नई दिल्ली: टूलकिट मामले में पटियाला हाउस कोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को तिहाड़ जेल से रिहा कर दिया गया है. तिहाज़ जेल के डीजी ने बताया कि दिशा जेल से निकल चुकी हैं, उन्हें रिहा कर दिया गया है. बता दें कि किसान आंदोलन से जुड़े एक टूलकिट मामले में दिशा रवि को 13 फरवरी को बेंगलुरू से दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था.


आज एडिशनल सेशन जज धर्मेंदर राणा ने दिशा रवि को एक लाख रुपये के निजी मुचलके और इतनी ही राशि की दो जमानत भरने पर ज़मानत दी. इससे पहले बीते रोज़ दिशा रवि की कस्टडी पूरी होने के बाद पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें एक दिन की पुलिस हिरासत में भेजा था. बता दें कि दिशा की ज़मानत अर्ज़ी पर शनिवार को सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने आज के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया था.


आज दिशा रवि की एक दिन की पुलिस हिरासत पूरी होने के बाद दिल्ली पुलिस ने उन्हें मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के सामने रिमांड बढ़ाने की मांग को लेकर पेश किया. रिमांड बढ़ाने की सुनवाई के दौरान ही दिशा रवि के वकील ने मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट को जानकारी दी कि पटियाला हाउस कोर्ट ने दिशा की ज़मानत याचिका मंज़ूर कर ली है. अब ज़मानत मंज़ूर होने के कुछ घंटों के बाद ही दिशा की जेल से रिहाई हो गई है.


ज़मानत देते हुए जज ने क्या टिप्पणियां कीं
दिशा की ज़मानत मज़ूर करते हुए अदालत ने कहा कि दिशा और ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’ (पीजेएफ) के खालिस्तान समर्थक कार्यकर्ताओं के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करने के लिए कोई सबूत नहीं है. अदालत ने कहा कि रत्ती भर भी सबूत नहीं है, जिससे 26 जनवरी को हुई हिंसा में शामिल अपराधियों से पीएफजे या रवि के किसी संबंध का पता चलता हो.

इसके अलावा, अदालत ने कहा कि प्रत्यक्ष तौर पर ऐसा कुछ भी नजर नहीं आता जो इस बारे में संकेत दे कि दिशा रवि ने किसी अलगाववादी विचार का समर्थन किया है. अदालत ने कहा कि दिशा रवि और प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ के बीच प्रत्यक्ष तौर पर कोई संबंध स्थापित नजर नहीं आता है.

अदालत ने कहा कि अभियुक्त का स्पष्ट तौर पर कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. जज ने कहा, "अल्प एवं अधूरे साक्ष्यों’’ को ध्यान में रखते हुए, मुझे 22 वर्षीय लड़की के लिए जमानत न देने का कोई ठोस कारण नहीं मिला, जिसका कोई आपराधिक रिकॉर्ड नहीं है."

जज ने कहा कि उक्त 'टूलकिट' के अवलोकन से पता चलता है कि उसमें किसी भी तरह की हिंसा के लिए कोई भी अपील नहीं की गई है. अदालत ने कहा, ‘‘मेरे विचार से, किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए नागरिक सरकार की अंतरात्मा के संरक्षक होते हैं. उन्हें केवल इसलिए जेल नहीं भेजा जा सकता क्योंकि वे सरकार की नीतियों से असहमत हैं." अदालत ने कहा कि किसी मामले पर मतभेद, असहमति, विरोध, असंतोष, यहां तक कि अस्वीकृति, राज्य की नीतियों में निष्पक्षता को निर्धारित करने के लिए वैध उपकरण हैं.

अदालत ने कहा, "उदासीन और मौन नागरिकों की तुलना में जागरूक एवं प्रयासशील नागरिक निर्विवाद रूप से एक स्वस्थ और जीवंत लोकतंत्र का संकेत है." अदालत ने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत असंतोष व्यक्त करने का अधिकार निहित है. मेरे विचार से बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में वैश्विक आह्वान करने का अधिकार शामिल है.’’ अदालत ने कहा, "संचार पर कोई भौगोलिक बाधाएं नहीं हैं. एक नागरिक को यह मौलिक अधिकार हैं कि वह संचार प्रदान करने और प्राप्त करने के लिए सर्वोत्तम साधनों का उपयोग कर सके." उसने कहा कि एक व्हाट्सएप ग्रुप बनाना या एक हानिरहित टूलकिट का संपादक होना कोई अपराध नहीं है.

अदालत ने कहा कि जांच एजेंसी को अनुकूल पूर्वानुमानों के आधार पर नागरिक की स्वतंत्रता को और प्रतिबंधित करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. गौरतलब है कि रवि को दिल्ली पुलिस के साइबर प्रकोष्ठ की एक टीम बेंगलुरु से गिरफ्तार कर दिल्ली लाई. उसकी पुलिस हिरासत की अवधि आज समाप्त हो रही है.

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