नयी दिल्ली: परिवार नियोजन पर काम कर रहे एक समूह एडवोकेटिंग रिप्रोडक्टिव च्वाइसेस (एआरसी) ने कहा है कि दो संतान रखने और नयी जनसंख्या नीति बनाने की कुछ सांसदों की मांग उचित नहीं है क्योंकि भारत की प्रजनन दर पिछले एक दशक में कम हो गयी है.


हालांकि, समूह ने 2000 की राष्ट्रीय जनसंख्या नीति को संशोधित करने की जरूरत पर सांसदों द्वारा व्यक्त की गयी राय का स्वागत करते हुए कहा कि 2030 के वैश्विक टिकाऊ विकास लक्ष्यों की तर्ज पर जनसंख्या स्थिरीकरण के लिए देश के प्रयासों को परिभाषित करने की तत्काल जरूरत है.


एडवोकेटिंग रिप्रोडक्टिव च्वाइसेस (एआरसी) ने कहा, ‘‘जनसांख्यिकीय विपदा की आशंका में दो संतान की नीति लागू करने की बात उचित नहीं है क्योंकि पिछले एक दशक में भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.7 से घटकर 2.2 रह गयी है."


बता दें कि लोकसभा में पिछले सप्ताह भाजपा सांसद राघव लखनपाल ने एक निजी विधेयक पेश किया था और तेजी से बढ़ती जनसंख्या को कम करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण की सख्त नीति लागू करने की मांग की थी.


एआरसी ने कहा कि कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में दो से अधिक संतान रखने वाली महिलाओं को लाभों से वंचित करने के लिए कानून बनाया गया था. इस नियम के वजह से लड़के की चाह रखने वाले लोग लिंग पहचान कर गर्भपात कराने लगे थे. वहीं दूसरी तरफ इसकी वजह से महिलाओं को छोड़े जाने की घटनाएं भी बढ़ने लगीं थी.


समूह ने कहा, "छह साल तक के बच्चों में प्रति एक हजार बच्चों पर 919 बच्चियों के अनुपात के मद्देनजर दो संतान की नीति भारत में कारगर साबित नहीं होगी और इससे लड़कियों के प्रति भेदभाव और बढ़ेगा."