नई दिल्लीः टूल किट मामले को लेकर काफी विवाद चल रहा है. एक ओर जहां दिल्ली पुलिस ने न केवल इस बाबत एफआईआर दर्ज की बल्कि एक एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट दिशा रवि को भी गिरफ्तार किया है. इसके बाद राजनीतिक गलियारों में भी अब यह मुद्दा गरमा गया है. कई राजनीतिक दल इसका विरोध कर रहे हैं. पुलिस की इस कार्रवाई पर सवाल खड़े कर रहे हैं. इस बीच दिल्ली पुलिस द्वारा दर्ज एफआइआर में पुलिस की तरफ से जो आरोप लगाए गए हैं, उसके कुछ प्रमुख बिंदु आपको बता रहे हैं.


पुलिस ने सबसे पहले एक प्रतिबंधित संगठन का जिक्र किया है, जिसका नाम 'सिख फॉर जस्टिस' (एसएफजे) है. पुलिस ने लिखा है कि एसएफजे की तरफ से गणतंत्र दिवस के राष्ट्रीय समारोह में बाधा डालने के लिए मुहिम छेड़ी गई थी. जिसके लिए इस संगठन ने अपनी कई वेबसाइट और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का सहारा लिया और भारत विरोधी पोस्ट साझा की.


इतना ही नहीं अपनी पोस्ट में लोगों को इस कदर उकसाया गया कि वे भारत के अंदर न केवल सरकार का विरोध करें, बल्कि भारत की सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक सोच को भी बांट सकें. विदेशों में भी भारत का विरोध हो सके और विदेशी संस्थाएं जैसे यूएन में भारत के खिलाफ माहौल बनाया जा सके.


फेक न्यूज़ का लिया गया सहारा


दिल्ली पुलिस ने एफआईआर में लिखा है कि अपनी नापाक साजिश को सफल बनाने के लिए फेक न्यूज सोशल मीडिया पर डाले. जिससे कि भारत के अंदर अलग-अलग जाति, धर्म के लोगों के बीच नफरत फैल सके. 26 जनवरी को जब किसान ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली में हिंसा हुई. 26 जनवरी को हुई हिंसा में दिल्ली पुलिस के 500 से ज्यादा जवान घायल हुए.


26 जनवरी के बाद एक और फेक न्यूज़ का सहारा लिया गया जिसमें यह दावा किया गया कि दिल्ली पुलिस के 200 जवानों ने इस्तीफा दे दिया है. इस तरीके के कई हथकंडे अपनाए गए, जो भारत के आंतरिक माहौल को अस्थिर करने की एक साजिश थी.


एफआईआर में यह दावा किया गया है कि 26 जनवरी के बाद 4 और 5 तारीख को भी फरवरी को भी ट्विटर स्टॉर्म यानी ट्विटर पर ट्वीट की बाढ़ लानी थी. हालांकि 4 फरवरी को ग्रेटा थनबर्ग ने गलती से टूल किट पोस्ट कर दी और इस टूल किट के सार्वजनिक हो जाने पर इस पूरी साजिश का पर्दाफाश भी हो गया.


13 और 14 फरवरी को दिल्ली के अंदर करने थे प्रदर्शन


एफआईआर मे यह दावा किया गया है कि 13 और 14 फरवरी को लोगों को सड़कों पर उतर कर माहौल बना था या कहीं न कहीं प्रदर्शन करने की बात लिखी गई थी. पुलिस ने यह भी लिखा है कि उस टूलकिट में सामाजिक, आर्थिक सांस्कृतिक और क्षेत्र के खिलाफ लड़ाई छेड़ने की बात कही गई थी.


पुलिस का यह भी दावा है कि एसएफजे की तरफ से माहौल बिगाड़ने कि साजिश रचने वालों को आर्थिक मदद उपलब्ध कराने की भी बात कहीं गई थी. पुलिस का दावा है कि किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी मंसूबों को सफल बनाने की साजिश में भारत के खिलाफ आर्थिक युद्ध छेड़ने की साजिश हुई है. जिसमें कुछ भारतीय कंपनियों पर भी निशाना साधा गया है. न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी भारत को नुकसान पहुंचाने की तैयारी की गई है.


योगा और चाय भी है निशाने पर


योगा और चाय भारत की संस्कृति का हिस्सा है. इनके खिलाफ भी माहौल बनाने हमला करने की बात कही गई है. कुछ क्षेत्रों में शत्रुता इस कदर फैलाना चाहते हैं कि वहां पर विभाजन हो सके. अलग-अलग धर्मों, समुदायों और जातियों के बीच लड़ाई छीड़वा कर देश को नुकसान पहुंचाने की साजिश भी रची गयी.


ढाई लाख यूएस डॉलर का दिया था प्रलोभन


प्रतिबंधित संगठन यूथ फॉर जस्टिस, जिस पर यह आरोप है की उसने इंडिया गेट पर खालिस्तानी झंडा फहराने के लिए ढाई लाख यूएस डॉलर इनाम देने का वादा किया है. जो एक भड़काऊ बात है, जिसकी वजह से देश की आवाम में हिंसा होने की संभावना भी है और इन्हीं सब बातों का नतीजा है, जो 26 जनवरी को किसान रैली के दौरान दिल्ली के अंदर अलग-अलग स्थानों पर जैसे लाल किला, आईटीओ, नांगलोई आदि जगहों पर हिंसा देखने को मिली.


टूल किट में कई पत्रकारों के नाम भी दिए गए थे, जिन्हें टैग करना था. इसके अलावा यह बताया गया था किस तरीके से देश की कुछ बड़ी कंपनियों को आर्थिक तौर पर नुकसान पहुंचाना है. न केवल भारत के अंदर, बल्कि भारत के बाहर पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का जिक्र भी है, जिस पर इस टूल किट को तैयार कराने का आरोप है और यह आरोप भी है कि टूलकिट के माध्यम से लोगों को 26 जनवरी पर किसान ट्रैक्टर रैली में आकर शामिल होने के लिए भी एक कहा गया था.


इस किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी विचारधारा को फैलाने का काम किया जा रहा है. इतना ही नहीं जो लोग पंजाब को भारत से अलग कर खालिस्तान बनाने का नापाक इरादा रखते हैं. उन लोगों ने इस तरह की साजिश रची थी कि किसान आंदोलन सपोर्ट में वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर पोस्ट किए जाएं. किसानों को भी इस तरीके के वीडियो दिखाया जाए. ताकि अलग अलग क्षेत्र के लोगों के मनमुटाव हो और विवाद हो.


4 फरवरी को की थी एफआईआर दर्ज


दिल्ली पुलिस ने टूलकिट मामले में 4 फरवरी को स्पेशल सेल में एफआईआर दर्ज की थी. जिसकी जांच साइबर सेल (सायपैड) को सौंपी गई. एफआईआर में पुलिस का कहना है कि दिल्ली पुलिस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की क्लोज मॉनिटरिंग कर रही है. मॉनिटरिंग के दौरान हम लोगों ने सोशल मीडिया के कुछ ऐसे अकाउंट आईडेंटिफाई किए, जिनका दुरुपयोग किया जा रहा था.


भारत सरकार के खिलाफ सेंटीमेंट रचने के लिए किसान आंदोलन के नाम पर कम्युनिटीज के बीच में सौहार्द बिगाड़ने के लिए. इस बाबत हम लोगों ने किसान नेता( जो आंदोलन कर रहे हैं) को सुचित किया था, कि कुछ लोग इस आंदोलन की आड़ में देश का माहौल खराब करने का षड्यंत्र रच रहे हैं.


इसके अलावा प्रतिबंधित अंगठन 'सिख फ़ॉर जस्टिस' ने भी सोशल मीडिया के माध्यम से भारत मे अस्थिरता पैदा करने के लिए और विदेशों में भारतीय दूतावास पर प्रदर्शन के लिए लोगों को उकसाने के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने के लिए कहा था. एक अन्य संगठन 'पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन' ने इस टूलकिट को तैयार करवाया. जो गलती से सोशल मीडिया पर सार्वजनिक हो गयी, जिसे बाद में हटा लिया गया. टूल किट से पता चला कि किसान आंदोलन की आड़ में देश का माहौल खराब किया जाए.


एफआईआर में 26 जनवरी को रोम, इटली स्थित भारतीय दूतावास पर हुए प्रदर्शन का भी जिक्र है. अमेरिका बेस्ड 'सिख फ़ॉर जस्टिस की तरफ से यह ऐलान भी किया गया था कि इंडिया गेट पर खालिस्तान का झंडा फहराने वाले को ढाई लाख अमेरिकी डॉलर का इनाम दिया जाएगा. इस तरह की कई बातें सोशल मीडिया के माध्यम से सामने आई, जिससे 26 जनवरी को दिल्ली में किसान ट्रैक्टर रैली में हिंसा हुई.


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