दिशा रवि की गिरफ्तारी के बाद टूलकिट चर्चा में, जानें आखिर क्यों है इस पर विवाद, एक्सपर्ट्स से जानें
एबीपी न्यूज ने विशेषज्ञों से जानने की कोशिश की कि क्या टूलकिट के इस्तेमाल का मामला पहला है. क्या इससे पहले भी आंदोलन में टूलकिट का इस्तेमाल होता रहा है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ उसका क्या संबंध है?
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स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने 3 फरवरी को अपने ट्विटर अकाउंट से एक टूलकिट साझा की थी. उसके साथ उन्होंने एक संदेश के जरिए भारत में आंदोलनरत किसानों का सहयोग करने के लिए टूलकिट की मदद लेने का आह्वान किया. अब टूलकिट मामले में दिल्ली पुलिस ने दिशा रवि को गिरफ्तार किया है. दिल्ली पुलिस ने 26 जनवरी की हिंसा में भी टूलकिट की साजिश के संकेत दिए हैं.
आखिर क्या है टूलकिट, जिस पर छिड़ा है विवाद?
विश्वभर में टूलकिट इस्तेमाल करने का मामला नया नहीं है. कई मौकों पर उसे आंदोलन से जुड़ी जानकारी जुटाने के लिए किया जाता है. अमरीका में हुए ब्लैक लाइव्स मैटर में टूलकिट से डिजिटल माध्यम पर लोगों को जोड़ने का काम किया गया था. इसी तरह से लॉकडाउन का विरोध और क्लाइमेट स्ट्राइक कैंपेन भी टूल किट के प्रयासों से सफल हुए थे. रूस में नवलेनी की रिहाई का मुद्दा भी भारत में चल रहे किसान आंदोलन की तरह चर्चा में है. लेकिन टूलकिट का विवाद क्या है, जिस पर हंगामा मचा है.
एबीपी न्यूज ने पर्यावरणविदों से टूलकिट के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए बातचीत की. पर्यावरणविद भवरीन कंधार बीते करीब 16 सालों से पर्यावरण के क्षेत्र में सक्रिय हैं. उन्होंने बताया कि टूलकिट एक कोलाज की तरह होता है, सभी जानकारी एक लिंक पर डाली जाती हैं, हैशटैग बना दिए जाते हैं, जिसके चलते आम नागरिक को जानकारी आसानी से उपलब्ध हो जाती है और जगह-जगह भटकना नहीं पड़ता है.
डिजिटल दुनिया में ये अपना काम आसानी से करने का नया तरीका है. मेडिकल एसोसिएशन ने कोरोना वायरस के दौरान टूलकिट बनाई थी. किसान आंदोलन के दौरान भी टूलकिट तैयार की गई. कंधार आगे कहती हैं "अगर किसी मुद्दे में दम है तो भीड़ अपने आप आ जाती है, उसके लिए टूलकिट को जिम्मेदार ठहराना ठीक नहीं. हालांकि दिशा ने टूलकिट में फासिस्ट जैसे टर्म इस्तेमाल किए हैं जिनकी जरूरत नहीं थी. लेकिन फासिस्ट शब्द का इस्तेमाल भी तो बोलने की अभिव्यक्ति है."
एबीपी न्यूज ने जानकारों से समझने का किया प्रयास
पर्यावरणविद विमलेंदु झा स्वेच्छा नाम के एनजीओ को पिछले दस सालों से चला रहे हैं. जलवायु प्रदूषण के खिलाफ अभियान में भी उनका योगदान है. एबीपी न्यूज को उन्होंने बताया कि टूलकिट दस्तावेज होते हैं जो सभी जरूरी जानकारी मुहैया कराता है. ये एक तरह के नॉलेज डॉक्यूमेंट हैं, अभी इस मुद्दे को राजनीति की दृष्टि से और डायनामाइट की तरह देखा जा रहा है. जानकारी देना लोगों को भड़काना नहीं होता.
टूल किट का उपयोग एंटी सीएए प्रदर्शन के दौरान हुआ, वहीं हवा की गुणवत्ता खराब होने पर भी टूलकिट बनाया गया था. टूलकिट के तहत बनाए गए हैश टैग को भी टूलकिट ही कहते हैं, जिसमे अधिकारी, जगह, कारण, रणनीति इत्यादि की जानकारी दी जाती है. झा कहते हैं "मैंने ग्रेटा की टूलकिट को पढ़ा है. उसमें किसान आंदोलन के संबंध में, लोगों के विरोध का कारण और तीन कानूनों की जानकारी दी गई है. ये ज्यादा से ज्यादा लोगों को मुद्दे के विषय में जागरूक करती है.
दिशा के ऊपर आरोप है कि उन्होंने ग्रेटा के टूलकिट की दो लाइन एडिट की. ये विडंबना है कि एक गणतंत्र देश में बिना जानकारी के ऐसा हो रहा है. गूगल, अखबार में आनेवाला हर आर्टिकल अपने आप में जानकारी देता है और ये टूलकिट है. सरकार की तरह रणनीति बनाने के बारे में जानकारी लेना आम लोगों का अधिकार है. किसान ट्वीट पढ़ कर सिंघु, टिकरी बॉर्डर पर नहीं आए हैं. 4 फरवरी को टूलकिट मिलने की बात कही जा रही है जबकि आंदोलन बहुत पहले से जारी है.
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