यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ऐसा ही एक नाम है जो शहनाई वादन का पर्याय है. बिहार के डुमरांव में संगीतकारों के परिवार में जन्मे उस्ताद बिस्मिल्ला की संगीत यात्रा बहुत कम उम्र में उनके चाचा अली बक्स, ‘विलायतु ’के निर्देशन में शुरू हुई थी.


आज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की 105वीं जयंती है और शहनाई को ग्लोबल स्टेज पर ले जाने में उनका बहुत बड़ा योगदान है. अपने जीवन काल में कई उल्लेखनीय उपलब्धियों के साथ सम्मानित खान उन कुछ गीतकारों में से एक हैं जिन्हें भारतीय संगीत में उनके योगदान के लिए भारत रत्न मिला है.


पहले गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर बजाई शहनाई
जब हमारा देश ब्रिटिश राज से आजादी पाई थी तो यह खान की शहनाई थी जो माहौल को सराह रही थी और पं. जवाहरलाल नेहरू ने स्वतंत्र भारत में पहली बार लाल किले से तिरंगा फहरा रहे थे.दरअसल, उन्होंने आजादी की पूर्व संध्या और पहले गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर शहनाई बजाई थी. यहां तक कि आज भी गणतंत्र दिवस समारोह का प्रसारण उनकी शहनाई की धुनों के साथ होता है.


भारत ‘अनेकता में एकता ’के लिए जाना जाता है और खान वह व्यक्ति जिसने वास्तव में इसका संकेत दिया था. गौतम घोष द्वारा 'संग ए-मिल से मुलाकात' शीर्षक पर उनके जीवन पर बनी एक डॉक्यूमेंट्री में खान ने बनारस में अपने विशिष्ट दिन का वर्णन किया है. जैसे, " गंगा में नहाए, मस्जिद में नमाज अदा की और बालाजी मंदिर में रियाज किया ” वह सादगी पसंद व्यक्ति थे.


जीवन में मिले कई सम्मान
बिस्मिल्ला खां को साल 2001 में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया था. इससे पहले उन्हें साल 1980 में पद्म विभूषण, 1968 में पद्म भूषण, 1961 में पद्म श्री और 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उस्ताद बिस्मिल्ला खां का 90 साल की उम्र में 21 अगस्त 2006 को निधन हो गया था.


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