नई दिल्ली: देश की आज़ादी की लड़ाई में कुछ नौजवानों की शहादत ने स्वतंत्रता संग्राम का रुख बदलकर रख दिया था. एक ऐसा ही नाम खुदीराम बोस का भी है, जिन्हें 11 अगस्त 1908 को महज़ 19 साल की उम्र में फांसी दे दी गई थी. अग्रज़ी सरकार उस वक्त खुदीराम की निडरता और वीरता से इतना डरी हुई थी कि उन्हें इतनी कम उम्र में ही फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया. अपनी वीरता के लिए पहचाने जाने वाले खुदीराम हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी के फंदे पर चढ़ गए थे. आइये आज उनकी पुण्यतिथि पर उनकी वीर गाथा के बारे में जानें और उन्‍हें याद करें.


पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था खुदीराम का जन्म


देश को आज़ादी दिलाने के लिए कुछ भी कर गुज़रने की तम्नना रखने वाले खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में हुआ था. वह 9वीं कक्षा में ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद गए थे. 1905 में बंगाल विभाजन के विरोध में हुए आंदोलन में भी उन्होंने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था. खुदीराम की निडरता और आज़ादी के लिए उनके जज्बे को देखते हुए 28 फरवरी 1906 को सिर्फ 17 साल की उम्र में उन्हें पहली बार गिरफ्तार किया गया था, लेकिन वह अग्रेज़ों को चखमा देकर जेल से भाग निकले थे. हालांकि, सिर्फ दो महीने के बाद उन्हें दोबारा पकड़ लिया गया था. इसके दो महीनें बाद वह फिर से पकड़ लिए गए थे.


इस कारण खुदीराम ने सेशन जज की गाड़ी पर किया था हमला


कई देशभक्तों को कड़ी सजा देने वाले किंग्सफोर्ड को सबक सिखाने के लिए कुदीराम ने अपने साथी प्रफुल्लचंद चाकी के साथ मिलकर 30 अप्रैल 1908 को सेशन जज की गाड़ी पर बम फेंक दिया, लेकिन गाड़ी में सेशन जज की जगह उसकी परिचित दो यूरोपीय महिलाएं कैनेडी और उसकी बेटी सवार थीं. इस हमले में किंग्सफोर्ड की दोनों महिलाएं मारी गईं, जिसका खुदीराम और प्रफुल चंद चाकी को काफी अफसोस हुआ था.


11 अगस्त 1908 को खुदीराम को दी गई थी फांसी


इस हमले के बाद खुदीराम अंग्रज़ों के निशाने पर आ गए और अंग्रज पुलिस पूरी तरह से उनके पीछे लग गई. एक बार अंग्रजों ने वैनी स्टेशन पर खुदीराम और प्रफुल चंद को घेर लिया. अपने को पुलिस से घिरा देख प्रफुल ने खुद को गोली मार ली जबकि खुदीराम पकड़े गए. इसके बाद मुजफ्फरपुर जेल में महज़ 19 साल की उम्र में 11 अगस्त 1908 को उन्हें फांसी पर लटका दिया गया.


देश के लिए शहीद होने के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहो ने उन्हें सम्मान देने के लिए एक खास किस्म की धोती बुनने का फैसला किया, जिसपर खुदीराम लिखा होता था. हालांकि, खुदीराम की मौत पर विद्यार्थियों ने काफी शोक जताया था. उनकी शहादत के कारण उस वक्त कई दिनों तक स्कूल बंद रहे थे.


इस साल खुदीराम के बलिदान दिवस पर नहीं होगा कोई समारोह


गौरतलब है कि अमर शहीद खुदीराम बोस के बलिदान दिवस पर हर साल 11 अगस्त को उनके फांसी स्थल पर एक बड़े समारोह का आयोजन होता है. लेकिन इस साल कोरोना वायरस के कारण उनके बलिदान दिवस पर किसी समारोह का आयोजन नहीं होगा.


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