कल ही होगा मध्य प्रदेश विधानसभा में बहुमत परीक्षण, संकट में कमलनाथ सरकार
सुप्रीम कोर्ट पहुंचे पूर्व सीएम और वरिष्ठ बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान ने अदालत से मामले में दखल देने की मांग की थी.कोर्ट में मुकुल रोहतगी ने कर्नाटक और महाराष्ट्र का उदाहरण भी दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे के भीतर राज्य सरकार के बहुमत परीक्षण का आदेश दिया था.
नई दिल्ली: मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार का कल बहुमत परीक्षण होगा. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि पूरी प्रक्रिया को शाम 5 बजे तक निपटा लिया जाए. 2 दिन तक चली सुनवाई के बाद आदेश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विधानसभा के सत्र को 26 मार्च तक के लिए स्थगित करना सही नहीं था.
दरअसल, कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे के चलते राज्य की कमलनाथ सरकार अल्पमत में नजर आ रही है. ऐसे में, राज्यपाल लालजी टंडन ने सरकार को 16 मार्च को बहुमत साबित करने को कहा था. उस दिन विधानसभा की कार्यवाही शुरू तो हुई, लेकिन उसे कुछ देर के बाद 10 दिन के लिए स्थगित कर दिया गया. बहाना बनाया गया कोरोना बीमारी का.
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे पूर्व सीएम और वरिष्ठ बीजेपी नेता शिवराज सिंह चौहान ने अदालत से मामले में दखल देने की मांग की. शिवराज के वकील मुकुल रोहतगी ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट एस आर बोम्मई समेत तमाम मामलों में यह फैसला दे चुका है कि सरकार के बहुमत में होने पर अगर संदेह हो तो उसका फ्लोर टेस्ट होना चाहिए. रोहतगी ने कर्नाटक और महाराष्ट्र का उदाहरण भी दिया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने 24 घंटे के भीतर राज्य सरकार के बहुमत परीक्षण का आदेश दिया था.
इसके जवाब में सीएम कमलनाथ की तरफ से कपिल सिब्बल ने कांग्रेस के 22 विधायकों को बेंगलुरु में बंधक बनाकर रखे जाने का आरोप लगाया. सिब्बल की दलील का विरोध करते हुए बागी विधायकों के वकील मनिंदर सिंह ने कहा, “विधायक अपनी इच्छा से बेंगलुरु में हैं. स्पीकर ने 22 में से सिर्फ 6 इस्तीफे स्वीकार किए हैं. इससे साफ तौर पर सरकार को बचाने के लिए स्पीकर की भी मिलीभगत नजर आ रही है." मनिंदर सिंह ने यह भी कहा कि स्पीकर त्यागपत्र स्वीकार करें या न करें, या विधायकों को अयोग्य करार दिया जाए. वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा नहीं लेना चाहते.
विधानसभा के स्पीकर की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि स्पीकर को विधायकों के इस्तीफे पर फैसला लेने के लिए 2 हफ्ते का समय मिलना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर विधानसभा का सत्र चल रहा हो तो स्पीकर को उसकी कार्रवाई तय करने का अधिकार होता है. राज्यपाल यह तय नहीं कर सकते कि सदन का एजेंडा क्या होगा.
राज्यपाल की तरफ से सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया, “राज्यपाल को 22 विधायकों के इस्तीफे की जानकारी मिली थी. खुद सीएम फ्लोर टेस्ट में जाने की बात कर रहे थे. राज्यपाल का यह संवैधानिक दायित्व है कि वह यह देखें राज्य की सरकार संवैधानिक पैमानों पर पूरी उतरती है या नहीं? इसलिए उन्होंने फ्लोर टेस्ट का आदेश दिया."
2 दिन तक चली मैराथन सुनवाई के बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमंत गुप्ता की बेंच ने वही आदेश दिया जो सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मद्देनजर तय नजर आ रहा था. जजों ने कहा, “राज्य में 10 दिन के लिए विधानसभा को स्थगित करने का फैसला सही नहीं था. सत्र को कल ही बुलाया जाए और उसमें एक ही एजेंडा हो- राज्य सरकार का बहुमत परीक्षण. विधायक हाथ उठाकर मतदान करें. पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी हो."
जजों ने यह भी साफ कर दिया कि जो विधायक बेंगलुरु में बैठे हैं, उन्हें भोपाल आने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता. फैसले में लिखा गया है, “अगर विधायक बेंगलुरु में रहना चाहते हैं, तो कर्नाटक के डीजीपी उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करें. अगर वह भोपाल आना चाहते हैं तो कर्नाटक के बीजेपी उनकी सुरक्षित रवानगी तय करें. मध्य प्रदेश के डीजीपी उन्हें सुरक्षित विधानसभा तक पहुंचाएं."
इस तरह कोर्ट ने यह बागी विधायकों के ऊपर ही छोड़ दिया है कि वह सदन की कार्यवाही में हिस्सा लेंगे या नहीं. विधायक पहले ही सरकार का साथ छोड़ चुके हैं. ऐसे में कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल गहरे हो गए हैं. विधायकों के गैरमौजूद रहने से बहुमत का आंकड़ा कमलनाथ के खिलाफ जाता हुआ नजर आ रहा है.
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