पूर्व प्रधानमंत्री और समाजवादी नेता चंद्रशेखर सिंह की आज 15 वीं पुण्यतिथि मनाई जा रही है. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह को भारतीय राजनीति में युवा तुर्क के नाम से जाना जाता है. उनका जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इब्राहिमपट्टी में एक किसान परिवार में हुआ था. पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह का देहांत 2007 में आज ही के दिन दिल्ली के अपोलो अस्पताल में हुआ था.


इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ली एम.ए. की डिग्री


दिवंगत चंद्रशेखर सिंह ने भीमपुरा के राम करन इण्टर कॉलेज से स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद 'पूर्व का ऑक्सफोर्ड' कही जाने वाली इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम.ए. की डिग्री प्राप्त की थी. उन्होंने 1950-51 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में यह डिग्री प्राप्त की थी. छात्र जीवन में उन्होंने एक फायर ब्रान्ड नेता के तौर पर पहचान बना ली थी. जिसके बाद वह समाजवादी राजनीति में सक्रिय रूप से जुड़ गए थे.


1977 में वह पहली बार लोकसभा सांसद


इसके बाद उन्हें सक्रिय राजनीति में कदम रखने के साथ ही 195-56 में उत्तर प्रदेश के राज्य प्रजा समाजवादी पार्टी के महासचिव का पद भी संभाला था. जिसके बाद वह 1962 में उत्तर प्रदेश से राज्यसभा के लिए चुने गए. इसके बाद उन्होंने 1965 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का हाथ थाम लिया और 1967 में उन्हें कांग्रेस संसदीय दल का महासचिव चुना गया. साल 1977 में वह पहली बार बलिया से लोकसभा सदस्य चुने गए.


कांग्रेस में पद पर रहने के बाद आपातकाल में हुई जेल


चंद्रशेखर सिंह ने 1969 में दिल्ली से प्रकाशित होने वाली एक साप्ताहिक पत्रिका 'यंग इंडियन' के संस्थापक और संपादक का पद भी संभाला. फिलहाल अपने खुलकर बोलने और तीखे व्यक्तित्व के कारण कांग्रेस में रहने के बाद भी उन्हें आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया गया था. जिस दौरान 1975 से 1977 'यंग इंडियन' का प्रकाशन रोक दिया गया था. 


1990 में काग्रेस के समर्थन से बने प्रधानमंत्री


वहीं आपात काल के बाद चंद्रशेखर सिंह ने विपक्षी दलों के द्वारा बनाई गई जनता दल का अध्यक्ष चुना गया था.  वहीं 1977 में जब उनकी पार्टी सत्ता में आई तो उन्होंने मंत्री पद से इंकार दिया था. वहीं साल 1990 में उन्हें देश का प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. उस वक्त राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने उनका समर्थन किया था. जिसके बाद वह 7 महीने ही सरकार चला सके, कांग्रेस की बात मानने से इंकार करने पर राजीव गांधी ने उनसे अपना समर्थन वापस ले लिया था.


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