मालदीव इस वक्त चीन के कर्ज के भारी दलदल में फंसा हुआ है. पिछले दिनों मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति और वहां के संसदीय स्पीकर मोहम्मद नशीद ने कहा कि अगर देश अपने सारे जेवर को बेच देगा तब भी चीन के ऋण से मुक्ति नहीं मिलेगी.  चीन में हाल में करीब 20 करोड़ डॉलर की लागत से मालदीव में 2.1 किमी लंबे चीन-मालदीव मैत्री पुल का निर्माण हिंद महासागर के बीच किया है। ऐसे में चीन के बढ़ते प्रभाव की काट के तौर पर भारत ने अगस्त में 50 करोड़ डॉलर (36.98 अरब रुपये) के पैकेज की घोषणा की थी. 6.7 किलो मीटर लंबा पुल माले को तीन द्वीपों से जोड़ेगा. यह मालदीव में सबसे बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना होगी, जो चीन के बढ़ते प्रभुत्व की काट है। चीन से परेशान मालदीव अब भारत की ओर देख रहा है.


सोलिह के सत्ता में भारत ने दिया 2 बिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज


मालदीव अब द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के लिए प्रयासरत है. भारतीय विदेश मंत्रालय के अनुसार, सोलिह के सत्ता में आने के बाद मालदीव को दी जाने वाली वित्तीय सहायता 2 बिलियन डॉलर (147.92 अरब रुपये) से अधिक हो गई है. यह मालदीव के महत्व व दिल्ली के दृष्टिकोण की ओर इशारा करता है. पीएम नरेंद्र मोदी ने मालदीव को 1.4 बिलियन डॉलर (103.54 अरब रुपये)  की वित्तीय सहायता और इस साल अगस्त में भारत ने ग्रेटर माले कनेक्टिविटी प्रोजेक्ट के लिए 50 करोड़ डॉलर (36.98 अरब रुपये) के पैकेज की घोषणा की. मालदीव में भारत द्वारा वित्त पोषित कई बुनियादी ढांचा परियोजनाएं पहले से ही चल रही हैं.


मालदीव पर कितना है चीन का कर्ज


राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार को नवंबर 2018 में शपथ ग्रहण के बाद यह पता लगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी कि चीन की कितनी राशि मालदीव पर बकाया है. केंद्रीय बैंक गवर्नर का मानना था कि सीधे तौर पर 60 करोड़ डॉलर (44.37 अरब रुपये) बकाया है, लेकिन मालदीव की कंपनियों को सरकारी गारंटी के तहत जारी ऋणों में 90 करोड़ डॉलर (66.56 अरब रुपये) भी थे. पूर्व राष्ट्रपति और अब सोलिह की सत्तारूढ़ मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता मोहम्मद नशीद ने कहा है कि चीन का मालदीव पर ऋण 3 अरब डॉलर (221.88 अरब रुपये) या जीडीपी का आधे से अधिक हो सकता है. हालांकि चीन ने इस आंकड़े को अतिरंजित कहा है.


यामीन सरकार के दौरान आई थी भारत से खटास


भौगोलिक निकटता और मजबूत ऐतिहासिक व आर्थिक संबंधों को देखते हुए मालदीव भारत का निकटतम सहयोगी रहा है. 1965 में अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद माले को मान्यता देने वाले पहले देशों में से भारत एक था. 1988 में मौमून अब्दुल गयूम के खिलाफ तख्तापलट के प्रयास को भारत ने पैराट्रूपर्स की मदद से विफल कर दिया था. हिंद महासागर में 2004 में आई सुनामी के बाद भारत ने मालदीव में सहायता के लिए नौसेना के तीन जहाज भेजे थे. लेकिन यामीन के बाद रिश्तों में खटास आ गई.


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