसे जिले सपा की गढ़ माने जाते हैं और यादवों की बड़ी आबादी के समर्थन से अधिकतर सीटों पर साइकिल का कब्जा होता रहा है.
अखिलेश का मैनपुरी प्लान
इस उपचुनाव में परिवार की परंपरागत सीट को बचाने के लिए अखिलेश मैनपुरी में मुलायम से जुड़े पुराने नेताओं से मिलेंगे, रैलियां भी करेंगे. डिंपल के प्रचार के लिए जया बच्चन भी आएंगी. पिछले दिनों अखिलेश रामपुर व आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव में नहीं गए थे. भाजपा ने यह दोनों सीट जीत लीं. तब यह सवाल उठा था कि वह प्रचार के लिए क्यों नहीं गए. वहीं दूसरी तरफ शिवपाल के लिए अब मैनपुरी में कोई कदम उठाना सपा की संभावनाओं को प्रभावित कर सकता है.
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