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Mother's Day Special: महामारी में भी सुरक्षा का एहसास देता है मां का साथ

छुट्टी मनाने आए लोग लॉकडाउन के कारण अपने घरों पर फंस गए.मदर्स डे पर ये लोग अपनी मां के साथ एंजॉय कर रहे हैं.

नई दिल्ली: आज ( 10 मई) मदर्स डे है. वहीं कोरोना के चलते लॉकडाउन भी जारी है. मदर्स डे के इस मौके पर हम आपको बता रहे हैं सोनाली पुरी और उनके जैसे कुछ लोगों की कहानी. जो अपने घर छुट्टी मनाने गए थे लेकिन लॉकडाउन की वजह से वहीं पर फंस गए लेकिन अब मदर्स डे पर वह अपनी मां के साथ एंजॉय कर रहे हैं.

सोनाली पिछले दिनों जब मुंबई-जम्मू उड़ान पर सवार थी तो उसके मन में मशहूर फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ का एक दृश्य घूम रहा था. इस दृश्य में शाहरुख खान अपनी मां को हैरत में डालने के लिए हेलीकॉप्टर से उतर कर अचानक अपने घर पहुंचते हैं. लेकिन उसकी मां की ममता को अपने बेटे के आने का अंदाजा लग जाता है और वह दरवाजे पर पूजा की थाली लिए उसका इंतजार करती मिलती हैं.

सोनाली पुरी के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. उसकी मां दरवाजे खड़ी उसका इंतजार तो कर रही थी किंतु उनके हाथ में ‘ पूजा की थाली’ के बजाय हैंड सैनिटाइजर था. हंसते हुए 37 साल की पुरी ने कहा, ‘‘मेरी मां ने मुझसे कहा, अच्छी स्वच्छता कोरोना वायरस के इस दौर में एक आशीर्वाद के समान ही है.’’

छुट्टी लेकर आईं थी सोनाली

यह बात मार्च महीने की है. सोनाली पुरी का जम्मू में ही घर है जहां वह अभी भी हैं. थोड़ी छुट्टियों का यह समय अचानक मां-बेटी के लिए फुर्सत में के लंबे दौर में बदल गया. सालों बाद दोनों को अपनी पुरानी यादों को साथ साथ फिर से जीने का अवसर मिला.

इस दौरान इस मदर्स डे पर भी पुरी को घर पर रहने का मौका मिला है. पिछले कई वर्षों में शायद पहली बार पुरी इस दिन घर पर है. पुरी ने कहा कि वह बहुत खुश है कि वह इस तनावपूर्ण लॉकडाउन अवधि में अपनी मां के साथ हैं.

मां के साथ एंजॉय कर रही हैं सोनाली पुरी

उसने बताया, ‘‘मुझे याद भी नहीं है कि पिछले 10 सालों में अपनी मां के साथ इतना समय कब बिताया था. हम कार्ड खेलते हैं, वह अभी भी बेइमानी करती हैं. पुरानी फिल्में देखी, खाना बनाया, गाने गाए, नाचे और निश्चित रूप से लड़ाई भी की. सब कुछ वही पुराने समय की तरह...सब कुछ बिल्कुल उसी तरह....’’

पुरी ने कहा, ‘‘सबसे अच्छी बात यह है कि उसके आस-पास होने के कारण मैं फिर से बच्ची बन जाती हूं और मेरे साथ होने से वह फिर से एक छोटी बच्ची की मां बन जाती है. यहां तक कि उनके होने से घर से काम करना भी तनावपूर्ण नहीं लगता.’’ उल्लेखनीय है कि राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन को पहले तीन मई तक और फिर बाद में 17 मई तक बढ़ा दिया गया है और बाद में इसमें कुछ छूट भी दी गई.

जब इंसान को कहीं आसरा नहीं मिलता है, कहीं कोई उम्मीद नहीं बचती है, तो घर ही उसका आखिरी सहारा होता है, इसीलिए संकट के इस दौर में लाखों लोग प्रवासी श्रमिक अपने घर पहुंचने के लिए बहुत ज्यादा जोखिम उठा रहे हैं और हर हाल में अपने घर पहुंचना चाहते हैं. पुरी और उनके जैसे कई लोगों के लिए, घर वही है जहां परिवार हो, या शायद जहां बस मां हो.

रमांश बिलावरिया बने मां के लाडले

दिल्ली के 27 साल के वकील रमांश बिलावरिया का कहना है, ‘‘इस महामारी में के दौरान वह अपनी मां के लाडले बन गए हैं. उनका कहना है, ‘‘चाहे किराने सामान की खरीदारी हो, व्यंजनों की बात हो, विक्रेताओं के साथ मोलभाव करने की बात हो और यहां तक कि पहले झाड़़ू लगाना हो या पोंछा मारना हो.. ऐसी छोटी-छोटी बातें भी उन्हें मां से पूछनी पड़ती है।’’

रमांश ने कहा कि मैं हाल ही में अपनी नौकरी के लिए दिल्ली में आया था. उन्होंने कहा, ‘‘मैं गिनती करना भूल गया कि लॉकडाउन के दौरान मैंने अपनी मां को कितनी बार फोन किया होगा. अगर मैं उनकी जगह होता तो फोन उठाना बंद कर देता. भगवान का शुक्र है, वह मेरी तरह नहीं है. मैंने उनसे अगली मुलाकात पर उन्हें स्पैनिश अंडे खिलाने का वादा किया है, यही एक डिश है जिसे मैंने उसकी मदद के बिना सीखा है.''

हरियाणा की 35 वर्षीय एक शिक्षिका सिमी गुप्ता इस जुलाई में एक बच्चे की मां बनने जा रही हैं. गर्भावस्था के आखिरी दो महीनों में अपनी मां के साथ नहीं होना उसके लिए बहुत ही कष्टकर है. लेकिन यह वास्तविकता है और वह उसका मुकाबला कर रही हैं. उम्मीद है कि जल्द ही लॉकडाउन हट जाएगा और उनकी मां बच्चे के जन्म के समय आगरा से उसके पास आ सकेंगी.

गुप्ता ने कहा, ‘‘एक बेटी को गर्भावस्था के दौरान अपनी मां की सबसे ज्यादा जरूरत होती है. ऐसे में किसी काम या चीज को लेकर नहीं होती. उसकी मात्र उपस्थिति भर से सब चीजें अच्छी लगने लगती हैं. मेरे पति और मैं उनसे कई बार वीडियो कॉल पर बात करते हैं, बच्चे से जुड़ी हर चीज की जानकारी उनसे लेते हैं.’’ सभी उम्र के पुरुषों और महिलाओं का यही कहना है, घर पर मां के साथ होना ही अपने आप में एक सुखद एहसास होता है.

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